स्वर - व्यंजन के उच्चारण स्थान। हिंदी ध्वनियों के उच्चारण स्थान एवं विधि।

แชร์
ฝัง
  • เผยแพร่เมื่อ 5 ก.พ. 2025
  • स्वर - व्यंजन का उच्चारण।
    व्याकरण। हिन्दी। वर्ण विचार
    video।hindi।vyakaran।varnavichar।
    / @hindikipathshala01
    व्याकरण - व्याकरण एक शब्दशास्त्र है जिसके अध्ययन से शब्दों की उत्पत्ति, विकास, अर्थ, एवं प्रयोग का सम्यक ज्ञान होता है। इसकी इकाइयों में वर्ण, शब्द, वाक्य, संज्ञा, सर्वनाम, अव्यय, विश्लेषण, क्रिया, सन्धि, समास, उपसर्ग, प्रत्यय आदि प्रमुखता से जाने जाते है। कारक और विभक्तियों का भी अध्ययन आवश्यक है। अतः क्रमशः उनका विवेचन किया जायेगा।
    वर्ण-प्रकरण
    वर्ण-शब्द का वह खण्ड जिसका फिर टुकड़ा न हो सके, वर्ण कहलाता है। टुकड़ा हो सकने की स्थिति में इन्हें अक्षर कहते हैं। जैसे-कक्+अ। वस्तुतः व्यवहार में इन वर्ण और अक्षर में कोई अन्तर नहीं किया जाता। वर्ण दो प्रकार के होते हैं- १. स्वर और २. व्यञ्जन ।
    स्वर-
    जिस वर्ण का उच्चारण बिना किसी अन्य वर्ण की सहायता से होता है। उसे स्वर वर्ण कहते है। इनकी संख्या 13 है।
    मूलस्वर- इन्हें इस्व-स्वर भी कहते हैं। जैसे-अ, इ, उ, ऋ, लु५ । इसके उच्चारण में एक मात्रा का समय लगता है।
    सन्धि-स्वर- किसी-न-किसी सन्धि के आधार पर दो मूल-स्वरों से बने हुए स्वरों को सन्धि स्वर कहते हैं। इसे अच् संधि भी कहते हैं। जैसे-आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, ॠ=८। आ, ई और ऊ स्वरों में दीर्घ सन्धि होने से इन्हें दीर्घ स्वर भी कहते हैं। सभी सन्धि स्वरों में दो मात्रा के उच्चारण का समय लगता है।
    व्यञ्जन-जिन वर्षों को हम बिना स्वर की सहायता से नहीं बोल सकते हैं उन्हें व्यञ्जन वर्ण कहते हैं। उन्हें हल संधि भी कहते हैं। 'क' में दो वर्ण है-'क' और 'अ'। 'क' व्यंजन है और 'अ' स्वर। क् से लेकर हु तक ३३ व्यञ्जन वर्ण है। क्ष, त्र, श, संयुक्त व्यञ्जन वर्ण है। व्यञ्जयन्ति अर्थात् प्रकटी कुर्वन्तीति व्यञ्जनानि ।
    प्लुत-स्वर- इसका कोई पृथक् संकेत-चिहून नहीं है। जिसमें प्लुत-स्वर दिखाना होता है उसके सामने ३ लिख देते हैं। जोर से या देर तक चिल्लाने में प्लुत स्वर रहता है। इसके उच्चारण में ३ मात्रा का समय लगता है। खास कर वेदों तथा संगीतों में प्लुत स्वर प्रयुक्त होते हैं। जैसे- हे राम ३ अत्र आगच्छ ।
    स्पर्श-वर्ण- कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग और पवर्ग के २५ वर्ण स्पर्श वर्ण है। (कादयो मावसानाः स्पर्शाः)वर्ण-प्रकरण
    घोष-वर्ण- पाँचों वगों के तृतीय, चतुर्थ और पञ्चम वर्ण तथा य, ८. ल. व और दू घोष-वर्ण है।
    अयोष वर्ण - सभी वगों के प्रथम और द्वितीय वर्ण तथा शु, ष, स् को अघोष-वर्ण कहते है।
    जिह्वामूलीय क और ख से पूर्व यदि ऐसा चिह्न लगे तो उसे जिहवामूलीय कहते है। जैसे- क.
