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@@FARJIPOLKHOL हां शिंवाश के चेले अंधे गधे 🤣🤣 तुझको प्रमाण दिखाऊं तेरे रामचन्द्र ने क्या गलत किया ,और शंकर जी के बारे में बताऊंगा प्रमाण सहित।, तेरा शिंवाश कुत्ते जैसा भौंकता रहता है 🤣🤣
कुर्तक करते हैं ये महानुभाव । इन्हे कबीर सागर पढ़ना चाहिए । कबीर परमेश्वर में श्रद्धा विकसित करनी चाहिए । तब प्यास बुझेगी । और यदि लोकप्रिय होने के लिए यह सब षडयंत्र है तो परमेश्वर सत्यपुरुष कबीर बचाएँ । और यदि आत्मा पवित्र है तो इस आत्मा को शरण में लें। सत् साहेब ।सत् कबीर ॥
आपने पूरे डिबेट में एक सवाल का जवाब ही नहीं दिया बात को कट कर दिया ,सवाल है - क्या वेद पढ़ने से मुक्ति होगी , इसका जवाब आपने नहीं दिया इसलिए कि आपके पास इस सवाल का जवाब है ही नहीं है और प्रमाण भी नही है डरपोक 😂😂😂😂
अध्याय 15 का श्लोक 4 ततः, पदम्, तत्, परिमार्गितव्यम्, यस्मिन्, गताः, न, निवर्तन्ति, भूयः, तम्, एव्, च, आद्यम्, पुरुषम्, प्रपद्ये, यतः, प्रवृत्तिः, प्रसृता, पुराणी।।4।। अनुवाद: {जब गीता अध्याय 4 श्लोक 34 अध्याय 15 श्लोक 1 में वर्णित तत्वदर्शी संत मिल जाए} (ततः) इसके पश्चात् (तत्) उस परमेश्वर के (पदम्) परम पद अर्थात् सतलोक को (परिमार्गितव्यम्) भलीभाँति खोजना चाहिए (यस्मिन्) जिसमें (गताः) गये हुए साधक (भूयः) फिर (न, निवर्तन्ति) लौटकर संसारमें नहीं आते (च) और (यतः) जिस परम अक्षर ब्रह्म से (पुराणी) आदि (प्रवृत्तिः) रचना-सृष्टि (प्रसृता) उत्पन्न हुई है (तम्) उस (आद्यम्) सनातन (पुरुषम्) पूर्ण परमात्मा की (एव) ही (प्रपद्ये) मैं शरण में हूँ। पूर्ण निश्चय के साथ उसी परमात्मा का भजन करना चाहिए। (4) हिन्दी: {जब गीता अध्याय 4 श्लोक 34 अध्याय 15 श्लोक 1 में वर्णित तत्वदर्शी संत मिल जाए} इसके पश्चात् उस परमेश्वर के परम पद अर्थात् सतलोक को भलीभाँति खोजना चाहिए जिसमें गये हुए साधक फिर लौटकर संसारमें नहीं आते और जिस परम अक्षर ब्रह्म से आदि रचना-सृष्टि उत्पन्न हुई है उस सनातन पूर्ण परमात्मा की ही मैं शरण में हूँ। पूर्ण निश्चय के साथ उसी परमात्मा का भजन करना चाहिए।
पितरों का कर्ज भी हम पूरा करते हैं। 108 पीढ़ी तक पितरों को मोक्ष हेतु प्रतिभूति सिद्ध करते हैं। यदि ज्ञान है तो ॐ -तत् -सत् का गुप्त मंत्र / रहस्य बता दो तो जाने । ॐ तो खुला है । तत् और सत् बंद है । उसका गुप्त मंत्र *संत रामपाल जी महाराज* (फ्री डाउनलोड एप ) बताते हैं । इन गुप्त बंद मंत्रों की नाम दीक्षा प्रदत्त करते हैं। जिसे ॐ -सतनाम -सारनाम सार शब्द कहते हैं। आपको पता है तो बता दो ।
शिवांश जी मै से एक बात बोलूंगा कि जो आपने जो दिखाया है - मानव शरीर धारी प्राणी को खाता काल , हो सकता है कि प्रिंटिंग होते समय यह गलत हो गया होगा , मैं मानता हूँ
ब्रम्हलीन क्यो बोलते हैं ? परब्रम्हलीन कब बोलेंगे ? परम अक्षर ब्रम्हलीन कब बोलोगे ? ब्रम्ह ( ॐ )तक का ज्ञान है । आगे का शुक्ष्मवेद का ज्ञान-विज्ञान पता नहीं ? परम अक्षर ब्रम्ह तो बहुत दूर है। क्योंकि ब्रम्ह से परब्रम्ह से परम अक्षर ब्रम्ह ये ब्रम्ह की तीन अवस्थाएं हैं। शुक्ष्म वेद / कबीर सागर के आलावा यह विषय वस्तु वर्णनातीत है । तो आप जी कबीर सागर / कबीर को मानोगे नहीं । तो वार्ता तो सहज हो नहीं पाएगी । जो आप जी जन्मते रहो। ॐ / ब्रम्ह तक सीमित रहो । जब परब्रम्ह / दसवें द्वार से ऊपर 11 वें और 12 वें द्वार का ज्ञान चाहिए तो कबीर / कबीर सागर / शुक्ष्म वेद को आत्मसात करना पड़ेगा । जिस कबीर विषय पर पूरी दुनिया में सार्वाधिक शोध / PHD हो रहे हैं। काल भगवान की दुनिया में एक पत्ता भी खनकेगा ले वो ब्रम्ह / काल की मर्जी से होगा। तो वो सभी काल के दूत सदृश ही हैं । थे । होंगे । यह ज्ञान परब्रम्ह के मंत्र जप वाले ही समझ पाएंगे । "सुनकर नाम कबीर का थर थर कांपे काल" अतएव 1000 कमल / बोल्ट के भगवान के