Anglo Nepal youth

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  • เผยแพร่เมื่อ 18 ก.ย. 2024
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    #**आंग्ल-नेपाल युद्ध (1814-1816)** ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल के बीच लड़ा गया एक महत्वपूर्ण संघर्ष था। इसे *गोरखा युद्ध* भी कहा जाता है, क्योंकि उस समय नेपाल पर गोरखा वंश का शासन था। यह युद्ध नेपाल के विस्तारवादी नीतियों और ब्रिटिश साम्राज्य के भारतीय उपमहाद्वीप में प्रभाव बढ़ाने की महत्वाकांक्षा के कारण हुआ।
    युद्ध के प्रमुख कारण:
    1. **क्षेत्रीय विस्तार**: नेपाल का गोरखा साम्राज्य तेजी से अपने क्षेत्र का विस्तार कर रहा था। नेपाल ने कुमाऊँ, गढ़वाल, और सिक्किम जैसे क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था, जो ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के हितों के खिलाफ था।
    2. **सीमाई विवाद**: नेपाल और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच तराई क्षेत्र (जो भारत और नेपाल के बीच का सीमाई इलाका था) में कई विवाद थे। नेपाल ने कई भारतीय क्षेत्रों पर दावा किया, जिससे संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हुई।
    3. **ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार**: ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार करना चाहती थी और नेपाल के विस्तारवादी नीतियों से परेशान थी। ब्रिटिश अधिकारियों ने नेपाल को सीमाओं के निर्धारण के लिए चेतावनी दी, जिसे नेपाल ने नजरअंदाज कर दिया।
    युद्ध का प्रमुख घटनाक्रम:
    1. **युद्ध की शुरुआत (1814)**: सीमा विवादों के चलते 1814 में ब्रिटिशों ने नेपाल पर हमला किया। ब्रिटिशों को उम्मीद थी कि वे नेपाल को आसानी से हरा देंगे, लेकिन नेपाल की गोरखा सेना ने कड़ी चुनौती दी।
    2. **गोरखा सेना की बहादुरी**: नेपाल की गोरखा सेना, जो पर्वतीय युद्ध में माहिर थी, ने ब्रिटिश सेना के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी। ब्रिटिश सेना को काठमांडू घाटी में पहुँचने में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ा।
    3. **ब्रिटिश जनरलों की असफलता**: ब्रिटिश सेना के प्रारंभिक अभियान सफल नहीं रहे, और ब्रिटिश जनरलों को भारी नुकसान उठाना पड़ा। नेपाल की कठिन भौगोलिक स्थिति ने ब्रिटिशों के लिए युद्ध को चुनौतीपूर्ण बना दिया।
    4. **ब्रिटिश सेना की रणनीतिक बदलाव**: हालांकि शुरुआती असफलताओं के बाद, ब्रिटिश सेना ने अपनी रणनीति बदली और अतिरिक्त सैन्य बलों के साथ फिर से हमला किया। ब्रिटिश सेना ने गढ़वाल और कुमाऊँ पर अधिकार कर लिया और नेपाल को कमजोर कर दिया।
    **सुगौली की संधि (1816)**:
    आखिरकार, ब्रिटिश सेना की ताकत के सामने नेपाल को झुकना पड़ा और दोनों पक्षों के बीच *सुगौली की संधि* पर हस्ताक्षर किए गए। इस संधि के मुख्य बिंदु थे:
    1. **नेपाल का क्षेत्रीय नुकसान**: नेपाल को सिक्किम, कुमाऊँ, गढ़वाल और तराई के कुछ हिस्सों को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंपना पड़ा।
    2. **ब्रिटिश रेजीडेंट की नियुक्ति**: संधि के अनुसार, नेपाल की राजधानी काठमांडू में एक ब्रिटिश रेजीडेंट (प्रतिनिधि) नियुक्त किया गया।
    3. **आत्मनिर्भरता की स्वीकृति**: नेपाल ने ब्रिटिश साम्राज्य के साथ एक मित्रवत संबंध स्थापित करने पर सहमति जताई, लेकिन अपनी आंतरिक स्वायत्तता बनाए रखी।
    युद्ध के परिणाम:
    1. **नेपाल का कमजोर होना**: इस युद्ध के बाद नेपाल का क्षेत्रीय विस्तार रुक गया और उसका आकार भी घट गया।
    2. **ब्रिटिश प्रभाव का बढ़ना**: नेपाल की हार के बाद ब्रिटिश साम्राज्य का भारतीय उपमहाद्वीप में प्रभाव और मजबूत हो गया।
    3. *गोरखा रेजिमेंट**: इस युद्ध के बाद, ब्रिटिशों ने गोरखा सैनिकों की बहादुरी को देखा और उन्हें अपनी सेना में शामिल करना शुरू किया, जिससे प्रसिद्ध **गोरखा रेजिमेंट* की स्थापना हुई।
    आंग्ल-नेपाल युद्ध ने नेपाल के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ लाया और नेपाल को ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन तो नहीं किया, लेकिन उसे सीमित कर दिया गया।

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