यह कहानी आपके जीवन के प्रति पूरा दृष्टिकोण ही बदल देगी
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- เผยแพร่เมื่อ 8 ก.พ. 2025
- धवल हमेशा से जिज्ञासु था। उसके मन में बचपन से ही यह प्रश्न उठते थे-हम कौन हैं? मृत्यु के बाद क्या होता है? क्या आत्मा सच में अमर है? जब भी वह यह सवाल किसी से पूछता, तो उसे अस्पष्ट जवाब ही मिलते।
एक दिन, परिवार एक पुराने मंदिर के दर्शन के लिए गया। जैसे ही धवल ने मंदिर के भीतर कदम रखा, उसके भीतर अजीब-सा कंपन हुआ। उसे लगा जैसे वह इस जगह को जानता हो। उसने चारों ओर देखा और बुदबुदाया-मैं यहाँ पहले भी आ चुका हूँ।
माता-पिता चौंक गए। लेकिन बेटा, हम तो पहली बार यहाँ आए हैं।
धवल ने ध्यान से मंदिर का निरीक्षण किया। फिर अचानक वह पुजारी के पास गया और पूछा-क्या यहाँ एक गुप्त दरवाज़ा है, जो पूजा घर के पीछे खुलता है?
पुजारी की आँखें आश्चर्य से फैल गईं। हां... लेकिन यह दरवाजा दशकों से बंद पड़ा है। तुम्हें कैसे पता?
धवल के पास कोई उत्तर नहीं था। लेकिन उस दिन के बाद, उसके भीतर एक बेचैनी घर कर गई। उसने सोचना शुरू किया-क्या यह सब सच में यादें हैं? क्या मेरी आत्मा पहले भी इस जगह पर आ चुकी है?
उस रात वह सो नहीं सका। उसके मन में एक प्रश्न उमड़ रहा था-अगर आत्मा अमर है, तो इसका वैज्ञानिक प्रमाण क्या है?
अगले दिन, उसने अपनी विज्ञान की किताब उठाई और पढ़ा-ऊर्जा को न तो बनाया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है। यह केवल एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित होती है।
यह पढ़कर धवल चौंक गया। अगर आत्मा एक ऊर्जा है, तो यह भी नष्ट नहीं हो सकती! मतलब हमारी आत्मा अमर है।
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उसने अपनी दादी से यह बात बताई। वे मुस्कराईं और कहा-बिल्कुल सही, बेटा। यही बात भगवान कृष्ण ने अर्जुन को भगवद्गीता में समझाई थी।
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय,
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-
न्यन्यानि संयाति नवानि देही॥
अर्थात, जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है, वैसे ही आत्मा पुराने शरीर को छोड़कर नए शरीर में प्रवेश करती है।
धवल को यह सुनकर अजीब-सा लगा। तो क्या कृष्ण भी यही कह रहे हैं कि आत्मा अमर है?
दादी ने सिर हिलाया-बिल्कुल! आत्मा कभी मरती नहीं, केवल शरीर बदलता है।
अब धवल को समझ में आ रहा था कि विज्ञान और आध्यात्मिकता एक ही सत्य की ओर इशारा कर रहे हैं।
लेकिन अगर आत्मा इतनी शक्तिशाली है, तो हमें अपनी आत्मा की यादें क्यों नहीं रहतीं?
इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए धवल ने ध्यान करना शुरू किया। शुरू में उसका मन भटकता, लेकिन धीरे-धीरे उसने सीखा कि अपने विचारों को कैसे स्थिर किया जाए।
एक दिन, ध्यान के दौरान उसने खुद को एक विशाल जंगल में पाया। सामने एक वृद्ध योगी बैठे थे। उन्होंने मुस्कराकर कहा-तुम्हारी आत्मा ब्रह्मांड का सारा ज्ञान समेटे हुए है। बस तुम्हें इसे पहचानना है।
लेकिन यह कैसे संभव है? धवल ने पूछा।
योगी बोले-क्या तुम्हें पता है कि तुम्हारे शरीर की हर कोशिका ब्रह्मांड की ऊर्जा से बनी है? जो तत्व इस पूरे ब्रह्मांड में हैं, वही तुम्हारे शरीर में भी हैं। तो फिर तुम ब्रह्मांड से अलग कैसे हुए?
धवल स्तब्ध रह गया।
अब वह समझ चुका था कि ईश्वर कोई बाहरी शक्ति नहीं है। जो ब्रह्मांड चला रहा है, वही शक्ति उसके भीतर भी है।
अगर ब्रह्मांड की ऊर्जा मेरे भीतर है, अगर मैं स्वयं आत्मा हूँ जो कभी मर नहीं सकती, तो क्या मैं भी ईश्वर के समान हूँ?
उसकी चेतना में उत्तर गूँजा-हाँ। जो स्वयं को पहचान लेता है, वह ईश्वर बन जाता है।
अब उसे समझ आ चुका था कि जीवन की हर समस्या का उत्तर भीतर ही है। लोग बाहरी दुनिया में समाधान खोजते रहते हैं, लेकिन असली शक्ति तो भीतर छिपी है।
धवल की यह यात्रा हमें यही सिखाती है-आत्मा एक ऊर्जा है, जिसे नष्ट नहीं किया जा सकता। भगवद्गीता में भी कहा गया है कि आत्मा अमर है। हमारा शरीर ब्रह्मांड के उन्हीं तत्वों से बना है, जिससे संपूर्ण सृष्टि बनी है। इसलिए, हम स्वयं में ही ईश्वर हैं।
जो भी इस सत्य को पहचान लेता है, उसके लिए जीवन में कोई भय, कोई चिंता, कोई दुख नहीं बचता।
स्वयं को पहचानो, क्योंकि तुम स्वयं ईश्वर हो। तुम्हारे भीतर संपूर्ण ब्रह्मांड छिपा है!
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