छुआछूत का शिकार हुआ दलित छात्र इंद्र कुमार मेघवाल

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  • เผยแพร่เมื่อ 15 ส.ค. 2022
  • आज़ादी के 75 साल होने के बाद भी राजस्थान के जालौर में एक मासूम बच्चे को बड़ी बेरहमी से सिर्फ इसलिए पीटा जाता हे की वो बच्चा दलित समाज का था और उसने उच्च जाती के शिक्षक के मटके को अपनी प्यास बुझाने के लिए छू लिया..... वो छोटा सा बच्चा जिसको जाति पाती ऊंच नीच का भेद नहीं पता... जिसका मन बिल्कुल साफ़ हर बात से बेख़बर बस समझता हे तो इतना की ये जो मटका हे इसमें पानी होता हे जो हमारी प्यास बुझाता हे लेकिन उस नादान बच्चे को क्या पता यहाँ पानी की भी जाति धर्म और मज़हब होता हे... बस उसकी यही नादानी अपनी उच्च जाति के घमंड मे चूर उस शिक्षक को इतनी नागवार गुज़री की उस नादान बच्चे को इतनी बेरहमी से पीटा की वो बेहोश हो गया और कुछ दिनों में इलाज़ के दौरान अपनी ज़िंदगी की जंग हार गया.. आखिर उसका कसूर क्या था????? जिस देश की संस्कर्ति में पानी पिलाना सवाब (पुण्य )का काम समझा जाता हो वहां एक बच्चे को पानी पिने की वजह से मार दिया जाता हे तो क्या हमें ऐसी सड़ी हुई मानसिकता के खिलाफ आवाज़ नहीं उठानी चाहिए क्या ?? इंसानियत के नाते हमें उस बच्चे के लिए इंसाफ की आवाज़ को बुलंद नहीं करना चाहिए क्या??अगर हाँ तो आइये उस मासूम बच्चे के इंसाफ के लिए इस सड़ी हूई मानसिकता के ख़िलाफ़ जातिवाद और भेदभाव के खिलाफ अपना विरोध दर्ज़ कराए..... सभी धर्म,जाति और समुदाय के लोगों से अपील हे की इस विरोध प्रदर्शन में शामिल होकर इस सामाजिक कुरीति के ख़िलाफ़ अपनी एकजुटता का परिचय दें.....आप सभी से निवेदन हे की ज्यादा से ज्यादा लोगों तक इस मैसेज को पहुंचाए एक माँ बाप ने अपना मासूम बच्चा तो खो दिया लेकिन कम से कम उनको इंसाफ तो मिल सके...

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