Day - 7 | Shrimad Bhagwat Katha Live | Pujya Shri Indresh Ji Maharaj | Jalandhar | P.B 2024
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- เผยแพร่เมื่อ 28 ก.ย. 2024
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Day - 7 | Shrimad Bhagwat Katha Live | Pujya Shri Indresh Ji Maharaj | Jalandhar | P.B 2024
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Shri Indresh Upadhyay, son of Shri Krishna Chandra Shastri Thakurji and founder of BhaktiPath, is a noble preacher and philosopher whose teachings have helped thousands of people worldwide experience elevated levels of spiritual consciousness. A thinker and spiritual master, he is a living example of humility and dedicated service.
His spiritual organisation, Bhakti path, aims to spread the love and wisdom of great saints and sages of India and provide spiritual seekers with a wealth of knowledge about the living traditions of Hinduism. Bhaktipath is the source of understanding the teachings of Shrimad Bhagwat Katha for spiritual seekers and has proven to be a light of knowledge in a world of darkness. Shri Indresh Upadhyay is a beacon of hope and inspiration to millions of people around the world.
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राधे राधे जी 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🪷🪷🪷🪷🪷🪷🪷🪷🪷
राधे राधे जी 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌷🌷🌷🌷🌷🪷🪷🪷🪷🪷🌸🌸🌸🌸🌻🌻🌻🌻🌻
@@nishap9741 राधे राधे जी 🤗🙏🏻
Jai shree radhey Krishna guru ji 🙏
ब्रह्मसंहिता-5.48
यस्यैकनिश्वासितकालमथावलम्बय जीवन्ति लोमविलजा जगदण्डनाथाः।।
विष्णुर्महान् सैहयस्य कलाविशेषो।
गोविन्दमादि पुरुषं तमहं भजामि ।।
हिंदी अनुवाद:
"अनन्त ब्रह्माण्डों में से प्रत्येक ब्रह्माण्ड के शंकर, ब्रह्मा और विष्णु, महाविष्णु के श्वास भीतर लेने पर उनके शरीर के रोमों से प्रकट होते हैं और श्वास बाहर छोड़ने पर पुनः उनमें विलीन हो जाते हैं। मैं, उन श्रीकृष्ण की वन्दना करता हूँ जिनके महाविष्णु विस्तार हैं।"
भागवत गीता
अध्याय ,10 श्लोक 23
रुद्राणां शङ्करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम्।
वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम् ॥
हिंदी अनुवाद:
रुद्रों में शंकर हूँ, यक्षों में मैं कुबेर हूँ, वसुओं में मैं अग्नि हूँ और पर्वतों में मेरु हूँ।
पद्म पुराण खण्ड ३ (स्वर्गखण्ड) अध्याय ५०
पद्म पुराण पाताल खंड अध्याय 81
देवर्षि नारद जी से भगवान शिव कहते हैं-
अन्तरंगैस्तथा नित्यविभूतैस्तैश्चिदादिभिः। गोपनादुच्यते गोपी राधिका कृष्णवल्लभा।।
