रामायण बालकांड भाग= 42 रावण के द्वारा पृथ्वी लोक में ऋषि मुनियों पर अत्याचार करना

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  • เผยแพร่เมื่อ 10 ก.พ. 2025
  • रामायण बालकांड भाग= 42 रावण के द्वारा पृथ्वी लोक में ऋषि मुनियों पर अत्याचार करना
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    जय श्रीराम # हे प्रिय हे प्रिय श्रोता गन रामचरित्र मानस के रचयिता भगवान श्री तुलसीदासजी का जन्म #यमुना के किनारे 'दूबे-पुरवा' एक ग्राम में हुआ था# वर्तमान बाँदा जिलान्तर्गत रामपुर नगर के राजगुरु जो पराशर गोत्र के सरयूपारीण ब्राह्मण निवास करते थे# उनका नाम आत्माराम दूबे और उनकी पत्नी का नाम हुलसी था# आत्मारामजी की धर्मपत्नी के गर्भ से सम्वत् १५५४ में तुलसीदासजी का जन्म
    हुआ# तुलसीदासजी विवाह सं. १५८३ की ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी को बुद्धिमती (या रत्नावली) से हुआ #
    हे प्रिय श्रोता गन भगवान श्रीरघुनाथजी के सहित लक्ष्मण और विश्वामित्र के श्रीअयोध्या से गये 15 दिन व्यतीत
    हुए थे और श्रीरामचन्द्रजी और जानकीजी का विवाह हिमऋतु, अगहन मास, शुक्लपक्ष पंचमी तिथि, वृश्चिक के सूर्य और मीन लग्न में हुआ था। विवाह के समय १५ वर्ष के श्रीरामचन्द्रजी और ६ वर्ष की जानकीजी थीं और विवाह के पीछे श्रीअयोध्याजी में श्रीरामचन्द्रजी ने १२ वर्ष निवास करके जानकीजी और लक्ष्मणजी सहित वन को प्रस्थान किया।
    निम्नलिखित तिथिपत्र श्रीमद्रामचरित का है। इसमें वह चरित्र जो भगवान् चतुर्दश वर्ष वनवास में बिताये हैं, सब दिनों के संख्या से लिखे हैं।
    १. श्रीराम-लक्ष्मण और जानकीजी ने श्रीअयोध्याजी से गमन करके तीन दिन जल मात्र पान किया, तब श्रीरामजी की आयु
    २७ वर्ष और जानकीजी की १८ वर्ष थी।
    २. चतुर्थ दिवस राम-लक्ष्मण जानकीजी ने श्रृंगबेरपुर में पहुँचकर फल-फूल खाये।
    ३. पाँचवें दिन राम-लक्ष्मण, जानकीजी श्रीगंगा पारकर भरद्वाज तथा वाल्मीकिजी से मिलकर चित्रकूट
    ४. राम-लक्ष्मण जानकीजी ने चित्रकूट से चलकर विराध-वध किया, शरभंग तथा सुतीक्ष्ण से मिल अगस्त्य मुनि की आज्ञानुसार पंचवटी में पहुँचकर १२ वर्ष निवास किया और तेरहवें वर्ष के प्रारम्भ में
    शूर्पणखा को नाकहीन कर खरदूषण को मारा।
    ५. माघ शुक्ल ८ के दिन श्रीजानकीजी को मध्याह्न समय रावण हर ले गया।
    ६. पाँचवें मास श्रीराम-लक्ष्मणजी ने मारीच का वधकर श्रीजानकीजी के विरह में जटायु का उद्धार कर कबन्ध को मार शबरी को सद्गति दे आषाढ़ महीने में सुग्रीव से मिले।
    ७. श्रीराम-लक्ष्मणजी ने बालि को मारकर सुग्रीव को राज्य दे चार मास तक प्रवर्षण पर्वत पर निवास किया।
    ८. मार्गशीर्ष कृष्ण ११ को हनुमान् बानरों सहित सीताजी को खोजते-खोजते विवर प्रवेश करके सिंधु तट
    पर पहुँच वहाँ सम्पाती से सीता की सुधि प्राप्तकर समुद्र फाँदकर लंका पहुँचे।
    ९. मार्गशीर्ष कृष्ण १३ को हनुमान्जी ने श्रीजानकीजी से मिल कर मुद्रिका दी और अशोक वन उजारा। हनुमान्जी ने अक्षयकुमारादि राक्षस मारे। लंकादाह करके वे सीताजी से
