UKGS 360° History📖(एक बार सुन लो) by Sonu Sir🔥🔥||Hinglish|| गोरखा शासन||
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- เผยแพร่เมื่อ 10 ก.ย. 2024
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Homeउत्तराखण्ड में गोरखा शासन उत्तराखण्ड में गोरखा शासन/Gorkha rule in Uttarakhand
उत्तराखण्ड में गोरखा शासन/Gorkha rule in Uttarakhand
www.hinsoli.com March 03, 2022
उत्तराखण्ड में गोरखा शासन/Gorkha rule in Uttarakhand
उत्तराखण्ड में गोरखा शासन
जनवरी 1790 में गोरखों ने अमर सिंह थापा, हस्तीदल चौतरिया व शूरवीर थापा के नेतृत्व में कुमांऊ पर आक्रमण किया
गोरखा सेना दो टुकड़ों में बंट गई थी, एक काली नदी पार कर सौर क्षेत्र में प्रवेश व दूसरी सेना ने विसुंग पर अधिकार कर अल्मोड़ा की ओर बढ़ी
1790 ई० हवालबाग में हुए साधारण युद्ध में चंद राजा महेन्द्र चंद परास्त हुआ और अल्मोड़ा किले पर गोरखों का कब्जा हुआ
कुमाऊँ पर गोरखाओं के अधिकार के बाद प्रथम गोरखा सूबेदार या सुब्बा जोग मल्ल शाह नियुक्त हुआ
कुमाऊँ पर गोरखाओं का अधिकार 1790 ई० से 1815 ई0 तक रहा. इनका 25 वर्ष तक शासन रहा था कुमाऊँ का दूसरा सूबेदार काजी नर शाही को बनाया गया था
नरशाही के काल में मंगलवार रात्रि कांड हुआ था, जिसके लिए प्रचलित कहावत मंगल की रात और नरशाही का पाला है
तीसरा गोरखा सुबेदार अजब सिंह थापा को बनाया गया
अजब सिंह थापा के समय अल्मोंडा के 1500 ग्राम प्रमुखों का सामूहिक नरसंहार हुआ था
1806 ई० में चौतरिया बमशाह सुबेदार बना, जो 1814 ई0 तक बना रहा
1815 ई0 में सुबेदार फेजर साहब बहादुर था
नेपाल में गोरखा राज्य
नेपाल पहले छोटी-छोटी 24 रियासतों में विभक्त था. इनमें से एक राज्य में नरभूपाल शाह राज करता था
नेपाल एकीकरण का कार्य पृथ्वी नारायण शाह ने 1742 से 1775 ई0 के बीच किया
इसके बाद उसके पुत्र प्रतापशाह ने 1778 ई0 तक राज किया
1778 ई0 में रणबहादुर शाह राजा बना, जिसकी संरक्षिका रानी इन्द्रलक्ष्मी थी
रणबहादुर शाह 1778 ई0 से 1804 ई0 तक नेपाल का राजा था
गोरखा सेना ने 1790 ई0 में हर्षदेव जोशी की सहायता से अल्मोड़ा पर अधिकार कर लिया था
राहुल सांकृत्यायन ने हर्षदेव जोशी को विभीषण की संज्ञा दी
1790 ई0 में रणबहादुर शाह केवल 15 वर्ष का था, उसके संरक्षक उसके चाचा चौतरिया बहादुर शाह था
गोरखो ने 1791 ई० में लंगूरगढ़ के किले पर घेरा डाला था 1792 ई० में लंगूर गढ़ की संधि हुयी, जिसके तहत प्रधुम्न शाह कुछ राशि देना स्वीकार किया
उतराखण्ड में गोरखा शासन को गोरख्याली कहा जाता है ने
1803 ई0 में अमर सिंह थापा व हस्तिदल चौतरिया के नेतृत्व में गोरखों ने आपदा ग्रस्त गढ़वाल पर आक्रमण किया
1804 ई0 में अमरसिंह थापा व उसके पुत्र रणजोर थापा ने गढ़वाल कुमाऊँ का प्रशासन अपने हाथ में ले लिया।
हस्तिदल शाह गढ़वाल में गोरखा प्रशासक रहा था 1804 के बाद नेपाल के राजा बिक्रम शाह था
गोरखा शब्दावली
ब्राह्मण दासों को कठुआ कहा जाता था
गोरखा शासन में न्यायाधीश को विचारी कहा जाता था
गोरखा कार्यरत सैनिको को जागरिया कहा जाता था
दो वर्ष के लिए सेवा मुक्त सैनिकों को ढाकरिया कहा जाता था
गोरखा लोग शिल्पकर्मियों को कामी कहते थे
गोरखा लोग नाई को नौ कहते थे
गोरखा लोग दशहरा को दशाई कहते हैं यह इनका प्रिय त्योहार है
मंदिरों को दान भूमि को गूंठ भूमि कहा जाता था
गोरखा प्रशासन
1790 अल्मोड़ा पर अधिकार के समय नेपाल नरेश रणबहादुर शाह था
सच व झूठ का पता करने के लिए दिव्य अग्नि परीक्षा होती थी
