कबीर जयंती llसतगुरू की कृपा ll गुरुदेव कौ अंग ll
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- เผยแพร่เมื่อ 2 ต.ค. 2024
- कबीर जयंती
सतगुरू की कृपा
कबीर-वाणी को पढ़ना, समझना व गुनना हमें जीवन जीने का नया संबल प्रदान करती है। कबीर जयंती के अवसर पर सतगुरू को समर्पित 'गुरुदेव कौ अंग ' से उद्धृत कुछ साखियाँ :-
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सतगुरू की महिमा अनंत, अनंत किया उपगार।
लोचन अनँत उघाड़िया, अनँत दिखावनहार।।
भावार्थ:- सतगुरू की महिमा व उनके किये उपकार से तो अनंत तक दिखाई देने लगा।
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गुरू गोविंद तो एक है, दूजा यह आकार।
आपा मेट जीवत मरै, तो पावै करतार।।
भावार्थ:-गुरू( मनुष्य) और गोविंद (भगवान) तो एक ही है।एक आकार( शरीर) वाला है तो दूसरा निराकार है।अपने अहं का त्याग कर हम निराकार करतार को पा सकते हैं।
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पासा पकड़या प्रेम का, सारी किया सरीर।
सतगुर दावा बताइया, खेलै दास कबीर।।
भावार्थ:- विश्वास के रास्ते प्रेम की डोर पकड़ लेने पर शरीर साधना करने वाला साधु हो जाता है।
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सतगुरू हम सूँ रीझि करि, एक कह्या प्रसंग।
बरस्या बादल प्रेम का भीजि गया सब अंग।।
भावार्थ:- सतगुरु हमसे प्रसन्न होकर प्रेम रसायन दे दिये जिससे हमारा अंग-अंग पुलकित
होने लगा।
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पूरे सूँ परचा भया, सब दुख मेल्या दूरि।
निर्मल किन्हीं आत्माँ ताथैं सदा हजूरि।।
भावार्थ:- सतगुरू की कृपा से हमारी आत्मा निर्मल होकर
परमात्मा में लीन हो गई जिससे हमारे सारे दुख
दूर हो गये।
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🙏जय सतगुरू🙏
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