वाक्या करबला का । इमाम हुसैन के घोड़े का

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  • เผยแพร่เมื่อ 29 ก.ค. 2023
  • इमाम हुसैन की शहादत के बाद आप का इमाम हुसैन का घोडा जुलजनाह बेक़रार हो कर चारों तरफ भागने लगा फिर कुछ देर बाद वापस आ कर उस ने अपनी पेशानी के बाल खून से तर किये और अपनी आँखों से आँसू बहाता हुआ खेमे की तरफ लौट आया ।
    मुहर्रम के महीने में ही इराक के शहर कर्बला में पैगम्बर मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन को उनके बच्चों और दोस्तों समेत शहीद कर दिया गया था. उन्हीं की याद में मुहर्रम मनाया जाता है.
    हुसैन ने दुश्मनों से एक रात का समय मांगा और उस पूरी रात इमाम हुसैन और उनके परिवार ने अल्लाह की इबादत की और दुआ मांगते रहे कि मेरा परिवार, मेरे दोस्त चाहे शहीद हो जाए, लेकिन अल्लाह का दीन ‘इस्लाम’, जो नाना (मोहम्मद) लेकर आए थे, वह बचा रहे.
    10 अक्टूबर, 680 ई. को सुबह नमाज के समय से ही जंग छिड़ गई. इसे जंग कहना ठीक न होगा, क्योंकि एक ओर लाखों की फौज थी, दूसरी तरफ 72 सदस्यों का परिवार और उनमें कुछ पुरुष थे. इमाम हुसैन के साथ महज 75 या 80 आदमी थे, जिसमें 6 महीने से लेकर 13 साल तक के बच्चे भी शामिल थे. इस्लाम की बुनियाद को बचाने में कर्बला में 72 लोग शहीद हो गए, जिनमें दुश्मनों ने 6 महीने के बच्चे अली असगर के गले पर तीन नोक वाला तीर मारा. 13 साल के बच्चे हजरत कासिम को जिन्दा रहते घोड़ों की टापों से रौंद डलवाया और सात साल आठ महीने के बच्चे औन-मोहम्मद के सिर पर तलवार से वार कर शहीद कर दिया था.
    अजादारा यानी शिया मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखने वाली तरन्नुम ने बताया कि कर्बला में हुई जंग के दौरान इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत की याद में मुहर्रम मनाया जाता है. मुहर्रम के दिनों में शिया समुदाय के लोग काले लिबास पहनकर मातम करते हुए ताजिया निकालते हैं और शोक मनाते हैं.

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