ज्ञानी,10,000 कमल / बोल्ट को न समझ पाएँगे । ना ही मानेंगे । जब [ब्रम्हा विष्णु महेश ] नहीं माने तो ये काल के दूत भला कैसे मानेंगे? और परम अक्षर ब्रम्ह अनन्त कमल /बोल्ट के भगवान /सनातन पुरुष / परमपिता परमेश्वर सतलोक की बात तो छोड़ दें। यह ज्ञान ब्रम्ह ज्ञानियों से परे है। पढ़ें कबीर सागर । फ्री डाउनलोड *संत रामपाल जी महाराज* मानो नहीं । पूर्ण गुरु / पूर्ण परमात्मा / ॐ - तत् -सत् के पूर्ण मंत्र विधि से दीक्षित होकर आजमाकर देखें । मानो नहीं आजमाओ । मुझे पूर्वाभास है । आप (अल्प ज्ञानी - ब्रम्ह ॐ तक सीमित मानोगे नहीं। हम तो पूर्ण ब्रम्ह, परम अक्षर ब्रम्ह का ज्ञान साधना में रत हैं। तो हम कैसे मानेंगे? सत् साहेब । सत् कबीर ॥
परमात्मा की दी हुई बुद्धि से ज्ञान तो सबको है किसी को कम है तो किसी को ज्यादा है,, जो सबूत को सत्य माने वही ज्ञान है जो अपना अनुभव य सुनी सुनाई बात करें वह अज्ञान है, हम संत रामपालजी महाराजजी के कुछ शिष्य ही ऐसे शिष्य है जो सबूत को सत्य मानते है !!
चलो आज की डिबेट से 1 सच्चाई सामने आयी है की काल भगवान 1 लाख प्राणियों के सूक्षम शरीर को रोजाना खाता है और शिवांश भाई के गुरु स्वासो का सुमिरन नहीं देते जिससे की मुक्ति या मोक्ष हो सके शिवांश गुरूजी तो विश्वामित्र द्वारा मनमाना बनाया हुआ गायत्री मंत्र जपवाते है जो की यजुर्वेद अध्याय 36 का शलोक 3 है जिसमे ॐ अलग से जोड़ दिया है मतलब शिवांश भाई के पास ॐ-तत-सत मंत्र वाली भक्ति नहीं है जिससे सच्चिदानंद घन ब्रह्म को प्राप्त किया जा सके
अपने अच्छे से ये चर्चा सुनी ? शिवांश भैया के गुरु देव "स्वासो का सुमिरन" नही देते तो आपके गुरु "स्वासों का सुमिरन" देते है न ? 😂 आपके गुरु आपको मन से सुमिरन करने नही कहते हैं न ? आप लोग स्वसो से सुमिरन करते है न, मन से तो नही न? 😂 आपको बातों से स्पष्ट है की आप ध्यान अथवा सुमिरन (मंत्र जाप ) मन से नही बल्कि नाक से करते है 😂 क्योंकि स्वास तो नाक से ही ली जाती है और आप स्वासो से सुमिरन अथवा मंत्र जाप करते हो मन की तो कोई आवश्यकता ही नहीं है न मंत्र जाप में ?😂😂 शिवांश भैया के गुरु कोई सामान्य गुरु नही है । जगद्गुरु है। तुमलोग के गुरु को शास्त्रों में क्या लिखा है ये देखने के लिए शास्त्रों का सहारा लेना पड़ता है और उनको जो समझ न आए उसको गलत कह देते है 😂 पर शिवांश भैया के गुरु को सब कुछ कंठस्थ है। शास्त्रों का मर्म जानते है । तत्वज्ञानी महात्मा है। कहीं से कुछ भी पूछो उनको शास्त्र खोलने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। आप देवी भागवत में पढ़िए की गायत्री मंत्र को प्रणव लगा कर ही जपने को कहा गया है। जय श्री राम 🙏🚩 जय श्री कृष्ण 🙏🚩
गुरु से परे हम कुछ नहीं मानते हैं । थे। नहीं मानेंगे ॥ आप मानोगे नहीं। हम मानोगे नहीं। हजार कमल वाले भगवान के ज्ञानी, दस हजार कमल और सर्वोच्च अनन्त हजार कमल वाले परमेश्वर के ज्ञानियों को नही समझा सकते। आप मे वश की बात नहीं। पहले कबीर / कबीर सागर में विश्वास बढ़ाओ । तो प्यासी आत्मा शांत हो पाएगी । सत् साहेब । सत् कबीर ॥
पापीयों के नाश को , धर्म के प्रकाश को , राम जी की सेना चली 🚩🚩 श्री राम जी की सेना चली 🚩🚩 हर हर महादेव 🚩🚩 हर हर महादेव 🚩🚩 जय श्री राम 🙏🚩 जय श्री कृष्ण 🙏🚩
Mere bhai aap iatane bade gyani ho to sirf itana bata do, ki pramatma kon he,kesa he,kaha niwas he usaka,usaka naam kya he, uasaki sadhana ka mantra kya he. Geeta me tatva darsi sant ki pahachan kya batai he. Shankar ji,brahma ji,vishanu ji ke mata pita kon he, tatha mox kis bhagwan ki bhagti karane se hoti he, geeta gyan data apane aap ko kaal kyu bol raha he. Mere bhai bato ko gol gol ghuma kyu rahe ho. Agar gyani ho to sastro me likha dikha do. Man jaunga. Duniya ko uallu banana band karo.
