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पचरा चर्चा गीत || बेहतरीन पचरा देवी गीत || PACHRA GEET || BHARAT LOK DARSHAN

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  • เผยแพร่เมื่อ 19 ส.ค. 2024
  • गीत - हुक्का फोरयं चिलम दइ मारा
    लतबा चारि भतारेउ का मारा ओनखर दिदबा देखा न
    ओनखर दिदबा देखा न धरयं बा नइहर के डगरिया
    ओनखर दिदबा देखा न...
    ओसरा से निकरय दुअरबा मा ठुनकय
    कहय नहीं हो जाबय न
    बिन पइरी केर गमनबा नहीं हो जाबय न
    हुक्का फोरय चिलम दय मारय
    लतबउ चारि भतारेउ का मारय
    ओनखर दिदबा देखा न
    धरइबा नइहर कय डगरिया ओनखर दिदबा देखा न
    कोहरौंही गाथा गायन परम्परा कुम्हार जाति कि एक शैली विशेष है जिसके अंतर्गत विभिन्न तरह के गाथाएँ गायी जाती हैं | यह परंपरा मूल रूप से गायिकी प्रधान है परन्तु साथ ही साथ इसमे अभिनय पक्ष भी उतना ही मजबूत नजर आता है जितना की गायिकी पक्ष | इसका मुख्य गायक गाते हुए अभिनय करता है | इसका कारण कही भी यह अरुचिपूर्ण या ऊबाऊ नहीं प्रतीत होता यह इसके प्रदर्शन पक्ष की विशेषता है | यदि हम इसकी मौखिक परम्परा के कलारूपो के बात करे तो कोंहरौंही भजन के आलावा अन्य कलारूप भी हैं जो जनमानस में प्रचलित और सराहनीय हैं | मौखिक परम्परा में गीतों और कहावतो के पीछे चल रहे कथानको का विशेष महत्व है | हर कहावत का एक अपना कथ्य है जो कालांतर समय के बदलते हुए अब जनमानस से विलुप्त से हो गये हैं | यंहा हम कोंहरौंही शैली अंतर्गत गाई जाने वाली तामाम गाथा गायकी व अन्य गीतों का नाम दे रहे हैं , जिसमे प्रदर्शनकारी और मौखिक परम्परा दोनों तरह के कलारूप शामिल हैं -
    1- कृष्ण लीला
    2- सती अनुसुइया
    3- राम कथा
    4- कबीर की उलट बासियाँ
    5- शिव विवाह
    6- पितमा
    7- बनजोरबा
    8- सजनई
    9- बिरहा
    10- सरवन गाथा
    11- चिहुरी
    12- पचरा
    13- संस्कार गीत
    14- ऋतू गीत
    15- बारहमासा
    16- निर्गुण गीत
    17- कथा गायकी
    18- कहावत उखान
    19- चदैनी गाथा गायन
    20- गढ़ केउंटी
    21- विशेष रूप से मटका वादन
    22- केहरा नृत्य व यादव जाति के अन्य नृत्यों का प्रदर्शन
    और अंत में यही कि जो पूरी दुनिया को आलोकित करने वाले दिए का निर्माण करता है, आज उसी का जीवन अँधेरे में है | कुम्हार जाति के जातिगत पारम्परिक शिल्प कला और कोंहरौहीं शैली में गाई जाने वाली तमाम गाथाओं के संरक्षण की दिशा में कार्य होना अति आवश्यक है वर्ना वह दिन दूर नहीं जब यह कला भी विलुप्तता की कागार पर होगी | भुखमरी झेल रहे कुम्हारों के दिन फिर से बहुरने के असार नज़र आ रहे हैं क्या कभी हम ऐसा कह पायेंगे | सरकार को चाहिए कि उन्हें मुफ्त मिट्टी मुहैया कराने के साथ ही उनके द्वारा निर्मित मिट्टी के बर्तनों कि बिक्री का भी पक्का इंतजाम करे | इसके तहत सरकारी विभागों में मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल अनिवार्य कर दिया जाय | और अब कुल्हड़ में चाय पीना आवश्यक कर दिया जाय | और मिट्टी के बर्तन बनाकर कुम्हार अपना जीवन यापन करे साथ ही सरकार कुम्हार जाति और जाति की कला के उत्थान के लिए बेहतर कदम उठाये क्यों कि दीपों के कारीगर आज गुमनामी की ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं |
    नरेन्द्र सिंह सीधी

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