देवी कृष्णमयी प्रोक्ता राधिका परदेवता। सर्वलक्ष्मीस्वरूपा सा कृष्णाह्लादस्वरूपिणी।।
ततः सा प्रोच्यते विप्र ह्लादिनीति मनीषिभिः। तत्कलाकोटिकोटयंशा दुर्गाद्यास्त्रिगुणात्मिकाः।।
सा तु साक्षान्महालक्ष्मीः कृष्णो नारायणः प्रभुः। नैतयोर्विद्यते भेदः स्वल्पोऽपि मुनिसत्तम।।
इयं दुर्गा हरी रुद्रः कृष्णः शक्र इयं शची। सावित्रीयं हरिब्रह्मा धूमोर्णासौ यमो हरिः।।
बहुना किं मुनिश्रेष्ठ विना ताभ्यां न किंचन। चिदचिल्लक्षणं सर्वं राधाकृष्णमयं जगत्।।
इत्थं सर्वं तयोरेव विभूतिं विद्धि नारद। न शक्यते मया वक्तुं वर्षकोटिशतैरपि।।
“नारद जी! श्रीकृष्ण प्रिया राधा अपनी चैतन्य आदि नित्य रहने वाली अन्तरंग विभूतियों से इस प्रपंच का गोपन-संरक्षण करती हैं, इसलिये उन्हें ‘गोपी’ कहते हैं। वे श्रीकृष्ण की अराधना में तन्मय होने के कारण ‘राधिका’ कहलाती हैं। श्रीकृष्णमयी होने से ही वे ‘परा देवता’ हैं। सम्पूर्ण-लक्ष्मीस्वरूपा हैं। श्रीकृष्ण के आह्लाद का मूर्तिमान स्वरूप होने के कारण मनीषीजन उन्हें ‘ह्लादिनी’ शक्ति कहते हैं। दुर्गादि त्रिगुणात्मि का शक्तियाँ उनकी कला के करोड़वें का भी करोड़वाँ अंश हैं। श्रीराधा साक्षात महालक्ष्मी हैं और भगवान श्रीकृष्ण साक्षात नारायण हैं। मुनिश्रेष्ठ! इनमें थोड़ा-सा भी भेद नहीं है। श्री राधा दुर्गा हैं और श्रीकृष्ण रुद्र। श्रीकृष्ण इन्द्र हैं तो ये शची (इन्द्राणी) हैं। वे सावित्री हैं तो ये साक्षात ब्रह्मा हैं। श्रीकृष्ण यमराज हैं तो ये उनकी पत्नी धूमोर्णा हैं। अधिक क्या कहा जाय, उन दोनों के बिना किसी भी वस्तु की सत्ता नहीं है। जड-चेतनमय सारा संसार श्रीराधा कृष्ण का ही स्वरूप है।
नारद जी !इस प्रकार सबको उन्हीं दोनों की विभूति समझो। मैं नाम ले-लेकर गिनाने लगूँ तो सौ करोड़ वर्षों में भी उस विभूति का वर्णन नहीं कर सकता।”
भागवत गीता
अध्याय , 11 श्लोक 32
श्रीभगवानुवाच।
कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः ।
ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः
परम प्रभु ने कहा-“मैं प्रलय का मूलकारण और महाकाल हूँ जो जगत का संहार करने के लिए आता है। तुम्हारे युद्ध में भाग लेने के बिना भी युद्ध की व्यूह रचना में खड़े विरोधी पक्ष के योद्धा मारे जाएंगे।"
यन्नखंदुरुचिरब्रह्म धेयं ब्रह्मादीभिः सुरेः
गुणत्रयत्तिम् तम वन्दे वृन्दावनेश्वरम्
(पद्मपुराण, पाताल खण्ड-77.60)
वृंदावन के भगवान श्रीकृष्ण के चरणों के पंजों के नखों से प्रकट ज्योति परब्रह्म है जिसका ध्यान ज्ञानी और स्वर्ग के देवता करते हैं।
7 दिन की भागवत कथा को सादर समर्पित l जय जय श्री राधे l जय जय गुरुदेव l
जय जय श्री राधे राधे🎉🎉💐💐🙏🙏🙏🙏
Sab sukh sagar rup ujagar rhe vrindavan dham ❤....
