Devta Shirgul Maharaj, Pain Kuffer, Pajhota Valley, Rajgarh, Sirmaur, Himachal Pradesh ❣️⚔️💯

แชร์
ฝัง
  • เผยแพร่เมื่อ 3 ก.พ. 2024
  • भगवान शिव के अंशावतार शिरगुल देव
    शिरगुल महाराज के भाई-बहनों के पुजनीय स्थल :
    माँ भंगायणी देवी : देव शिरगुल
    को मुक्त करते समय गुग्गा पीर
    को कारागाह का पता देने का साहस
    भंगाइन ने किया था। जिसे शिरगुल ने
    धर्मबहिन बनाया ओर अपने साथ लाकर
    चूड़धार के मार्ग पर भंगाइन देवी को एक
    पर्वत पर ठहरा दिया जहां उसके लिए
    मोड़ (मन्दिर) बनाया गया। जहां पर
    भंगाइन देवी की पत्थर
    की मूर्ति की स्थापना की गई।
    सिरमौर स्टेट गेजटियर के अनुसार
    भंगाइन देवी के मन्दिर के स्थान पर एक
    ऊंचा सा पत्थर था। जहां गांव
    डसाकना तथा टिक्करी ग्राम के
    ग्वाले गाय तथा बकरियां चराने ले आते
    थे। कौतूहलवश ग्वालों ने पत्थर तोड़
    दिया किन्तु जब वे दूसरे दिन गए तो वह
    यह देखकर हैरान हुए
    कि तोड़ा गया पत्थर
    अपनी पहली अवस्था में था।
    दूसरे दिन
    भी पहले दिन
    वाली घटना की पुनरावृत्ति देखकर
    लोगों को हैरानी हुई। किसी देवी ने
    लोगों को स्वपन में दर्शन दिए। अत:
    यहां पर देवी का मन्दिर बनाया गया।
    इसके पुजारी भाट होते थे।
    यहां प्रति वर्ष
    नवरात्रों को मेला लगता है। भंगायण
    देवी की बड़ी मान्यता है।
    इनकी मूर्ति पत्थर की है और इसे वस्त्र
    नहीं पहनाए जाते। मन्दिर भव्य
    बनाया गया है। यहां रात्रि को ठहरने
    का उचित प्रबन्ध है। यहां पर
    भण्डारा भी लगता है। देश के कोने-
    कोने से लोग यहां पर श्रद्धा से आते हैं।
    बकरा बलि अब निषिद्ध है। चारों ओर
    हिमालय का मानसरोवर पर्वत,
    उत्तराखण्ड़ के मनोरम दृश्य
    को अवलोकन किया जा सकता है।
    बिजट : बिजट देवगाथा शिरगुल देव के
    साथ जुड़ी है। देव बिजट का जन्म ग्राम
    शाया में हुआ।
    उनकी माता दमयन्ती सराहां के
    राणा देबू की इकलौती पुत्री
    थी।
    पिता भुकडू की मृत्यु के पश्चात्
    इनका जन्म हुआ। जन्म के समय जब
    इनकी माता गांव को लौट
    रही थी तभी अचानक उन्हें
    प्रसूति पीड़ा हुई। अचानक
    बिजली की तीव्र गर्जना के साथ
    इनका जन्म हुआ।
    अत: बिजली के नाम से
    ही इनका नाम बिजट पड़ा। पुत्र
    उत्पत्ति के शीघ्र बाद
    इनकी माता का देहान्त हो गया।
    अत:
    शिरगुल की माता दुधमा ने
    इनका लालण-पोषण किया।
    उनकी मृत्यु के बाद उनके नाना उन्हें
    तथा बहिन बिजाई को साथ सराहां ले
    गये।
    नाना देबू राणा सरांहा की मृत्यु के
    बाद उन्हें विरासत में हामल, चेता,
    चांदना, धरोच, जुब्बल, सिरमौर
    लादी तथा जौनसार मिला।
    जिसका शासन प्रबन्ध इन्होंने