१) ' आत्मा ' और ' जीवात्मा ' --- यह दोनों शब्द पृथक्-पृथक् अर्थात् अलग-अलग हैं किन्तु एक ही परम् तत्त्व हैं ।। २) आत्मा और जीवात्मा में अवश्य अन्तर हैं किन्तु पृथक्-पृथक् अर्थात् अलग-अलग नहीं हैं ।। ३) आत्मा को आत्म भी कहते हैं और जीवात्मा को जीवात्म भी कहते हैं ।। ' आत्मा ' एक संस्कृतभाषा का स्त्रीलिङ्ग शब्द हैं और ' आत्म ' एक संस्कृतभाषा का पुल्लिङ्ग शब्द हैं तथा " जीवात्मा " और " जीवात्म " --- दोनों संस्कृतभाषा का पुल्लिङ्ग शब्द हैं ।। ४) प्रकृतितत्त्व या जड़तत्त्व सहित पुरुषतत्त्व या चेतनतत्त्व को " जीवात्मा " या " जीवात्म " कहते हैं ।। इसी को शरीरी या देही अर्थात् जिसकी शरीर या देह हैं , शरीरधारी या देहधारी , शरीरधारण करनेवाला या देहधारण करनेवाला कहते हैं ।। ५) प्रकृतितत्त्व ( जड़तत्त्व ) से मुक्त होते ही या इसको स्वयं में विलीन होते ही मात्र पुरुषतत्त्व ( चेतनतत्त्व ) को आत्मा ( आत्म ) कहते हैं ।।
६) संस्कृतभाषा के व्याकरण के नियमानुसार एक ही आत्मा को किसी कारण कई शब्दों से सम्बोधित किया जाता हैं ।। उदाहरण --- आत्मा , जीवात्मा , जीव , प्रत्यगात्मा , पुण्यात्मा , पापात्मा , संशयात्मा , महात्मा , सूत्रात्मा , विश्वात्मा , अन्तरात्मा , बहिरात्मा , भूतात्मा , परमात्मा आदि-आदि ।।
Bhai inhe apne mahabharat ka gyan nhi hai. Bhasa ka gyan. Inhone kisi ki batyi geeta ka khud ka kya mtlb hai usi ko geeta maan inko is baat tak ka gyan geeta padhane wale 10 vykti 10 apni vichar shakti ke adhar par hi uska aklan kar skte h.adgadanand maharaj ki ye geeta dekh le bhai pagal ho jye unhone tho pura sanketik vishhye par geeta di h jaise ye sharir hi kurukshetra h. Man hi drupadi. Bharm hi bhism h.duryodhan hi agyan. Ye bol de ki bharm kaise bhism ho skta h woh tho arjun ke pitamaah h 😅😅😅
1.pramatma ka naam kya he. 2.usaka naam kya he. 3.pramatma sakar he ya nirakar 4.mata durga ka pati kon he 5.geeta me pramatma ki bhagti ke mantra kya he 6 . Charo dharmo ke grantho me pramatma ki pahachan batadi. ......Jo bhi bol rahe ho ulta sidha bol rahe ho. Kisi granth ko khol kar to dikha do bhai.
अध्याय 15 का श्लोक 2 अधः, च, ऊध्र्वम्, प्रसृृताः, तस्य, शाखाः, गुणप्रवृृद्धाः, विषयप्रवालाः, अधः, च, मूलानि, अनुसन्ततानि, कर्मानुबन्धीनि, मनुष्यलोके।।2।। अनुवाद: (तस्य) उस वृक्षकी (अधः) नीचे (च) और (ऊध्र्वम्) ऊपर (गुणप्रवृद्धाः) तीनों गुणों ब्रह्मा-रजगुण, विष्णु-सतगुण, शिव-तमगुण रूपी (प्रसृता) फैली हुई (विषयप्रवालाः) विकार- काम क्रोध, मोह, लोभ अहंकार रूपी कोपल (शाखाः) डाली ब्रह्मा, विष्णु, शिव (कर्मानुबन्धीनि) जीवको कर्मोंमें बाँधने की (मूलानि) जड़ें मुख्य कारण हैं (च) तथा (मनुष्यलोके) मनुष्यलोक - स्वर्ग,-नरक लोक पृथ्वी लोक में (अधः) नीचे - नरक, चैरासी लाख जूनियों में ऊपर स्वर्ग लोक आदि में (अनुसन्ततानि) व्यवस्थित किए हुए हैं। (2) हिन्दी: उस वृक्षकी नीचे और ऊपर तीनों गुणों ब्रह्मा-रजगुण, विष्णु-सतगुण, शिव-तमगुण रूपी फैली हुई विकार- काम क्रोध, मोह, लोभ अहंकार रूपी कोपल डाली ब्रह्मा, विष्णु, शिव जीवको कर्मोंमें बाँधने की जड़ें मुख्य कारण हैं तथा मनुष्यलोक - स्वर्ग,-नरक लोक पृथ्वी लोक में नीचे - नरक, चैरासी लाख जूनियों में ऊपर स्वर्ग लोक आदि में व्यवस्थित किए हुए हैं।
