If this kind of ultimate and perfect knowledge/reminder of truth is available in the world then why still so much confusion and chaos and suffering ???
जो सही लगता है उसे पकड़ो,जो सही लगे उसे अपनाओ,बाकी किसी बात से कोई मतलब मत रखो आत्म कल्याण,आत्मानुभूति,शून्य अनुभूति के लिए काम आ रहा है तो सही ही है अगर काम नहीं आ रहा तो सही वाणी भी कुछ काम की नही
आपकी बुद्धि में जो समझ में आए वहीं सत्य हैं ऐसा नहीं है। क्योंकि हमारी बुद्धि सीमित हैं और सीमित वस्तु में असीम की कल्पना नहीं हो सकती।इसलिए आप अपनी बुद्धि के हिसाब से किसी को सुझाव न देवे । यदि ये भाई ज्ञान को अपनी टिप्पणी द्वारा समझा सकते हैं तो इसमें कोई गलत नहीं ।
@@anuragsahu1972 तब आप वो नही समझे जो मैं कह रहा हु, भाई अर्थ के साथ अपनी बुद्धि के हिसाब व्यक्तव्य भी दे रहा है, मेरा कुल तात्पर्य यह है कि जो जैसा है वैसा प्रस्तुत करे और और श्रावक भी भी बिना अपने बुद्धिमत्ता का उपयोग किए, जैसा वैसा ही आत्मसात कर ले तो सत्य को जान लेगा, जेसे आपने कहा बुद्धि क्षुद्र है, तो क्यों हम उसकी मदद ले
@@ManishPatel-xm8ct मैं आपकी बात को समझा कि जो ज्ञान जैसा मिला हैं वैसा ही प्रस्तुत करें।पर साथ ही ये भी स्वीकारना होगा कि अष्टावक्र गीता की भाषाशेलीं नवीन साधकों के लिए कठिन हो सकती हैं।इसलिए मेरी समझ में ,यदि उस ज्ञान को जन सामान्य की बुद्धि में भरने के लिए अपने स्तर से इस भाई ने शुरुवात की हैं तो इसमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। क्योंकि यदि आपकी बात मानेंगे तो जो नवीन साधक जो धर्म को जानना चाहते है या जानने की थोड़ी भी जिज्ञासा जिनको ही वो इतनी कठिन भाषशेली को सुनके ही भाग जायेगे।आपका मत इस तर्क पर क्या सोचता हैं कृपया जवाब देवे
@@anuragsahu1972 मेरा आशय किसी को हतोत्साहित करना नही है मेरा कुल मतलब यह है आज जानकारी या शब्द को ही ज्ञान(जानना) मानने लगे हैं लोग, जबकि आप भी जानते हो कि आध्यात्मिक यात्रा शब्दो के विसर्जन बाद मौन से शुरू होती है, बुद्धि शब्दो और मन विचारो से इस कदर भरा है कि जो भी जाता है मिलकर अलग ही प्रतिबिंबित करता है, वैसे भी अष्टावक्र गीता जो सिद्ध हो गए हैं वही समझ पाएंगे, नवीन साधकों को कृष्ण की गीता आदर्श है फिर भी मुझे अतिरिक्त ना ले,भाई जो कर रहा वह अच्छा है,
अति सुंदर व्याख्यान
नमन प्रभु🙏🙏
Om Namah shivay 🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏
Satya vachan,bilkul sahi,sdgurudevji…lekin kuch…log samaj nahi payenge…behad kathin ,ulta samajeinge😂😀✌✌🙏🙏🌹🌹🌹
If this kind of ultimate and perfect knowledge/reminder of truth is available in the world then why still so much confusion and chaos and suffering ???
This is theorotical knowledge . We need it's practical .
Narayan narayan narayan
Pujyaniya Shri gurudev ji ke Charno Me Koti-Koti Pranam 🙏🌹
Jai shree Krishna 🙏🙏🙏🙏
अपने से पूछो मैं कौन हूं। सभी प्रश्नों उत्तर अंदर से ही मिलेंगे। 20:44 ।
Very good 👍👍
Pavitra, bhudimaan,aattma gyan, thik se samaj, payega,…varna kam bhudhi,gaddei,ke age, bin bajana hai,😅😀✌🙏🙏🙏🌺🌹
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जो सही लगता है उसे पकड़ो,जो सही लगे उसे अपनाओ,बाकी किसी बात से कोई मतलब मत रखो
आत्म कल्याण,आत्मानुभूति,शून्य अनुभूति के लिए काम आ रहा है तो सही ही है
अगर काम नहीं आ रहा तो सही वाणी भी कुछ काम की नही
जो अर्थ वही बताए, अपनी कोई भी टिप्पणी ना करे,क्योंकि आप नही जानते आत्मा होती भी है की नही, जनक जी का अनुभव आपका अनुभव नहीं हो सकता,
आपकी बुद्धि में जो समझ में आए वहीं सत्य हैं ऐसा नहीं है। क्योंकि हमारी बुद्धि सीमित हैं और सीमित वस्तु में असीम की कल्पना नहीं हो सकती।इसलिए आप अपनी बुद्धि के हिसाब से किसी को सुझाव न देवे । यदि ये भाई ज्ञान को अपनी टिप्पणी द्वारा समझा सकते हैं तो इसमें कोई गलत नहीं ।
@@anuragsahu19720:22 0:22 0:22
@@anuragsahu1972 तब आप वो नही समझे जो मैं कह रहा हु, भाई अर्थ के साथ अपनी बुद्धि के हिसाब व्यक्तव्य भी दे रहा है, मेरा कुल तात्पर्य यह है कि जो जैसा है वैसा प्रस्तुत करे और और श्रावक भी भी बिना अपने बुद्धिमत्ता का उपयोग किए, जैसा वैसा ही आत्मसात कर ले तो सत्य को जान लेगा, जेसे आपने कहा बुद्धि क्षुद्र है, तो क्यों हम उसकी मदद ले
@@ManishPatel-xm8ct मैं आपकी बात को समझा कि जो ज्ञान जैसा मिला हैं वैसा ही प्रस्तुत करें।पर साथ ही ये भी स्वीकारना होगा कि अष्टावक्र गीता की भाषाशेलीं नवीन साधकों के लिए कठिन हो सकती हैं।इसलिए मेरी समझ में ,यदि उस ज्ञान को जन सामान्य की बुद्धि में भरने के लिए अपने स्तर से इस भाई ने शुरुवात की हैं तो इसमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
क्योंकि यदि आपकी बात मानेंगे तो जो नवीन साधक जो धर्म को जानना चाहते है या जानने की थोड़ी भी जिज्ञासा जिनको ही वो इतनी कठिन भाषशेली को सुनके ही भाग जायेगे।आपका मत इस तर्क पर क्या सोचता हैं कृपया जवाब देवे
@@anuragsahu1972
मेरा आशय किसी को हतोत्साहित करना नही है मेरा कुल मतलब यह है आज जानकारी या शब्द को ही ज्ञान(जानना) मानने लगे हैं लोग, जबकि आप भी जानते हो कि आध्यात्मिक यात्रा शब्दो के विसर्जन बाद मौन से शुरू होती है,
बुद्धि शब्दो और मन विचारो से इस कदर भरा है कि जो भी जाता है मिलकर अलग ही प्रतिबिंबित करता है, वैसे भी अष्टावक्र गीता जो सिद्ध हो गए हैं वही समझ पाएंगे, नवीन साधकों को कृष्ण की गीता आदर्श है
फिर भी मुझे अतिरिक्त ना ले,भाई जो कर रहा वह अच्छा है,