Sab sukh sagar rup ujagar rhe lalji ki ktao mai.. ❤.. Jay Shri krishn🙏
Jay shree krishna
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🌻🌻🌻🌻🌻🌻🙏जय श्रीराधाकृष्ण 🌻🙏जय श्रीराधाकृष्ण 🌻🙏जय श्रीराधाकृष्ण 🌻🙏जय श्रीराधाकृष्ण 🌻🙏जय श्रीराधाकृष्ण 🌻🙏
भागवत गीता
अध्याय , 14 श्लोक 27
ब्रह्मणो हि प्रतिष्ठाहममृतस्याव्ययस्य च ।
शाश्वतस्य च धर्मस्य सुखस्यैकान्तिकस्य च
मैं ही उस निराकार ब्रह्म का आधार हूँ जो अमर, अविनाशी, शाश्वत धर्म और असीम दिव्य आनन्द है।
ब्रह्म वैवर्त पुराण
अध्याय ,1श्लोक 4
वन्दे कृष्णं गुणातीतं परं ब्रह्माच्युतं यतः ।
आविर्बभूवुः प्रकृतिब्रह्मविष्णुशिवादयः
हिंदी अनुवाद:
जिनसे प्रकृति, ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव आदि का आविर्भाव हुआ है, उन त्रिगुणातीत परब्रह्म परमात्मा अच्युत श्रीकृष्ण की मैं वन्दना करता हूँ।
हे भोले-भाले मनुष्यों! व्यासदेव ने श्रुतिगणों को बछड़ा बनाकर भारती रूपिणी कामधेनु से जो अपूर्व, अमृत से भी उत्तम, अक्षय, प्रिय एवं मधुर दूध दुहा था, वही यह अत्यन्त सुन्दर ब्रह्म वैवर्त पुराण है। तुम अपने श्रवणपुटों द्वारा इसका पान करो, पान करो।
ब्रह्म वैवर्त पुराण
ब्रह्मखण्ड : अध्याय 3
श्रीकृष्ण से सृष्टि का आरम्भ, नारायण, महादेव, ब्रह्मा, धर्म, सरस्वती, महालक्ष्मी और प्रकृति[1]-का प्रादुर्भाव तथा इन सबके द्वारा पृथक-पृथक श्रीकृष्ण का स्तवन
सौति कहते हैं - भगवान ने देखा कि सम्पूर्ण विश्व शून्यमय है। कहीं कोई जीव-जन्तु नहीं है। जल का भी कहीं पता नहीं है। सारा आकाश वायु से रहित और अन्धकार से आवृत हो घोर प्रतीत होता है। वृक्ष, पर्वत और समुद्र आदि से शून्य होने के कारण विकृताकार जान पड़ता है। मूर्ति, धातु, शस्य और तृण का सर्वथा अभाव हो गया है।
ब्रह्मन! जगत को इस शून्यावस्था में देख मन-ही-मन सब बातों की आलोचना करके दूसरे किसी सहायक से रहित एकमात्र स्वेच्छामय प्रभु ने स्वेच्छा से ही सृष्टि-रचना आरम्भ की। सबसे पहले उन परम पुरुष श्रीकृष्ण के दक्षिणापार्श्व से जगत के कारण रूप तीन मूर्तिमान गुण प्रकट हुए। उन गुणों से महत्तत्त्व, अहंकार, पाँच तन्मात्राएँ तथा रूप, रस, गन्ध, स्पर्श और शब्द-ये पाँच विषय क्रमशः प्रकट हुए।
तदनन्तर श्रीकृष्ण से साक्षात भगवान नारायण का प्रादुर्भाव हुआ, जिनकी अंगकान्ति श्याम थी, वे नित्य-तरुण, पीताम्बरधारी तथा वनमाला से विभूषित थे। उनके चार भुजाएँ थीं। उन्होंने अपने चार हाथों में क्रमशः - शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण कर रखे थे। उनके मुखारविन्द पर मन्द मुस्कान की छटा छा रही थी। वे रत्नमय आभूषणों से विभूषित थे, शांर्गधनुष धारण किये हुए थे। कौस्तुभमणि उनके वक्षःस्थल की शोभा बढ़ाती थी। श्रीवत्सभूषित वक्ष में साक्षात लक्ष्मी का निवास था। वे श्रीनिधि अपूर्व शोभा को प्रकट कर रहे थे; शरत्काल की पूर्णिमा के चन्द्रमा की प्रभा से सेवित मुख-चन्द्र के कारण वे बड़े मनोहर जान पड़ते थे। कामदेव की कान्ति से युक्त रूप-लावण्य उनका सौन्दर्य बढ़ा रहा था। वे श्रीकृष्ण के सामने खड़े हो दोनों हाथ जोड़कर उनकी स्तुति करने लगे।