अध्याय 15 का श्लोक 1 ऊध्र्वमूलम्, अधःशाखम्, अश्वत्थम्, प्राहुः, अव्ययम्, छन्दांसि, यस्य, पर्णानि, यः, तम्, वेद, सः, वेदवित्।।1।। अनुवाद: (ऊध्र्वमूलम्) ऊपर को पूर्ण परमात्मा आदि पुरुष परमेश्वर रूपी जड़ वाला (अधःशाखम्) नीचे को तीनों गुण अर्थात् रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु व तमगुण शिव रूपी शाखा वाला (अव्ययम्) अविनाशी (अश्वत्थम्) विस्तारित पीपल का वृृक्ष है, (यस्य) जिसके (छन्दांसि) जैसे वेद में छन्द है ऐसे संसार रूपी वृृक्ष के भी विभाग छोटे-छोटे हिस्से या टहनियाँ व (पर्णानि) पत्ते (प्राहुः) कहे हैं (तम्) उस संसाररूप वृक्षको (यः) जो (वेद) इसे विस्तार से जानता है (सः) वह (वेदवित्) पूर्ण ज्ञानी अर्थात् तत्वदर्शी है। (1) हिन्दी: ऊपर को पूर्ण परमात्मा आदि पुरुष परमेश्वर रूपी जड़ वाला नीचे को तीनों गुण अर्थात् रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु व तमगुण शिव रूपी शाखा वाला अविनाशी विस्तारित पीपल का वृृक्ष है, जिसके जैसे वेद में छन्द है ऐसे संसार रूपी वृृक्ष के भी विभाग छोटे-छोटे हिस्से या टहनियाँ व पत्ते कहे हैं उस संसाररूप वृक्षको जो इसे विस्तार से जानता है वह पूर्ण ज्ञानी अर्थात् तत्वदर्शी है।
आज के मनुष्यों के अंदर इतनी बुध्दि किसने भर दी है,, ये त्रिदेवो में इतनी छमता नहीं है ! ये काल (ब्रह्म) ही है जो आज मनुष्य ने इतनी तरक्की कर ली है इंसान की कोई औकात नहीं है,, यह सब काल की माया है जो इंसानो को नास्तिक और बुद्धिमान बना देती है, इतिहास उठाकर देख लो 300, 400 साल पहले कोई विज्ञानं नहीं था, जबकि आज विज्ञानं ने ईश्वर को चुनौती दे दी है, ये महाकाल ही है जो इंसानो के अंदर इतनी बुद्धि ठोककर उन्हें नास्तिक बना रहा है. श्रीमदभगवद्गीता में कहा मैं बलवानो का बल और बुध्दि मानो की बुद्धि हूँ जब चाहे दे दूँ, जब चाहे छीन लूँ अर्जुन ,, सब प्राणियों का रिमोट (ब्रह्म) के हाथ में है !!अपने इस ब्रह्मंड में, कुत्ता बिल्ली सूअर पेड़ -पक्षी कीड़े -मकौड़े बनाकर सभी प्राणियों को (कालब्रह्म) नाच नचा रहा है,सभी प्राणियों के दुःख का कारण यही ब्रह्म है..
शिवांश नारायण दुबेदी जी ये ज्ञान चर्चा करने वाले एवं फर्जी पुस्तकों का प्रचार करने वाले मूर्ख है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि सभी संत रामपालजी महाराजजी के शिष्य मूर्ख है !!"
।। जय जय सियाराम ।। ।। हर हर शंभू ।। ❤️🚩🐄🏹🌎🌺🪷🌹🙏✅🔱🏹
रामपलियों को इनके पुस्तक का ज्ञान ही नहीं पता 😂😂😂😂
जय श्री राम 🚩
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Gurudev Siyag's Siddha Yoga - GSSY
Towards the Truth
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आज रामपलियों की इतनी अच्छी धुलाई हुई कि मजा आ गया 😂😂😂😂😂
@@FARJIPOLKHOL हां शिंवाश के चेले अंधे गधे 🤣🤣 तुझको प्रमाण दिखाऊं तेरे रामचन्द्र ने क्या गलत किया ,और शंकर जी के बारे में बताऊंगा प्रमाण सहित।, तेरा शिंवाश कुत्ते जैसा भौंकता रहता है 🤣🤣
@@FARJIPOLKHOL बोलने कि तामीज है कि नहीं , नहीं है तो पहले जाके सीख लो बेटा🤣🤣
@@FARJIPOLKHOL इसमें तेरे भगवान का भी नाम आता है मूर्ख - राम + पाल और तु अपने भगवान का अपमान कर रहा है 🤣🤣
@@FARJIPOLKHOL एक कहावत है देसी भाषा में - कि अपने द्वार पर कुत्ता भी शेर होता है उसी प्रकार तु है शिंवाश का चेला, अंधा गधा, नौकर🤣🤣
@@FARJIPOLKHOL तेरे भगवान राम ने क्या क्या गलत काम किया देखेगा प्रमाण सहित बोल
