आचार्य प्रशांत संग लाइव ऑनलाइन सत्रों से जुड़ें, फ्री ईबुक पढ़ें: acharyaprashant.org/grace?cmId=m00036 'Acharya Prashant' app डाउनलोड करें: acharyaprashant.org/app?cmId=m00036 उपनिषद, गीता व सभी प्रमुख ग्रंथों पर ऑनलाइन वीडियो श्रृंखलाएँ: acharyaprashant.org/hi/courses?cmId=m00036 संस्था की वेबसाइट पर जाएँ: acharyaprashant.org/hi/home
अकर्म जब हो रहा है तो कर्ता है- प्रकृति विकर्म जब हो रहा है तो कर्ता है- अहंकार निष्काम कर्म हो रहा है तो कर्ता है- आत्मा को समर्पित अहंकार। -आचार्य प्रशांत
अकर्म वो सबकुछ जो आपकी चेतना द्वारा संचालित नहीं है, फिर भी आपकी देह करती है। अकर्म वो सबकुछ जिसको करने में वास्तव में आपका चुनाव शामिल ही नहीं। जैसे साँसों का चलना ये दिखने में कर्म है लेकिन फिर भी अकर्म है। जो व्यक्ति सच्चाई की ओर बढ़ना चाहता हो, शांति की ओर बढ़ना चाहता हो, उसको समझना पड़ेगा कि उसके जीवन में अकर्म कहाँ बैठा हुआ है? कितना बड़ा दायरा है ऐसे कर्मों का जो बस उससे हुए जा रहे हैं। लग रहा है वो कर रहा है लेकिन वो कर नहीं रहा है। -आचार्य प्रशांत
कर्म-जहाँ आपने चुनाव करा है। जहाँ चुनाव शामिल है सिर्फ़ उसको कर्म कहा जा सकता है। उदाहरण के लिए- गाय घांस खाती है, शेर मांस खाता है। लेकिन आदमी मांस खाता है- ये कुकर्म है। -आचार्य प्रशांत
अकर्म में आपका कोई चुनाव नहीं। कर्म में चुनाव सम्मिलित होता है। विकर्म मे सिर्फ़ अहंकार की पूर्ति के लिए काम किया जाता हैं। दुनिया के प्रलोभन बड़े नहीं है, अपना संकल्प और ज्ञान छोटा है।
ये पहली बात मानो कि दुनिया के प्रलोभन बड़े नहीं हैं अपना विवेक और अपना संकल्प छोटा है। ये बात ज्ञान की है। और दूसरी बात संकल्प और साधना की है। -आचार्य प्रशांत
कर्म 2 प्रकार का होता है 1) निष्काम कर्म 2) विकर्म 1)निष्काम कर्म- निष्काम कर्म वो जिसमें आप कर्म कर रहे हो अपने सीमित सरोकारों से आगे का। निष्काम कर्म गीता का सार है, गीता की आत्मा है। 2)विकर्म- जिसमें आप काम कर रहे हो अहंकार की तृप्ति के लिए। -आचार्य प्रशांत
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अकर्म जब हो रहा है तो कर्ता है- प्रकृति
विकर्म जब हो रहा है तो कर्ता है- अहंकार
निष्काम कर्म हो रहा है तो कर्ता है- आत्मा को समर्पित अहंकार।
-आचार्य प्रशांत
अकर्म वो सबकुछ जो आपकी चेतना द्वारा संचालित नहीं है, फिर भी आपकी देह करती है।
अकर्म वो सबकुछ जिसको करने में वास्तव में आपका चुनाव शामिल ही नहीं।
जैसे साँसों का चलना ये दिखने में कर्म है लेकिन फिर भी अकर्म है।
जो व्यक्ति सच्चाई की ओर बढ़ना चाहता हो, शांति की ओर बढ़ना चाहता हो,
उसको समझना पड़ेगा कि उसके जीवन में अकर्म कहाँ बैठा हुआ है?
कितना बड़ा दायरा है ऐसे कर्मों का जो बस उससे हुए जा रहे हैं।
लग रहा है वो कर रहा है लेकिन वो कर नहीं रहा है।
-आचार्य प्रशांत
कर्म-जहाँ आपने चुनाव करा है।
जहाँ चुनाव शामिल है सिर्फ़ उसको कर्म कहा जा सकता है।
उदाहरण के लिए- गाय घांस खाती है, शेर मांस खाता है।
लेकिन आदमी मांस खाता है- ये कुकर्म है।
-आचार्य प्रशांत
अकर्म में आपका कोई चुनाव नहीं।
कर्म में चुनाव सम्मिलित होता है।
विकर्म मे सिर्फ़ अहंकार की पूर्ति के लिए काम किया जाता हैं।
दुनिया के प्रलोभन बड़े नहीं है, अपना संकल्प और ज्ञान छोटा है।
ये पहली बात मानो कि दुनिया के प्रलोभन बड़े नहीं हैं अपना विवेक और अपना संकल्प छोटा है।
ये बात ज्ञान की है।
और दूसरी बात संकल्प और साधना की है।
-आचार्य प्रशांत
प्रणाम आचार्य जी,इस विडियो के लिए आपका धन्यवाद और आभार है!
🌹🌹🌹🌹
Pranaam Aachary Ji.Fine explaination.❤
आत्मज्ञान का अर्थ ही यही है अपने कर्मो को जानना
🙏
Pranam acharya ji 🙏🙏🙏❤️
Pranam acharyaji
Very beautifully explained ❤ Pranam Aacharya ji 🙏🙏❤️❤️💐
🙏🙏👌👌
❤❤❤❤❤🙏🙏🙏🙏🙏
Jai shree krishan
❤
Pronam Acharyaji🙏🏻🙏🏻🙏🏻
कर्म 2 प्रकार का होता है
1) निष्काम कर्म
2) विकर्म
1)निष्काम कर्म- निष्काम कर्म वो जिसमें आप कर्म कर रहे हो अपने सीमित सरोकारों से आगे का।
निष्काम कर्म गीता का सार है, गीता की आत्मा है।
2)विकर्म- जिसमें आप काम कर रहे हो अहंकार की तृप्ति के लिए।
-आचार्य प्रशांत
नमन आचार्य जी 🙏
चरण स्पर्श, आचार्य जी। 🙇🏻🪔
Thank you Acharya Prashant
Naman acharya ji 🎉
धन्यवाद आचार्य जी
Mera Naam avdhut hai... Lekin mujhe Acharya ji ..se malum hua ki ... avdhut Gita bhi hai...🙏🙏
आप बोलते हो न ,
जो सही है वो चुप चाप कर ।🌱🙏🌱
💯❤️🙏♥️
❤❤❤❤❤
Thanku sir ji gud guidance 🙏
यह स्लोक उद्धव गीता से है अवधूत गीता से नहीं।
🙏
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
🙏
❤❤