bh karan ji sunder vihar ashram

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  • เผยแพร่เมื่อ 7 ม.ค. 2025
  • कितने ऊँचें भाग हमारे, ऐसा सतगुरु पाया हैं,
    जलती हुई इस दुनियाँ में,मिली ये शीतल छाया हैं, कितने ऊँचें-२,

    भरे थे दुख ही दुख जिसमें,ऐसी थी दाँसतां सबकीं
    मिला था जब तलक ये दर ,
    बड़ी परेशान थी जिन्दगी -2
    मिला हैं हमको ऐसा मसीहा ,
    जिसनें रोग मिटाया हैं, जलती हुई-२,
    (कोई गुणवान या र्निगुण,सभी अपनाये जाते हैं,
    गुरु- करूणा सागर हैं, करूणा बरसातें जाते हैं, -2)
    दुनियाँ ने जिसकों ठुकराया,गुरु ने गले से लगाया हैं, जलती हुई-२,
    (यहाँ बेचैन रुहों को,सब्र-सन्तोष मिलता हैं,
    जो हैं बेहोश जन्मों से,उन्हें भी होश मिलता हैं,)
    ले जायेंगे रहमत, जिसने यहाँ पे शीश झुकाया हैं, जलती हुई-२
    कलम लिख-लिख हारीं हैं,
    जुबां गा-गा कें हारीं हैं,
    जमीं-आकाश,से ऊँची हाँ,गुरु-महिमा तुम्हारी हैं,
    दाता तेरी रहमत से ही,दास ने ये दर पाया हैं,जलती हुई-२,

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