कुर्तक करते हैं ये महानुभाव । इन्हे कबीर सागर पढ़ना चाहिए । कबीर परमेश्वर में श्रद्धा विकसित करनी चाहिए । तब प्यास बुझेगी ।
और यदि लोकप्रिय होने के लिए यह सब षडयंत्र है तो परमेश्वर सत्यपुरुष कबीर बचाएँ । और यदि आत्मा पवित्र है तो इस आत्मा को शरण में लें।
सत् साहेब ।सत् कबीर ॥
सिर्फ - परम पिता परमेश्वर - परम अक्षर ब्रम्ह ही अजर - अमर -अविनाशी है ।
हमारा ग्रंथ कबीर सागर है।
ऋग यजु साम अर्थव चतुर्वेद चत भंगी रे।
शुक्ष्म वेद का भेद बतावे वो हँसा सतसंगी रे॥
आपने पूरे डिबेट में एक सवाल का जवाब ही नहीं दिया बात को कट कर दिया ,सवाल है - क्या वेद पढ़ने से मुक्ति होगी , इसका जवाब आपने नहीं दिया इसलिए कि आपके पास इस सवाल का जवाब है ही नहीं है और प्रमाण भी नही है डरपोक 😂😂😂😂
अध्याय 15 का श्लोक 4
ततः, पदम्, तत्, परिमार्गितव्यम्, यस्मिन्, गताः, न, निवर्तन्ति, भूयः,
तम्, एव्, च, आद्यम्, पुरुषम्, प्रपद्ये, यतः, प्रवृत्तिः, प्रसृता, पुराणी।।4।।
अनुवाद: {जब गीता अध्याय 4 श्लोक 34 अध्याय 15 श्लोक 1 में वर्णित तत्वदर्शी संत मिल जाए} (ततः) इसके पश्चात् (तत्) उस परमेश्वर के (पदम्) परम पद अर्थात् सतलोक को (परिमार्गितव्यम्) भलीभाँति खोजना चाहिए (यस्मिन्) जिसमें (गताः) गये हुए साधक (भूयः) फिर (न, निवर्तन्ति) लौटकर संसारमें नहीं आते (च) और (यतः) जिस परम अक्षर ब्रह्म से (पुराणी) आदि (प्रवृत्तिः) रचना-सृष्टि (प्रसृता) उत्पन्न हुई है (तम्) उस (आद्यम्) सनातन (पुरुषम्) पूर्ण परमात्मा की (एव) ही (प्रपद्ये) मैं शरण में हूँ। पूर्ण निश्चय के साथ उसी परमात्मा का भजन करना चाहिए। (4)
हिन्दी: {जब गीता अध्याय 4 श्लोक 34 अध्याय 15 श्लोक 1 में वर्णित तत्वदर्शी संत मिल जाए} इसके पश्चात् उस परमेश्वर के परम पद अर्थात् सतलोक को भलीभाँति खोजना चाहिए जिसमें गये हुए साधक फिर लौटकर संसारमें नहीं आते और जिस परम अक्षर ब्रह्म से आदि रचना-सृष्टि उत्पन्न हुई है उस सनातन पूर्ण परमात्मा की ही मैं शरण में हूँ। पूर्ण निश्चय के साथ उसी परमात्मा का भजन करना चाहिए।
ये अनुभव ज्ञानी नहीं । पुस्तक ज्ञानी हैं ।
चक्र खुले नहीं । तो अनुभव कैसे होगा ? भला । ऐसे कइयों को पागल होते दास ने देखा है।
सत् साहेब । सत् कबीर ॥
अर्थ का अनर्थ करते हैं यह अल्प ज्ञानी । शरीर खाने ना मतलब उस भाव से है कि हम सभी आत्माए काल आहार हैं। वश ।
सत् साहेब ।सत् कबीर ॥
कबीर अनपढ़ थे। हम भी अनपढ़ है।
तुम्ही ज्ञानी बनो।
सत् साहे ब । सत् कबीर ॥
पितरों का कर्ज भी हम पूरा करते हैं। 108 पीढ़ी तक पितरों को मोक्ष हेतु प्रतिभूति सिद्ध करते हैं। यदि ज्ञान है तो ॐ -तत् -सत् का गुप्त मंत्र / रहस्य बता दो तो जाने । ॐ तो खुला है । तत् और सत् बंद है । उसका गुप्त मंत्र *संत रामपाल जी महाराज* (फ्री डाउनलोड एप ) बताते हैं । इन गुप्त बंद मंत्रों की नाम दीक्षा प्रदत्त करते हैं। जिसे ॐ -सतनाम -सारनाम सार शब्द कहते हैं।
आपको पता है तो बता दो ।
Om..Tat.Sat ko janana he to Geeta adhay 17:24,25,26 pado
हर हर महादेव 🙏🏼🚩
शिवांश जी मै से एक बात बोलूंगा कि जो आपने जो दिखाया है - मानव शरीर धारी प्राणी को खाता काल , हो सकता है कि प्रिंटिंग होते समय यह गलत हो गया होगा , मैं मानता हूँ
❤❤
5 minutes keliye amar hi hota hey ya 100 saal tak amar hi bol sakte hey
ब्रम्हलीन क्यो बोलते हैं ?
परब्रम्हलीन कब बोलेंगे ?
परम अक्षर ब्रम्हलीन कब बोलोगे ?