नारायण बोले- जो वर (श्रेष्ठ), वरेण्य (सत्पुरुषों द्वारा पूज्य), वरदायक (वर देने वाले) और वर की प्राप्ति के कारण हैं; जो कारणों के भी कारण, कर्मस्वरूप और उस कर्म के भी कारण हैं; तप जिनका स्वरूप है, जो नित्य-निरन्तर तपस्या का फल प्रदान करते हैं, तपस्वीजनों में सर्वोत्तम तपस्वी हैं, नूतन जलधर के समान श्याम, स्वात्माराम और मनोहर हैं, उन भगवान श्रीकृष्ण मैं वन्दना करता हूँ। जो निष्काम और कामरूप हैं, कामना के नाशक तथा कामदेव की उत्पत्ति के कारण हैं, जो सर्वरूप, सर्वबीज स्वरूप, सर्वोत्तम एवं सर्वेश्वर हैं, वेद जिनका स्वरूप है, जो वेदों के बीज, वेदोक्त फल के दाता और फलरूप हैं, वेदों के ज्ञाता, उसे विधान को जानने वाले तथा सम्पूर्ण वेदवेत्ताओं के शिरोमणि हैं, उन भगवान श्रीकृष्ण को मैं प्रणाम करता हूँ।[2]
ऐसा कहकर वे नारायणदेव भक्तिभाव से युक्त हो उनकी आज्ञा से उन परमात्मा के सामने रमणीय रत्नमय सिंहासन पर विराज गये। जो पुरुष प्रतिदिन एकाग्रचित्त हो तीनों संध्याओं के समय नारायण द्वारा किये गये इस स्तोत्र को सुनता और पढ़ता है, वह निष्पाप हो जाता है। उसे यदि पुत्र की इच्छा हो तो पुत्र मिलता है और भार्या की इच्छा हो तो प्यारी भार्या प्राप्त होती है। जो अपने राज्य से भ्रष्ट हो गया है, वह इस स्तोत्र के पाठ से पुनः राज्य प्राप्त कर लेता है तथा धन से वंचित हुए पुरुष को धन की प्राप्ति हो जाती है। कारागार के भीतर विपत्ति में पड़ा हुआ मनुष्य यदि इस स्तोत्र का पाठ करे तो निश्चय ही संकट से मुक्त हो जाता है। एक वर्ष तक इसका संयमपूर्वक श्रवण करने से रोगी अपने रोग से छुटकारा पा जाता है।
श्रीमद्भागवतम् (10.85.31)
यस्यांशांशांशांशाभागेन
विश्वोत्पत्तिलयोदयः भवन्ति
किला विश्वात्मान्स तं
त्वद्याहं गतिं गता
हिंदी अनुवाद:
हे सर्वात्मा! ब्रह्माण्ड की रचना, पालन और संहार सब आपके विस्तार के एक अंश मात्र से ही होते हैं। आज मैं आपकी शरण में आया हूँ, हे परमेश्वर!
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श्रीमद्भागवतम् (1.3.28)
“एते चांशकलाः पुंसः कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्।
इन्द्रारिव्याकुलं लोकं मृडयन्ति युगे युगे।।”
हिंदी अनुवाद:
श्रीकृष्णद्वैपायन वेदव्यास जी मत्स्य, कूर्म, राम, नृसिंहादि अवतारों के विषय में बोलने के पश्चात् कह रहे हैं कि ये कोई पुरुषोत्तम भगवान् श्रीहरि में अंशावतार, कोई कलावतार और कोई शक्त्यावेश अवतार हैं। प्रत्येक युग में जब भी जगत् असुरों से पीड़ित होता है, तब असुरों के उपद्रव से जगत् की रक्षा करने के लिए ये अवतार हुआ करते हैं। किन्तु, व्रजेन्द्रनन्दन श्रीकृष्ण तो साक्षात् स्वयं-भगवान् (अवतारी) हैं।
