नया जीवन को सनदेश विश्वास की प्रार्थना का महत्व

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  • เผยแพร่เมื่อ 5 ก.พ. 2025
  • याकूब 5:15 और विश्वास की प्रार्थना के द्वारा रोगी बच जाएगा और प्रभु उस को उठा कर खड़ा करेगा; और यदि उस ने पाप भी किए हों, तो उन की भी क्षमा हो जाएगी।
    1. विश्वास की प्रार्थना का महत्व
    इस वचन में कहा गया है कि "विश्वास की प्रार्थना" रोगी को बचाने में सामर्थी होती है। यह हमें सिखाता है कि हमारी प्रार्थना में विश्वास अति आवश्यक है। विश्वास के बिना प्रार्थना मात्र शब्दों का संग्रह हो सकती है, लेकिन जब उसमें परमेश्वर पर अटूट भरोसा होता है, तब वह शक्तिशाली हो जाती है। हमें यह जानना चाहिए कि हमारी हर प्रार्थना सुनी जाती है, और परमेश्वर अपनी इच्छा और समय पर उत्तर देता है।
    मत्ती 21:22
    "और जो कुछ तुम प्रार्थना में विश्वास के साथ मांगोगे, वह तुम्हें मिलेगा।"
    2. प्रभु की चंगाई देने की सामर्थ
    "प्रभु उस को उठा कर खड़ा करेगा" का अर्थ है कि परमेश्वर न केवल हमारे शारीरिक रोगों को ठीक कर सकता है, बल्कि वह हमारी आत्मा को भी चंगा करने में समर्थ है। यह हमें स्मरण दिलाता है कि परमेश्वर हमारा चंगाई देने वाला है। चाहे हमारी परेशानी शारीरिक हो, मानसिक हो, या आत्मिक, हमें केवल प्रभु पर भरोसा करना है।
    भजन संहिता 103:3
    "वही तेरे सारे अधर्म को क्षमा करता है, और तेरे सब रोगों को चंगा करता है।"
    3. पापों की क्षमा का प्रतिज्ञा
    इस वचन में यह भी बताया गया है कि यदि किसी ने पाप किया है, तो वह प्रार्थना और विश्वास के द्वारा क्षमा पा सकता है। परमेश्वर की क्षमा असीम है, और वह हमारे सभी पापों को धोने के लिए तैयार है। हमें अपने पाप स्वीकार कर, पश्चाताप के साथ उसके पास आना चाहिए। यह हमारे जीवन में एक नई शुरुआत का अवसर है।
    1 यूहन्ना 1:9
    "यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है।"
    4. सामूहिक प्रार्थना और विश्वास का सामर्थ
    यह वचन हमें व्यक्तिगत प्रार्थना के साथ-साथ सामूहिक प्रार्थना की शक्ति पर भी ध्यान केंद्रित करने को कहता है। जब परिवार या मण्डली मिलकर प्रार्थना करते हैं, तो प्रभु के अद्भुत कार्य देखने को मिलते हैं। हमें एक-दूसरे के लिए प्रार्थना करना चाहिए और विश्वास रखना चाहिए कि परमेश्वर हमारी प्रार्थना का उत्तर देगा।
    मरकुस 11:24
    "इसलिए मैं तुम से कहता हूं, जो कुछ तुम प्रार्थना में मांगते हो, विश्वास करो कि तुम्हें मिल गया है, और वह तुम्हारा होगा।"
    निष्कर्ष:
    याकूब 5:15 हमें प्रार्थना, विश्वास, चंगाई और क्षमा के महत्व को सिखाता है। यह हमें प्रेरित करता है कि हम हर परिस्थिति में परमेश्वर पर भरोसा रखें और प्रार्थना के द्वारा अपनी आवश्यकताओं को उसके चरणों में रखें।
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