दिव्य परीक्षा तीन प्रकार की होती थी गोला दीप, कढ़ाई दीप और तराजू दीप
गोला दीप प्रथा में हाथ में लोहे का डंडा रखकर कुछ दूरी तक चलना होता था गवाह के बयान पर संदेह होने पर उसके सिर पर महाभारत या हरिवंश रखकर कसम कराई जाती थी
गोरखा सैनिकों का मुख्य हथियार खुकरी था
खुकरी बनाने का प्रमुख केन्द्र गढ़ी नगर था
नेवार जाति के लोहार खुकरियां बनाते थे
गोरखों ने गढ़वाल व कुमाऊँ में घरों की छतों पर महिलाओं को चढ़ने पर पाबंदी लगायी
गोरखा मांस व मदिरा के शौकीन थे उन्हें सुअर का मांस प्रिय था
गोरखों ने केदारनाथ, बद्रीनाथ व जागेश्वर आदि जगहों में तीर्थ यात्रियों के लिए सदावर्त लगाया
चंपावत के बालेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार 1796 में सूबेदार महावीर थापा ने कराया
1797 ई० में रणबहादुर शाह की पत्नी कान्ति देवी ने शतोली | परगने के कुछ ग्रामों को केदारनाथ मंदिर में सदावर्त चलाने के लिए दान दिया
गरूड़ जाति के गोरखे मोस्टा को अपना ईष्ट देवता मानते थे
गोरखों की राजभाषा गोरखाली है
नेपाल में समूचा साहित्य नेवारी राजभाषा में मिलता है।
रेपर ने 1808 ई0 से 1811 ई0 तक गढ़वाल का सर्वेक्षण किया
गोरखों में कहावत थी कि ब्रह्मणों के पैर पूजे जाते हैं, सिर नहीं
गोरखों ने कुमाऊँ में पहला बन्दोबस्त 1791-92 ई० में किया, जो मालगुजारी से सम्बन्धित था
घुरही-पिछही नाम से टैक्स सालाना प्रत्येक परिवार से 2रुपये लिया जाता था
गोरखाकालीन कर
गोरखों ने ब्राहमणों पर कुसही नामक कर लगाया,
गोरखाओं ने चंद राजाओ द्वारा लगाए गए छतीस रकम व बतीस कलम वाले अनेक करो को समाप्त किया
गोरखा शासन में सेवा के बदले दी जाने वाली भूमि को मनौचौल कहा जाता था
पुगाड़ी कर - भूमि कर था, इससे लगभग डेढ लाख आय होती थी सैनिकों को वेतन इस कर से दिया जाता था
टींका भेंट कर - शादी व विवाह के समय
मांगा कर - प्रत्येक नौजवान से एक रू0 में लिया जाता था
टांड कर-बुनकरों से
तिमारी- सैनिकों को देय वेतन, जिसमें फौजदार को 4 आना तथा सुबेदार का दो आना मिलता था
सलामी- एक प्रकार का नजराना
मिझारी कर-शिल्पकर्मियों व जगरिया ब्रह्मणों से
मौंकर- प्रतिपरिवार लगता था, चंद राजाओं ने भी लगाया
सायर-सीमा व चुंगी कर
मरों - पुत्रहीन व्यक्ति से
घीकर- दुधारू पशुओं से
रहता - गांव छोड़कर भागे हुए लोगो पर
बहता कर - छिपाई सम्पति में लगने वाला कर
गोबर व पुछिया नामक कर भी गोरखा कालीन थे
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Thank you sir❤
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Sir jila Series mene aapki purani wali dekhi aur aapke notes 📝bhut kaam ke apne bht मेहनत की है आप नोटस भी फ्री मे दे रहे है।। 😊
Guruji baht achhi class hai sari hi
आपकी मेहनत देख के में खुद ही पढ़ने बैठ जाता हूँ।। सलाम हैं आपके डेडिकेशन को।।
Thnkss
Sir thoda bda bda likha kijiye kuch ni dikhayi deta board pr please
Sir aapki Playlist bhut kaam ki h tecnic aapki objetive question lag jate h
Ati ati sunder guruji 👍 🙏 ♥️
Good evening sir
❤❤great 👍 sir
Ye hoti hai asli siksak ki padhai baki to bakvas karte hai
Sir apki uttarakhand ga 360 ki list dekh ek be pyq nhi bachra aur new question be lgre jo be apka phadvya hai revision k jorat ni padri
Bhai sir ki knowledge bhut
Economic😂me बहुत mjk की hui h क्लास में
😊😊😊
Sir नोट्स
❤❤❤❤❤❤