श्री भैरव अष्टोत्तर शतनाम स्त्रोत्र | | bhairav stotram | भैरव नाम

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  • เผยแพร่เมื่อ 5 ต.ค. 2024
  • श्री बटुक भैरव अष्टोत्तर शतनाम स्त्रोत्र
    bhairav stotram
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    भैरवजी को काशी का कोतवाल माना जाता है। मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी के दिन भगवान महादेव ने कालभैरव के रूप में अवतार लिया था। कालभैरव भगवान महादेव का अत्यंत ही रौद्र, भयाक्रांत, वीभत्स, विकराल प्रचंड स्वरूप है।
    कालभैरव के पूजन से सभी तरह के अनिष्ट का निवारण होता है इसीलिए भैरवजी के 108 नामों को जहां तक हो सके प्रतिदिन अथवा बुधवार, गुरुवार, शनिवार या रविवार को अवश्य ही पढ़ना चाहिए।
    अगर आप कुछ ज्यादा नहीं कर पा रहे हैं तब भी आपको यहां दिए गए भैरवजी के 'ह्रीं' बीजयुक्त 108 नामों का जाप करना चाहिए। इससे आप जीवन के हर क्षेत्र में अत्यधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं और सफल हो सकते हैं। यहां पढ़ें कालभैरव की अष्टोत्तर शत नामावली...
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    ॐ भैरवो भूत-नाथश्च, भूतात्मा भूत-भावनः।
    क्षेत्रज्ञः क्षेत्र-पालश्च, क्षेत्रदः क्षत्रियो विराट्।।१
    श्मशान-वासी मांसाशी, खर्पराशी स्मरान्त-कृत्।
    रक्तपः पानपः सिद्धः, सिद्धिदः सिद्धि-सेवितः।।२
    कंकालः कालः-शमनः, कला-काष्ठा-तनुः कविः।
    त्रि-नेत्रो बहु-नेत्रश्च, तथा पिंगल-लोचनः।।३
    शूल-पाणिः खड्ग-पाणिः, कंकाली धूम्र-लोचनः।
    अभीरुर्भैरवी-नाथो, भूतपो योगिनी-पतिः।।४
    धनदोऽधन-हारी च, धन-वान् प्रतिभागवान्।
    नागहारो नागकेशो, व्योमकेशः कपाल-भृत्।।५
    कालः कपालमाली च, कमनीयः कलानिधिः।
    त्रि-नेत्रो ज्वलन्नेत्रस्त्रि-शिखी च त्रि-लोक-भृत्।।६
    त्रिवृत्त-तनयो डिम्भः शान्तः शान्त-जन-प्रिय।
    बटुको बटु-वेषश्च, खट्वांग-वर-धारकः।।७
    भूताध्यक्षः पशुपतिर्भिक्षुकः परिचारकः।
    धूर्तो दिगम्बरः शौरिर्हरिणः पाण्डु-लोचनः।।८
    प्रशान्तः शान्तिदः शुद्धः शंकर-प्रिय-बान्धवः।
    अष्ट-मूर्तिर्निधीशश्च, ज्ञान-चक्षुस्तपो-मयः।।९
    अष्टाधारः षडाधारः, सर्प-युक्तः शिखी-सखः।
    भूधरो भूधराधीशो, भूपतिर्भूधरात्मजः ।।१०
    कपाल-धारी मुण्डी च, नाग-यज्ञोपवीत-वान्।
    जृम्भणो मोहनः स्तम्भी, मारणः क्षोभणस्तथा ।।११
    शुद्द-नीलाञ्जन-प्रख्य-देहः मुण्ड-विभूषणः।
    बलि-भुग्बलि-भुङ्-नाथो, बालोबाल-पराक्रम ।।१२
    सर्वापत्-तारणो दुर्गो, दुष्ट-भूत-निषेवितः।
    कामीकला-निधिःकान्तः, कामिनी-वश-कृद्वशी ।।१३
    जगद्-रक्षा-करोऽनन्तो, माया-मन्त्रौषधी-मयः।
    सर्व-सिद्धि-प्रदो वैद्यः, प्रभ-विष्णुरितीव हि ।।१४

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