    १०. मार्गशीर्ष कृष्ण १४ को सिंधु पार उतर अपनी सेना में चूड़ामणि ले आये।
    ११. मार्गशीर्ष शुक्ल ६ को हनुमान्जी किष्किन्धा में पहुँचे। सेना सहित समुद्र तट से पयान कर पाँच दिन मार्ग में व्यतीत कर कर चूड़ामणि दे सीता की सुधि कह सुनाई।
    १२. मार्गशीर्ष शुक्ल ७ को हनुमान् जी सुनाई। श्रीजानकीजी के हर जाने से ने श्रीरामचन्द्रजी को प्रणाम १० मास पीछे रामचन्द्र ने सुधि पाई।
    १३. मार्गशीर्ष शुक्ल८को श्रीरामचन्द्रजी ने सेना सहित मध्याह्न समय उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में लंका की ओर
    पयान किया।
    १४. मार्गशीर्ष १५ पूर्णमासी को श्रीरामादि सात दिन मार्ग में रहकर समुद्र तट पर पहुँचे।
    १५. पौष कृष्ण १ से ३ तक श्रीरामादि सेना-सहित समुद्र तट पर निवास किये।
    १६. पौष कृष्ण ४ को विभीषण श्रीरामजी की शरण आये।
    १७. पौष कृष्ण ५ से ८ तक श्रीरामचन्द्रजी समुद्र के आगे विनय करते रहे।
    १९. पौष कृष्ण १० को सेतु बाँधना प्रारम्भ किया और १० योजन सेतु प्रथम दिन बाँधा।
    १८. पौष कृष्ण ९ को विप्ररूप धारणकर सिंधु रघुनाथजी की शरण में आया।
    २०. पौष कृष्ण ११ के दिन बीस योजन सेतु बाँधा। २१. पौष कृष्ण १२ के दिन तीस योजन सेतु बाँधा।
    २२. पौष कृष्ण १३ के दिन चालीस योजन बाँधा। सब १०० योजन लम्बा और १० योजन चौड़ा सेतु तैयार किया।
    २३. पौष कृष्ण १४ से पौष शुक्ल २ तक श्रीरघुनाथजी सब सेना समेत सिंधु पार उतरे। इस सेना में अठारह पद्म यूथप थे।
    २६. पौष शुक्ल बाण १२ को रघुनाथजी ने अपनी सेना की चार अनी किया और इस दिन श्रीरघुनाथजी ने एक से रावण का मुकुट और छत्र तथा मन्दोदरी के कर्णभूषण पृथ्वी पर गिरा दिये।
    २४. पौष शुक्ल ३ से १० तक रघुनाथजी ने लंका को घेर लिया। २५. पौष शुक्ल ११ को रावण के शुक और सारण रघुनाथजी की सेना देखने आये।
    २७. पौष शुक्ल १३ से १५ पूर्णमासी तक रावण की सेना सत्रद्ध हुई। २८. माघ कृष्ण १ को अंगदजी ने लंका में जाकर रावण को बहुत समझाया, फिर रघुनाथजी के पास आये। २९. माघ कृष्ण १० को गरुड़ नागपाश काट निज लोक को गये।
    ३०. माघ कृष्ण ११ से १२ तक बहुत युद्ध होकर धूम्रलोचन आदि दैत्य मारे गये।
    ३१. माघ कृष्ण १२ से अमावस्या तक नीलादि द्वारा अनेक दैत्य मारे गये।
    ३२. माघ शुक्ल शुक्ल १ ३३. माघ शुक्ल ५ से ४ तक रावण बानरों से लड़कर लंका को चला गया।
    ३४. रावण ने अपने भाई कुम्भकर्ण को जगाया।
    कुम्भकर्ण श्रीरघुनाथजी से लड़ता रहा और अन्त में मारा गया। ३५. माघ शुक्ल १५ को रावण कुम्भकर्ण के मारे जाने से शोकान्वित होकर लड़ा। ३६.
    ३६. माघ शुक्ल ९फाल्गुन कृष्ण १ से ५ तक श्रीरामचन्द्रजी ने नारान्तकादि दैत्यों का वध किया। ३७. फाल्गुन कृष्ण ६ से ८ तक रावण के बहुत-से दैत्य श्रीरघुनाथजी के हाथ मारे गये।
    प्रिय श्रोतागण यह रामकथा भगवान श्री रामचंद्र के संपूर्ण जीवन पर आधारित है #और ईस रामकथा के भाग हम धीरे धीरे हमारे चैनल पर प्रसारित करते रहगै # आप हमें हमारे You Tube चैनल पर सुन सकते हैं

ความคิดเห็น • 1

  • @RamlalKumawat-m9i
    @RamlalKumawat-m9i 18 วันที่ผ่านมา +1

    जय श्रीराम