"बाबा हरभजन सिंह: मृत्यु के बाद भी भारतीय सेना के गार्जियन की कहानी"
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- เผยแพร่เมื่อ 20 ก.ย. 2024
- बाबा हरभजन सिंह की कहानी भारत के सिक्किम राज्य में बेहद प्रसिद्ध और रहस्यमय मानी जाती है। यह कहानी भारतीय सेना और स्थानीय लोगों के बीच बहुत ही सम्मान और श्रद्धा से जुड़ी हुई है।
प्रारंभिक जीवन
बाबा हरभजन सिंह का जन्म 30 अगस्त 1946 को पंजाब के कपूरथला जिले में हुआ था। वह भारतीय सेना में एक सिपाही थे और 23वें पंजाब रेजिमेंट में सेवा कर रहे थे। उन्होंने 1965 में सेना में भर्ती होकर अपनी सेवा की शुरुआत की।
मृत्यु और रहस्य
4 अक्टूबर 1968 को, सिक्किम में नाथू ला दर्रे के पास एक दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई। कहा जाता है कि वे एक खच्चर पर सामान ले जा रहे थे, और अचानक उनका संतुलन बिगड़ने से वे खाई में गिर गए। उनके शव को तीन दिन बाद सेना द्वारा बरामद किया गया। परंतु उनकी मृत्यु के बाद जो घटनाएँ घटीं, वे उनके साथी सैनिकों और स्थानीय लोगों के लिए बहुत रहस्यमय थीं।
बाबा के रूप में प्रकट होना
कहानी के अनुसार, उनकी मृत्यु के कुछ दिनों बाद, हरभजन सिंह ने अपने एक साथी सैनिक के सपने में आकर कहा कि उनकी मृत्यु दुर्घटना से हुई थी और उन्होंने अपने अंतिम संस्कार की इच्छा भी व्यक्त की। इसके बाद, कई सैनिकों ने दावा किया कि उन्होंने हरभजन सिंह को सेना की गतिविधियों की निगरानी करते देखा है। ऐसा माना जाता है कि बाबा हरभजन सिंह ने सेना को कई बार दुश्मनों के हमलों और आपदाओं से बचाने के लिए चेतावनी दी है।
बाबा हरभजन सिंह मंदिर
उनकी लोकप्रियता बढ़ने पर, भारतीय सेना ने उन्हें सम्मान देते हुए उनके नाम से एक मंदिर बनवाया। यह मंदिर सिक्किम के नाथू ला और जेलेप ला दर्रे के बीच स्थित है और इसे 'बाबा हरभजन सिंह मंदिर' के नाम से जाना जाता है। सैनिकों और स्थानीय लोग उन्हें एक संरक्षक के रूप में मानते हैं, जो आज भी सीमा पर तैनात सैनिकों की सुरक्षा करते हैं।
सैनिकों में आस्था
भारतीय सेना के जवानों का मानना है कि बाबा हरभजन सिंह आज भी उनकी सुरक्षा कर रहे हैं। हर साल उनकी स्मृति में उन्हें 'छुट्टी' दी जाती है, और उनकी वर्दी और बूट को ट्रेन के माध्यम से उनके गांव भेजा जाता है। बाबा के नाम पर हर साल एक विशेष सीट आरक्षित होती है, और यह परंपरा आज भी कायम है।
श्रद्धा और आस्था का प्रतीक
बाबा हरभजन सिंह की कहानी एक साधारण सैनिक से एक लोक देवता तक की यात्रा की कहानी है। उनकी मौत के बावजूद, वे आज भी लाखों लोगों के दिलों में जिंदा हैं। श्रद्धालु और पर्यटक उनके मंदिर में आते हैं और उनसे आशीर्वाद की कामना करते हैं।
उनकी कहानी केवल आस्था और विश्वास की नहीं है, बल्कि वह भारतीय सेना की दृढ़ता और निष्ठा की भी प्रतीक है। बाबा हरभजन सिंह की उपस्थिति सिक्किम और आसपास के इलाकों में एक अडिग संरक्षक के रूप में मानी जाती है।
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