    कुशलता से निभाया।
    देव शिरगुल ने
    अपना राज्य मंत्री देवीराम व भाई
    चन्द्रेश्वर में बांट दिया था।
    चूड़धार
    विभाजक रेखा मानी गई। देवीराम ने
    राज्य अपने पुत्र रबू तथा छिनू में बांटने
    के पश्चात् उन्हें आदेश दिया के वे
    देवों की मूर्तियों को बनाकर मन्दिर में
    स्थापित करें। देबू ने शिरगुल तथा बिजट
    की अष्ठ धातुओं
    की मूर्तियों को कुणल सुनार से
    बनवा कर अपने राज्य मन्दिरों में
    स्थापित किया। किन्हीं कारणों से
    बिजट, बिजाई और घुडय़ाली लोज
    पण्डित की पत्नी की बहिन बयोंग
    ग्राम की श्मशानघाट की गुफा से
    प्राप्त की गई।
    जनश्रुति के अनुसार जब
    पंजाह जहां से तीनों देवी, देव
    की मूर्तियां लाई गई थी, जब
    उनकी पूजा की जा रही
    थी तो कुलग
    के ब्राह्मण ने बिजट
    की मूर्ति चूरा ली। उसे घर पर
    रखा किन्तु देवदोष के डर से उसे मूल
    देवस्थान सराहां ले गया, वहां इसे पुन:
    बड़े शान से स्थापित किया गया।
    जब असुर आज्ञासुर जो देवताओं
    तथा उनके भक्तों का घोर शत्रु था, उसने
    शिरगुल की अनुपस्थिति का लाभ
    उठाकर शिरगुल भक्त चुहरू पर आक्रमण
    कर दिया।
    चुहरू को बचाने शिरगुल
    दिल्ली से पौण घोड़े पर बैठकर शीघ्र
    वापस आए। असुर को मारने के लिए
    शिरगुल की बिजट देवता ने
    बिजलियां गिराकर सहायता की।
    बिजट पहाड़ी शब्द बीज (बिजली)
    से
    बना है।
    इसे बिजली का देव
    माना गया है। असुर पर बिजली बन कर
    गिरा था। वह स्थान पवित्र मानकर
    बिजट की प्रतिमा स्थापित की गई
    और देव के लिए देवठी (देवालय)
    का निर्माण किया गया जो आज
    इसका मुख्य देवालय है।
    सराहां से ‘‘देवा जाति’’ का कोई
    व्यक्ति पत्थर की इस
    मूर्ति को सिरमौर के देवना स्थान पर
    ले आया ओर वहीं इस
    मूर्ति की स्थापना की।
    जिसे
    ‘‘जेठा मोरा’’ कहते हैं यह मूर्ति सबसे
    शक्तिशाली और
    करामाती मानी जाती है। इस मूर्ति के
    बांई ओर छोटी-छोटी 27 मूर्तियां हैं
    जो पीतल की है। इन मूर्तियों में से 23
    मूर्तियों को न तो कभी वस्त्र पहनाये
    जाते हैं और न ही आभूषण, शेष चार पूराने
    रेशमी वस्त्रों से ढक़ी हैं। इनके गले में
    ऊनी वस्त्र और कुल मिलाकर 80
    चांदी के रूपये तथा 15 सोने
    की मोहरों से सजाया गया है।
    बिजट
    का छत्र और पालकी चांदी की है।
    बिजट का मेला बिशु के रूप में
    मनाया जाता है, जो देवना में प्रतिवर्ष
    किन्तु चोकर, सेंज तथा अन्धेरी में तीसरे
    वर्ष आयोजित होता है जो बैसाख
    या ज्येष्ठ मास
    की किन्हीं तिथियों में
    मनाया जाता है।
    देवना में मन्दिर के परम्परागत, पुजारी

ความคิดเห็น • 1