सजा - रवीन्द्रनाथ ठाकुर की लिखी कहानी | Saja - A Story by Rabindranath Tagore

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  • เผยแพร่เมื่อ 12 ม.ค. 2025

ความคิดเห็น •

  • @DKJain-lf1fv
    @DKJain-lf1fv 2 หลายเดือนก่อน +1

    बहुत मार्मिक प्रसंग - पर कहानी का शीर्षक - आत्महत्या - हो सकता था . एक ऐसी स्त्री जो निर्दोष थी ' ने जानबूझकर अपने सिर लगे नाटकीय और झूठे इल्जाम को अपने सिर लेने का मौका न छोड़ा . फांसी उसके जीवन का अंत करेगी ' जानती भी - परंतु गले में खुद फंदा लगाकर कहीं लटककर अपनी जान देने की पारंपरिक आत्महत्या करने की विधि से नहीं , कानून द्वारा दी गई सजा को गले का हार बना लिया . अपने पति के प्रति अंतर्मन में पल रही नफ़रत का ऐसा अंजाम देकर उसने एक प्रकार से आत्महत्या ही की थी ।
    एक बड़ा प्रश्न प्रायः पूछा जाता है कि क्या जज यह अनुभव करने पर कि यद्यपि प्रमाण आरोपी के विरुद्ध जा रहे हैं किंतु जज को लग रहा है कि आरोपी निर्दोष है और उसे झूठे प्रमाण इकठ्ठे करके फंसाया गया है - अपनी अंतरात्मा की आवाज पर बरी कर सकता है . जज द्विविधाग्रस्त कितना भी हो , यदि युक्तिसंगत शंका का आधार न मिले . तो जज को दोषी मानकर सजा देना ही कानून का पालन करना होता है .

  • @Sapnasinghofficial499
    @Sapnasinghofficial499 3 หลายเดือนก่อน

    ❤❤❤

  • @nishusharma9750
    @nishusharma9750 3 หลายเดือนก่อน

    ME HAR RIJ KAHANIYA SUNTI HU

  • @siddheshshinde9997
    @siddheshshinde9997 3 หลายเดือนก่อน +1

    कहानी को लंबा खिचणेसे बोअर हो रहा है.