ब्रम्ह ( ॐ )तक का ज्ञान है । आगे का शुक्ष्मवेद का ज्ञान-विज्ञान पता नहीं ? परम अक्षर ब्रम्ह तो बहुत दूर है। क्योंकि ब्रम्ह से परब्रम्ह से परम अक्षर ब्रम्ह ये ब्रम्ह की तीन अवस्थाएं हैं। शुक्ष्म वेद / कबीर सागर के आलावा यह विषय वस्तु वर्णनातीत है । तो आप जी कबीर सागर / कबीर को मानोगे नहीं । तो वार्ता तो सहज हो नहीं पाएगी । जो आप जी जन्मते रहो। ॐ / ब्रम्ह तक सीमित रहो । जब परब्रम्ह / दसवें द्वार से ऊपर 11 वें और 12 वें द्वार का ज्ञान चाहिए तो कबीर / कबीर सागर / शुक्ष्म वेद को आत्मसात करना पड़ेगा । जिस कबीर विषय पर पूरी दुनिया में सार्वाधिक शोध / PHD हो रहे हैं। काल भगवान की दुनिया में एक पत्ता भी खनकेगा ले वो ब्रम्ह / काल की मर्जी से होगा। तो वो सभी काल के दूत सदृश ही हैं । थे । होंगे । यह ज्ञान परब्रम्ह के मंत्र जप वाले ही समझ पाएंगे ।
"सुनकर नाम कबीर का थर थर कांपे काल"
अतएव 1000 कमल / बोल्ट के भगवान के ज्ञानी,10,000 कमल /
बोल्ट को न समझ पाएँगे । ना ही मानेंगे । जब [ब्रम्हा विष्णु महेश ] नहीं माने तो ये काल के दूत भला कैसे मानेंगे? और परम अक्षर ब्रम्ह अनन्त कमल /बोल्ट के भगवान /सनातन पुरुष / परमपिता परमेश्वर सतलोक की बात तो छोड़ दें।
यह ज्ञान ब्रम्ह ज्ञानियों से परे है। पढ़ें कबीर सागर ।
फ्री डाउनलोड *संत रामपाल जी महाराज* मानो नहीं । पूर्ण गुरु / पूर्ण परमात्मा / ॐ - तत् -सत् के पूर्ण मंत्र विधि से दीक्षित होकर आजमाकर देखें । मानो नहीं आजमाओ ।
मुझे पूर्वाभास है । आप (अल्प ज्ञानी - ब्रम्ह ॐ तक सीमित मानोगे नहीं। हम तो
पूर्ण ब्रम्ह, परम अक्षर ब्रम्ह का ज्ञान साधना में रत हैं। तो हम कैसे मानेंगे? सत् साहेब । सत् कबीर ॥
परमात्मा की दी हुई बुद्धि से ज्ञान तो सबको है किसी को कम है तो किसी को ज्यादा है,, जो सबूत को सत्य माने वही ज्ञान है जो अपना अनुभव य सुनी सुनाई बात करें वह अज्ञान है,
हम संत रामपालजी महाराजजी के कुछ शिष्य ही ऐसे शिष्य है जो सबूत को सत्य मानते है !!
चलो आज की डिबेट से 1 सच्चाई सामने आयी है की काल भगवान 1 लाख प्राणियों के सूक्षम शरीर को रोजाना खाता है
और शिवांश भाई के गुरु स्वासो का सुमिरन नहीं देते जिससे की मुक्ति या मोक्ष हो सके शिवांश गुरूजी तो विश्वामित्र द्वारा मनमाना बनाया हुआ गायत्री मंत्र जपवाते है जो की यजुर्वेद अध्याय 36 का शलोक 3 है जिसमे ॐ अलग से जोड़ दिया है
मतलब शिवांश भाई के पास ॐ-तत-सत मंत्र वाली भक्ति नहीं है जिससे सच्चिदानंद घन ब्रह्म को प्राप्त किया जा सके
तुम आजतक नहीं मुक्त हो पाए ।। 🤡🤡🤡😂😂😂🤣🤣🤣
Ameliajones ..jab Kuch pata nhi ho to muh bhi nhi kholna chahiye
अपने अच्छे से ये चर्चा सुनी ? शिवांश भैया के गुरु देव "स्वासो का सुमिरन" नही देते तो आपके गुरु "स्वासों का सुमिरन" देते है न ? 😂 आपके गुरु आपको मन से सुमिरन करने नही कहते हैं न ? आप लोग स्वसो से सुमिरन करते है न, मन से तो नही न? 😂 आपको बातों से स्पष्ट है की आप ध्यान अथवा सुमिरन (मंत्र जाप ) मन से नही बल्कि नाक से करते है 😂 क्योंकि स्वास तो नाक से ही ली जाती है और आप स्वासो से सुमिरन अथवा मंत्र जाप करते हो मन की तो कोई आवश्यकता ही नहीं है न मंत्र जाप में ?😂😂
शिवांश भैया के गुरु कोई सामान्य गुरु नही है । जगद्गुरु है। तुमलोग के गुरु को शास्त्रों में क्या लिखा है ये देखने के लिए शास्त्रों का सहारा लेना पड़ता है और उनको जो समझ न आए उसको गलत कह देते है 😂
पर शिवांश भैया के गुरु को सब कुछ कंठस्थ है। शास्त्रों का मर्म जानते है । तत्वज्ञानी महात्मा है। कहीं से कुछ भी पूछो उनको शास्त्र खोलने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती।
आप देवी भागवत में पढ़िए की गायत्री मंत्र को प्रणव लगा कर ही जपने को कहा गया है।
जय श्री राम 🙏🚩 जय श्री कृष्ण 🙏🚩
भ्रमित हो । भ्रमित मत करो ॥
यदि अनुभव नही हो रहा तो सब पुस्तकीय ज्ञान है। मुक्ति तीन हैं। हम तीसरी मुक्ति के उपासक हैं।
सत् साहेब । सत् कबीर ॥
गुरु से परे हम कुछ नहीं मानते हैं । थे। नहीं मानेंगे ॥
आप मानोगे नहीं।
हम मानोगे नहीं।
हजार कमल वाले भगवान के ज्ञानी, दस हजार कमल और सर्वोच्च अनन्त हजार
कमल वाले परमेश्वर के ज्ञानियों को नही समझा सकते। आप मे वश की बात नहीं। पहले कबीर / कबीर सागर में विश्वास बढ़ाओ । तो प्यासी आत्मा शांत हो पाएगी ।
सत् साहेब । सत् कबीर ॥
Jay Sharee ram
क्लाश लगाओे😢 वाह !!
रामपालियों के हिसाब से इस संसार में जब तक जीव प्राणी जीवित है तब तक अमर है 😂😂
" मर " और " अमर " --- यह दोनों एक-दूसरे के विलोम-शब्द हैं ।।
' मर ' अर्थात् जो मरणधर्मा हैं और
' अमर ' अर्थात् जो नहीं मरणधर्मा हैं ।।
❤❤❤❤❤❤❤❤❤🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉
Pandit ji gayatri mantra ke jaap se mox nahi hoga.geeta me purn brahma ki sadhana ka om tat sat he.