श्री कृष्ण समस्त अवतारों के कारण--अवतारीं हैं, स्वयं भगवान् हैं।
भागवत गीता
अध्याय ,10 श्लोक25
महर्षीणां भृगुरहं गिरामरम्येकमक्षरम् ।
यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः
हिंदी अनुवाद:
मैं महर्षियों में भृगु हूँ, ध्वनियों में दिव्य ओम हूँ। मुझे यज्ञों में जपने वाला पवित्र नाम समझो। अचल पदार्थों में मैं हिमालय हूँ।
श्रीमद्भागवतम् (10.85.9)
दिशां त्वम् अवकाशो 'सि दिशाः
खम् स्फोट आश्रयः
नादो वर्ण त्वम् ओंकार आकृतिनाम्
पृथक-कृतिः
हिंदी अनुवाद:
हे भगवान कृष्ण आप दिशाएँ और उनकी समायोजन क्षमता, सर्वव्यापी आकाश और उसके भीतर रहने वाली मौलिक ध्वनि हैं। आप ध्वनि के आदिम, अव्यक्त रूप हैं; पहला अक्षर, ॐ; और श्रव्य वाणी, जिसके द्वारा ध्वनि, शब्दों के रूप में, विशेष संदर्भ प्राप्त करती है।
VAIKUNTH nahi golok jana hai humko
(ब्रह्मवैवर्तपुराण-उत्तरभाग श्रीकृष्णजन्मखण्ड अध्याय - ४- श्लोक-१९४-१९५- नारायण-नारदमुनि का संवाद)
गोलोक ब्रह्माण्ड से बाहर और उपर है। उससे उपर दूसरा कोई लोक नहीं है। उपर सब कुछ शून्य ही है। वही तक सृष्टि की अन्तिम सीमा है। सात रसातलों से नीचे सृष्टि नहीं है। रसातलों से नीचे जल और अन्धकार है, जो अगम्य और अदृश्य है।
पूज्य महाराज जी के श्री चरणों मे कोटि कोटि प्रणाम🙏🙏 Shri 💙💙 Radha 💙💙🙏🙏 Shri harivansh 🙏🙏
जय श्री राधे जय श्री राधे राधे गोविन्द राधे गोविन्द 🌹🌹🌹🌹🌺🌺🌺
ब्रह्म वैवर्त पुराण
ब्रह्मखण्ड (अध्याय १७)
ब्रह्मा, विष्णु और शिव आदि देवेश्वर, देवसमूह और चराचर प्राणी- ये सब आप भिन्न-भिन्न ब्रह्माण्डोंमें अनेक हैं। उन ब्रह्माण्डों हैं और देवताओंकी गणना करनेमें कौन समर्थ है? उन सबके एकमात्र स्वामी भगवान् श्रीकृष्ण हैं,
स्कंद पुराण वैष्णव खंड वासुदेव-महात्म्य अध्याय 16.46
वह स्थान भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए आये हुए अनेक ब्रह्माण्ड के देवताओं से भरा हुआ था, तथा ब्रह्मा और शंकर जैसे महान देवता भी अपने हाथों में पूजा की सामग्री लिये हुए थे।
भागवत गीता
अध्याय , 11श्लोक 15
अर्जुन उवाच
पश्यामि देवों तव देवा
देहे सर्वांस तथा भूतविशेषसंघान
ब्राह्मणम ईशं कमलासनस्थं
ऋषिंश च सर्वान् उरगंश च दिव्यन्
हिंदी अनुवाद:
अर्जुन ने कहा: हे श्री कृष्ण! मैं आपके शरीर के भीतर सभी देवताओं और विभिन्न प्राणियों के समूहों को देखता हूँ। मैं कमल के फूल पर बैठे ब्रह्मा को देखता हूँ; मैं शिव, सभी ऋषियों और दिव्य नागों को देखता हूँ।
अर्जुन ने कहा कि वह तीनों लोकों से आए असंख्य प्राणियों को देख रहा था, जिनमें स्वर्ग के देवता भी शामिल थे। कमलासनास्थम शब्द भगवान ब्रह्मा को संदर्भित करता है, जो ब्रह्मांड के कमल चक्र पर विराजमान हैं। भगवान शिव, विश्वामित्र जैसे ऋषि और वासुकी जैसे नाग सभी ब्रह्मांडीय रूप में दिखाई दे रहे थे।
Sri Jagannath Mahaprabhu ki jai 🙏🏼🙏🏼🙏🏼
Radhe Radhe 🙏🏼🙏🏼🙏🏼
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