महर्षि गौतम वंशावली | rishi gautam vanshavali
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- เผยแพร่เมื่อ 29 พ.ย. 2024
- #ऋषि #गौतम #वंशावली #gauta
Acharya Bharat Bhushan Gaur
सातवें मन्वंतर के सप्तर्षियों में शामिल विभिन्न मन्वंतरों में अलग-अलग सप्तर्षि हुए हैं जिनका उल्लेख कृष्ण यजुर्वेद, शतपथ ब्राह्मण, बृहदारण्यक उपनिषद्, विष्णु पुराण सहित विभिन्न धर्मग्रंथों में किया गया है। सातवें मन्वंतर में जिन 7 ऋषियों का उल्लेख किया गया है उनमें महर्षि गौतम भी शामिल हैं। सातवें मन्वंतर में शामिल सप्तर्षि हैं - वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज।
गौतम ऋषि जन्म
ब्रह्मा जी के मानस पुत्र ऋषि अंगिरा तथा उनकी पत्नी स्वधा के उत्थ्य नाम पुत्र हुआ ,उतथ्य तथा ममता से दीर्घतमस नामक पुत्र हुआ। दीर्धतमस व प्रद्वेषी से महर्षि गौतम का जन्म हुआ व महर्षि गौतम के पुत्र शतानंद व चिरकाल हुए।
चरित्रकोष में महर्षि गौतम का नाम शारद्वत गौतम बताया है। जो उचित प्रतीत होता है। क्योंकि ब्रह्मा ने अपनी मानस पुत्री अहल्या को शारद्वत गौतम (महर्षि गौतम) के पास ही अमानत के रूप में रखा था। ऐसा उल्लेख कुछ प्राचीन ग्रन्थों व चरित्रकोष में है। यही शारद्वत गौतम, महर्षि गौतम के नाम से प्रसिद्ध हुए और आगे चलकर यह शारद्वत ( शरद्वान ) गौतम, मेधा तिथि व अक्षपाद के नाम से प्रसिद्ध हुए। इसी ऋषि ने न्यायशास्त्र की रचना की। महर्षि गौतम (शारद्वत) के पुत्र का नाम शतानंद था। यह महातेजस्वी पुत्र जनकपुर के विदेह वंशीय राजा जनक के पुरोहित तथा राम विवाह के मुख्य पुरोहित भी थे।
कहते हैं कि गुर्जर प्रदेश के राजा गुर्जरकर्ण ने पुत्र प्राप्ति के लिए अपनी राजधानी पुष्कर में पुत्रेष्टि यज्ञ कराया जिससे उनके पुत्र हुआ। इस यज्ञ के आचार्य महर्षि शारद्वत गौतम ही थे। इसके 156 शिष्य थे इन्हीं शिष्यों की सन्तानें गुर्जरगौड ब्राह्मण समाज के आराध्य देव व ऋषि हैं।
इनके पिता, दीर्घतमस बृहस्पति के श्राप के कारण जन्मांध थे। पुराणों के अनुसार दीर्धतमस गर्भावस्था में सारे वेदों, वेदांगों तथा शास्त्रो से पूर्णतया अवगत थे। विद्या के बल पर उनका विवाह सुन्दर प्रद्वेषी से हुआ। कहते हैं कि दीर्घतमस ने 100 वर्ष की आयु में केशव की उपासना की इससे उनको दृष्टि मिली। इसी कारण उन्हें गोतम (उत्तम नेत्र वाला) कहा गया। इसी गोतम के पुत्र गौतम कहलाया।
ब्रह्मा की मानस पुत्री अहल्या ब्रह्मदेव की आद्या स्त्री सृष्टि थी। पांच सतियों व पंच कन्याओं में इसका प्रथम स्थान है। एक कथा के अनुसार यह मुद्गल व मेनका की पुत्री थी। इसके सौन्दर्य से मोहित होकर इन्द्र ने इसे पत्नी रूप में मांगा, परन्तु ब्रह्मा ने जितेन्द्रीय शारद्वत गौतम के पास अमानत के रूप में रखा। बाद में तप सिद्धि देखकर भार्या के रूप में दे दी गई। एक अन्य कथा के अनुसार देवताओं व राक्षसों से पृथ्वी का चक्कर काटकर प्रथम आने वाले को अहल्या देने का प्रस्ताव रखा। तब गौतम शारद्वत ने एक शिवलिंग की परिक्रमा करके सबसे पहले ब्रह्मा के पास पहुंचे। ब्रह्मा गौतम को प्रथम आया जानकर अहल्या दे दी। विवाह के बाद ऋषि अहल्या के साथ ब्रह्मगिरि पर्वत (नासिक के पास) पर रहने लगे।
ऋग्वेद के कुल 10522 मंत्रों में से 213 मंत्र
{यजुर्वेद के कुल 1915 मंत्रों में से 67 मंत्र
{सामवेद के कुल 1875 मंत्रों में से 68 मंत्र
{अर्थ वेद के कुल 5977 मंत्रों में से 27 मंत्र
{अर्थात कुल 315 मंत्रों के मंत्रदृष्टा महर्षि गौतम हैं। इसलिए इन्हें तपस्वी माना गया है।