।।जय श्रीराम।।
Ahvaan का AGCPL
Adhyatmik Gyan Charcha Premier League🎉🎉
पापीयों के नाश को , धर्म के प्रकाश को , राम जी की सेना चली 🚩🚩 श्री राम जी की सेना चली 🚩🚩 हर हर महादेव 🚩🚩 हर हर महादेव 🚩🚩
जय श्री राम 🙏🚩 जय श्री कृष्ण 🙏🚩
Mere bhai aap iatane bade gyani ho to sirf itana bata do, ki pramatma kon he,kesa he,kaha niwas he usaka,usaka naam kya he, uasaki sadhana ka mantra kya he. Geeta me tatva darsi sant ki pahachan kya batai he. Shankar ji,brahma ji,vishanu ji ke mata pita kon he, tatha mox kis bhagwan ki bhagti karane se hoti he, geeta gyan data apane aap ko kaal kyu bol raha he. Mere bhai bato ko gol gol ghuma kyu rahe ho. Agar gyani ho to sastro me likha dikha do. Man jaunga. Duniya ko uallu banana band karo.
th-cam.com/users/liveWVJgKvJ1ek4?si=LKaFY1Er05obe0pd
Sabse pahli baat ye koi bhi Sant Rampal ji maharaj ka shisya nhi hai,,
Pandit dadagiri kar ha hai😂😂
आप जी के अनुसार तो पण्डित श्री राम शर्मा जी आचार्य गलत गायत्री मंत्र बताते हैं। गायत्री परिवार ही गलत है ।😮
१) ' आत्मा ' और ' जीवात्मा ' --- यह दोनों शब्द पृथक्-पृथक् अर्थात् अलग-अलग हैं किन्तु एक ही परम् तत्त्व हैं ।।
२) आत्मा और जीवात्मा में अवश्य अन्तर हैं किन्तु पृथक्-पृथक् अर्थात् अलग-अलग नहीं हैं ।।
३) आत्मा को आत्म भी कहते हैं और जीवात्मा को जीवात्म भी कहते हैं ।। ' आत्मा ' एक संस्कृतभाषा का स्त्रीलिङ्ग शब्द हैं और ' आत्म ' एक संस्कृतभाषा का पुल्लिङ्ग शब्द हैं तथा " जीवात्मा " और " जीवात्म " --- दोनों संस्कृतभाषा का पुल्लिङ्ग शब्द हैं ।।
४) प्रकृतितत्त्व या जड़तत्त्व सहित पुरुषतत्त्व या चेतनतत्त्व को
" जीवात्मा " या " जीवात्म " कहते हैं ।। इसी को शरीरी या देही अर्थात् जिसकी शरीर या देह हैं , शरीरधारी या देहधारी , शरीरधारण करनेवाला या देहधारण करनेवाला कहते हैं ।।
५) प्रकृतितत्त्व ( जड़तत्त्व ) से मुक्त होते ही या इसको स्वयं में विलीन होते ही मात्र पुरुषतत्त्व ( चेतनतत्त्व ) को आत्मा ( आत्म ) कहते हैं ।।
६) संस्कृतभाषा के व्याकरण के नियमानुसार एक ही आत्मा को किसी कारण कई शब्दों से सम्बोधित किया जाता हैं ।।
उदाहरण --- आत्मा , जीवात्मा , जीव , प्रत्यगात्मा , पुण्यात्मा , पापात्मा , संशयात्मा , महात्मा , सूत्रात्मा , विश्वात्मा , अन्तरात्मा , बहिरात्मा , भूतात्मा , परमात्मा आदि-आदि ।।
Ae pandit ji gol gol ghuma rahe he.
Bhai maine to debate dekha bas pandit 😂😂 bato ko ghuma phirara hey
Pandit to hargaya 😂😂 bas amar amar bolke trp le raha hai or unke piche books 📚 leke betha hey
Bhai inhe apne mahabharat ka gyan nhi hai. Bhasa ka gyan. Inhone kisi ki batyi geeta ka khud ka kya mtlb hai usi ko geeta maan inko is baat tak ka gyan geeta padhane wale 10 vykti 10 apni vichar shakti ke adhar par hi uska aklan kar skte h.adgadanand maharaj ki ye geeta dekh le bhai pagal ho jye unhone tho pura sanketik vishhye par geeta di h jaise ye sharir hi kurukshetra h. Man hi drupadi. Bharm hi bhism h.duryodhan hi agyan. Ye bol de ki bharm kaise bhism ho skta h woh tho arjun ke pitamaah h 😅😅😅
1.pramatma ka naam kya he.
2.usaka naam kya he.
3.pramatma sakar he ya nirakar
4.mata durga ka pati kon he
5.geeta me pramatma ki bhagti ke mantra kya he
6 . Charo dharmo ke grantho me pramatma ki pahachan batadi.
......Jo bhi bol rahe ho ulta sidha bol rahe ho. Kisi granth ko khol kar to dikha do bhai.
@Shivansh ji, kasganj vale shastrarth ka pura video kaha milega? Har Har mahadev 🙏
Pagal banana band karo ,or sastro ko nikalo bhai.jo man me aa raha he vahi bole ja rahe ho. Kuchh to sastro ko khol ke dikhao bhai.
