🔱 ताड़केश्वर महादेव मंदिर की अनसुनी कहानी 🔱 | Travel vlog | Uttarakhand Vlog | Mini Vlog

แชร์
ฝัง
  • เผยแพร่เมื่อ 3 ต.ค. 2024
  • 🔱 ताड़केश्वर महादेव मंदिर की अनसुनी कहानी 🔱 | Travel vlog | Uttarakhand Vlog | Mini Vlog| Hindivlog
    #vlog
    #ytvlogs
    #youtubevlog
    #thevibranttales
    #tadkeshwar
    #uttrakhand
    #entertainmentvlog
    #mahadev
    #shiva
    #bholenath
    About
    Tarkeshwar Mahadev is a village 36 km from Lansdowne and at a height of 1,800 m. The place is known for its temple dedicated to Shiva. Surrounded by thick forests of cedar and pine, it is an ideal place for those who seek for beauty in nature. During Shivratri, a special worship is held. Wikipedia
    Translated by Google
    तारकेश्वर महादेव लैंसडाउन से 36 किमी दूर और 1,800 मीटर की ऊंचाई पर एक गांव है। यह स्थान शिव को समर्पित अपने मंदिर के लिए जाना जाता है। देवदार और देवदार के घने जंगलों से घिरा यह स्थान उन लोगों के लिए एक आदर्श स्थान है जो प्रकृति में सुंदरता की तलाश में हैं। शिवरात्रि के दौरान विशेष पूजा होती है। विकिपीडिया
    हिन्दी में खोजें : ताड़केश्वर सिद्धपीठ ताड़केश्वर धाम
    Elevation: 2,500 m (8,202 ft)
    People also ask
    How far is Tarkeshwar Mandir from Kotdwar?
    How far is Lansdowne from Tarkeshwar temple?
    What is the story behind the Tapkeshwar Mahadev Temple?
    देवभूमि उत्तराखंड को महादेव शिव की तपस्थली भी कहा जाता है। ताड़केश्वर महादेव मंदिर (Tarkeshwar Mahadev Temple), उत्तराखंड के पौड़ी जिले के ‘गढ़वाल राइफल’ के मुख्यालय लैंसडाउन (lansdowne) से 34 किलोमीटर दूर और समुद्रतल से लगभग 1800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। स्कंद पुराण के केदारखंड में वर्णित विष गंगा व मधु गंगा उत्तर वाहिनी नदियों का उद्गम स्थल भी ताड़केश्वर धाम में माना गया है। यह स्थान “भगवान शिव” को “श्री ताड़केश्वर मंदिर धाम” या “ताड़केश्वर महादेव मंदिर (Tarkeshwar Mahadev Temple)” के रूप में समर्पित है। इस मंदिर का नाम उत्तराखंड के प्राचीन मंदिरों में आता है, और इसे “महादेव के सिद्ध पीठों” में से एक के रूप में भी जाना जाता है।
    देवदार, बुरांश और चीड़ के घने जंगलो से घिरा, यह उन लोगों के लिए आदर्श स्थान है, जो प्रकृति में सौन्दर्य की तलाश करते है। यहाँ पौराणिक महत्व है कि देवी पार्वती ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए ताड़केश्वर में प्रार्थना की थी, कई भक्तों का यह भी मानना है कि भगवान शिव अभी भी इस स्थान पर हैं और गहरी नींद में है। एक समय ताड़ के बड़े पेड़ो से गिरी छोटी टहनी और पत्तो को ही यहाँ के प्रसाद के रूप में दिया जाता था।
    आइए जानते हैं इस मंदिर की विशेषता के बारे में…
    माता लक्ष्मी ने खोदा था कुंड
    मंदिर परिसर में एक कुंड भी है। मान्यता है कि यह कुंड स्वयं माता लक्ष्मी ने खोदा था। इस कुंड के पवित्र जल का उपयोग शिवलिंग के जलाभिषेक के लिए होता है। जनश्रुति के अनुसार यहां पर सरसों का तेल और शाल के पत्तों का लाना वर्जित है। लेकिन इसकी वजह के बारे में लोग कुछ कह नहीं पाते।
    ताड़कासुर ने यहीं की थी तपस्या
    पौराणिक कथाओं के अनुसार, ताड़कासुर नामक राक्षस ने भगवान शिव से अमरता का वरदान प्राप्त करने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की थी। शिवजी से वरदान पाकर ताड़कासुर अत्याचारी हो गया। परेशान होकर देवताओं और ऋषियों ने भगवान शिव से प्रार्थना की और ताड़कासुर का अंत करने के लिए कहा।
    इसलिए पड़ा मंदिर का नाम 'ताड़केश्वर'
    भोलेनाथ ने असुरराज ताड़कासुर को उसके अंत समय में क्षमा किया और वरदान दिया कि कलयुग में इस स्थान पर मेरी पूजा तुम्हारे नाम से होगी इसलिए असुरराज ताड़कासुर के नाम से यहां भगवान भोलेनाथ 'ताड़केश्वर' कहलाये।
    एक अन्य दंतकथा भी यहां प्रसिद्ध है कि एक साधु यहां रहते थे जो आस-पास के पशु पक्षियों को सताने वाले को ताड़ते यानी दंड देते थे। इनके नाम से यह मंदिर ताड़केश्वर के नाम से जाना गया।
    माता पार्वती हैं मौजूद छाया बनकर
    ताड़कासुर के वध के पश्चात् भगवान शिव यहां विश्राम कर रहे थे, विश्राम के दौरान भगवान शिव पर सूर्य की तेज किरणें पड़ रही थीं। भगवान शिव पर छाया करने के लिए स्वयं माता पार्वती सात देवदार के वृक्षों का रूप धारण कर वहां प्रकट हुईं और भगवान शिव को छाया प्रदान की। इसलिए आज भी मंदिर के पास स्थित सात देवदार के वृक्षों को देवी पार्वती का स्वरूप मानकर पूजा जाता है।

ความคิดเห็น • 26