    उपध्मानीय - प और फ से पूर्व यदि यह चिहुन लगता है तो उसे उपध्मानीय कहते है। जैसे-प.फ।
    अल्पप्राण - सभी वर्गों के प्रथम, तृतीय और पंचम वर्ण तथा य, र, ल, व अल्पप्राण है।
    महाप्राण - सभी वगों के द्वितीय तथा चतुर्थ वर्ण तथा श, ष, स, हु महाप्राण है।
    अन्तःस्थ - य, र, ल, व् को अन्तःस्थ कहते हैं।
    अनुस्वार और विसर्ग को अयोगवाह कहते हैं।
    उष्मवर्ण- श, ष, स, ह उष्म वर्ण है।
    अयोगवाह
    प्रत्याहार सूत्र -पाणिनि के १४ सूत्रों के आधार पर प्रत्याहार की रचना की जाती है।
    अट्, अण, इण, उक, एड, एच, खर, डम, चर, जस्, झा, झर, झल, जशशु, झष, यन, शर, हस्, हल, आदि ४२ प्रत्याहार है।
    उच्चारण- हृदय से निकली हुई प्राणवायु हमारे मुख में उपस्थित ध्वनि-यन्त्रों (कण्ठ, तालु, ओष्ठ आदि) से टकराती है और विभिन्न ध्वनियों की सृष्टि करती है। जिस स्थान पर यह प्राणवायु टकराती है, वही वर्ण-विशेष का उच्चारण स्थान है। ये निम्नलिखित है-
    #अकुहविसर्जनीयानां कण्ठः-अ, आ कवर्ग, है और विसर्ग का कण्ठ-स्थान है। अतः ये कण्ठ्य है।
    #इचुयशानां तालुः- इ, ई, चवर्ग, य और श का तालु-स्थान है। ये तालव्य है।
    ऋदुरषाणां मूर्धा-ऋ, ऋ, टवर्ग, रऔर ष का मूर्धा स्थान है। ये मूर्धन्य है।
    #लुतुलसाना दन्ताः-ल, लू तुवर्ग, ल और स का दन्त-स्थान है। ये दन्त्य है।
    उपूपध्मानीयानाम् औष्ठी उ, ऊ, पवर्ग उपध्मानीय अर्थात् ओष्ठ-स्थान है ये ओष्ठ्य है। प, फ का
    #अमङणनां नासिका च-अ, म, ङ, ण और न का नासिका स्थान है। अतः ये अनुनासिक वर्ण है।
    एदैतोः कण्ठ-तालुः- ए और ऐ का कण्ठ-तालु स्थान है।
    #ओदौतोः कण्ठोष्ठम्-ओ और औ का कण्ठ ओष्ठ स्थान है।
    वकारस्य दन्त्यौष्ठम् व का दन्त-ओष्ठ स्थान है।
    प्रयत्न-विचार-वर्ण के उच्चारण के लिए कण्ठ-तालु आदि उच्चारण यन्त्रों से जो क्रिया की जाती है, उसे प्रयत्न कहते हैं। प्रयत्न दो प्रकार के होते है- आभ्यन्तर और वाह्य ।
    आभ्यन्तर प्रयत्न ध्वनि उत्पन्न होने के पहले वागेन्द्रिय द्वारा जो प्रयत्न किया जाता है उसे आभ्यन्तर प्रयत्न कहते हैं। आभ्यन्तर प्रयत्न के पाँच भेद है
    (ग) अल्पप्राण और महाप्राण-जिन वर्षों के उच्चारण में कम श्वास या प्राण-वायु, लगे, उन्हें अल्पप्राण कहते हैं। जिनके उच्चारण में अधिक प्राण-वायु का प्रयोग किया जाता है, उन्हें महाप्राण कहते हैं। साधारणतः जिन व्यञ्जनों में हकार की ध्वनि सुनाई पड़ती है, उन्हें महाप्राण तथा अन्य को अल्पप्राण कहते हैं। अन्तःस्थ अल्पप्राण है और उष्म वर्ण महाप्राण । वर्गों का द्वितीय और चतुर्थ वर्ण महाप्राण होता है। रोमन लिपि में इनके लिए h जोड़ना पड़ता है। जैसे-ख (kh), घ (gh), (घ) (dh), छ (chh) इत्यादि ।
    वर्ण किसे कहते है तथा इनके कितने भेद है?
    स्वर किसे कहते हैं और इनके भेद सोदाहरण बतलाएँ ।
    व्यञ्जन-वणों की परिभाषा भेद सहित बतलाएँ ।
    स्वर तथा व्यञ्जन में क्या भेद है?
    प्रत्याहार बनाने और समझाने का सरल उपाय बतलाएँ ।
    अन्तःस्थ तथा उष्म वर्ण कौन-कौन-से है?
    संयुक्त वर्ण कौन-कौन से है तथा किन-किन वर्षों के मेल से बने हैं?
    प्रयत्न की परिभाषा-सहित वाह्य तथा आभ्यन्तर प्रयत्नों के भेद बतलाएँ ।
    क का उच्चारण
    ख का उच्चारण
    ग का उच्चारण

ความคิดเห็น •