अध्याय 15 का श्लोक 2
अधः, च, ऊध्र्वम्, प्रसृृताः, तस्य, शाखाः, गुणप्रवृृद्धाः,
विषयप्रवालाः, अधः, च, मूलानि, अनुसन्ततानि, कर्मानुबन्धीनि, मनुष्यलोके।।2।।
अनुवाद: (तस्य) उस वृक्षकी (अधः) नीचे (च) और (ऊध्र्वम्) ऊपर (गुणप्रवृद्धाः) तीनों गुणों ब्रह्मा-रजगुण, विष्णु-सतगुण, शिव-तमगुण रूपी (प्रसृता) फैली हुई (विषयप्रवालाः) विकार- काम क्रोध, मोह, लोभ अहंकार रूपी कोपल (शाखाः) डाली ब्रह्मा, विष्णु, शिव (कर्मानुबन्धीनि) जीवको कर्मोंमें बाँधने की (मूलानि) जड़ें मुख्य कारण हैं (च) तथा (मनुष्यलोके) मनुष्यलोक - स्वर्ग,-नरक लोक पृथ्वी लोक में (अधः) नीचे - नरक, चैरासी लाख जूनियों में ऊपर स्वर्ग लोक आदि में (अनुसन्ततानि) व्यवस्थित किए हुए हैं। (2)
हिन्दी: उस वृक्षकी नीचे और ऊपर तीनों गुणों ब्रह्मा-रजगुण, विष्णु-सतगुण, शिव-तमगुण रूपी फैली हुई विकार- काम क्रोध, मोह, लोभ अहंकार रूपी कोपल डाली ब्रह्मा, विष्णु, शिव जीवको कर्मोंमें बाँधने की जड़ें मुख्य कारण हैं तथा मनुष्यलोक - स्वर्ग,-नरक लोक पृथ्वी लोक में नीचे - नरक, चैरासी लाख जूनियों में ऊपर स्वर्ग लोक आदि में व्यवस्थित किए हुए हैं।
अध्याय 15 का श्लोक 1
ऊध्र्वमूलम्, अधःशाखम्, अश्वत्थम्, प्राहुः, अव्ययम्,
छन्दांसि, यस्य, पर्णानि, यः, तम्, वेद, सः, वेदवित्।।1।।
अनुवाद: (ऊध्र्वमूलम्) ऊपर को पूर्ण परमात्मा आदि पुरुष परमेश्वर रूपी जड़ वाला (अधःशाखम्) नीचे को तीनों गुण अर्थात् रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु व तमगुण शिव रूपी शाखा वाला (अव्ययम्) अविनाशी (अश्वत्थम्) विस्तारित पीपल का वृृक्ष है, (यस्य) जिसके (छन्दांसि) जैसे वेद में छन्द है ऐसे संसार रूपी वृृक्ष के भी विभाग छोटे-छोटे हिस्से या टहनियाँ व (पर्णानि) पत्ते (प्राहुः) कहे हैं (तम्) उस संसाररूप वृक्षको (यः) जो (वेद) इसे विस्तार से जानता है (सः) वह (वेदवित्) पूर्ण ज्ञानी अर्थात् तत्वदर्शी है। (1)
हिन्दी: ऊपर को पूर्ण परमात्मा आदि पुरुष परमेश्वर रूपी जड़ वाला नीचे को तीनों गुण अर्थात् रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु व तमगुण शिव रूपी शाखा वाला अविनाशी विस्तारित पीपल का वृृक्ष है, जिसके जैसे वेद में छन्द है ऐसे संसार रूपी वृृक्ष के भी विभाग छोटे-छोटे हिस्से या टहनियाँ व पत्ते कहे हैं उस संसाररूप वृक्षको जो इसे विस्तार से जानता है वह पूर्ण ज्ञानी अर्थात् तत्वदर्शी है।
आज के मनुष्यों के अंदर इतनी बुध्दि किसने भर दी है,, ये त्रिदेवो में इतनी छमता नहीं है ! ये काल (ब्रह्म) ही है जो आज मनुष्य ने इतनी तरक्की कर ली है इंसान की कोई औकात नहीं है,, यह सब काल की माया है जो इंसानो को नास्तिक और बुद्धिमान बना देती है, इतिहास उठाकर देख लो 300, 400 साल पहले कोई विज्ञानं नहीं था, जबकि आज विज्ञानं ने ईश्वर को चुनौती दे दी है, ये महाकाल ही है जो इंसानो के अंदर इतनी बुद्धि ठोककर उन्हें नास्तिक बना रहा है.
श्रीमदभगवद्गीता में कहा मैं बलवानो का बल और बुध्दि मानो की बुद्धि हूँ जब चाहे दे दूँ, जब चाहे छीन लूँ अर्जुन ,, सब प्राणियों का रिमोट (ब्रह्म) के हाथ में है !!अपने इस ब्रह्मंड में, कुत्ता बिल्ली सूअर पेड़ -पक्षी कीड़े -मकौड़े बनाकर सभी प्राणियों को (कालब्रह्म) नाच नचा रहा है,सभी प्राणियों के दुःख का कारण यही ब्रह्म है..
संत रामपालजी महाराज जी के 10 से 15 करोड़ शिष्य बताने मूर्ख लोग, एक भी व्यक्ति सबूत देकर साबित नहीं कर सकता है कि वह संत रामपालजी महाराज का शिष्य है !
शिवांश नारायण दुबेदी जी ये ज्ञान चर्चा करने वाले एवं फर्जी पुस्तकों का प्रचार करने वाले मूर्ख है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि सभी संत रामपालजी महाराजजी के शिष्य मूर्ख है !!"
जय श्री राम 🚩
Jay Sharee Krishna
जय श्री राम 🚩
जय श्री राम 🚩
जय श्री राम 🚩