रथ प्रभारी अधिकारी! सूचना अधिकारी? | The RTI Story
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- เผยแพร่เมื่อ 7 ก.พ. 2025
- आई ए एस अफसर अब कलेक्टर नहीं, रथ प्रभारी भी बनेंगे। घुटने टेकते-टेकते अफसरों ने अपने लिए यह जो हासिल किया है वह सिविल सेवा परीक्षा के महत्व को आसमान में ले जाता है। उम्मीद है 2029 के चुनाव तक सरकार इनकी पदोन्नति रथ प्रभारी से रथ चालक में कर ही देगी। यह भी हो सकता है कि इन अफसरों को रिटायर होने से पहले ही पार्टी का बूथ प्रभारी भी बना दिया जाए। आखिर वह भी जन सेवा का कार्य है और मुझे पूरा भरोसा है कि ये अफसर रथ प्रभारी से भी ज्यादा बूथ प्रभारी का काम पूरे उत्साह से करेंगे।
योजनाओं से बहुत दूर है सूचना का संसार। योजना की सूचना होनी चाहिए, इसके लिए सरकार करोड़ों रुपये प्रचार पर खर्च करती है लेकिन सरकार के भीतर क्या होता है यह आप उस प्रचार से नहीं जान पाते हैं। इसके लिए दूसरी तरह की सूचनाएं ज़रूरी होती हैं। अगर सही सूचना न मिले तो आपकी क्या हालत हो जाएगी, क्या कभी आपने सोचा है? कई लोग इस सवाल को लेकर लापरवाह रहते हैं। उन्हें लगता है कि सरकार क्या करती है, कैसे करती है, यह जानना उनका काम नहीं है। 18 साल पहले 2005 में सूचना के अधिकार का कानून लाया गया ताकि आप मीडिया से स्वतंत्र होकर सरकार से सीधे सवाल पूछ सकें और जवाब हासिल कर सकें। जनता अगर इस कानून से लैस होकर सवाल पूछने लगे तब फिर आपको गोदी मीडिया के एंकरों की चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। सूचना के अधिकार के ज़रिए जनता सवाल पूछने के अधिकार को ज़िंदा रख सकती है। आज सूचना के इस अधिकार पर हमला हो रहा है। इस हमले से आपको चिंतित क्यों होना चाहिए, हमारी रिपोर्ट पूरी देखिएगा।
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/ @ravishkumar.official
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