संगीतमय प्रार्थना-कीर्तन-भजन 13(A) - Swami Sri Sharnanand Ji Maharaj
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- เผยแพร่เมื่อ 29 ธ.ค. 2024
- Swami Sri Sharnanand Ji Maharaj's Discourse in Hindi
स्वामी श्रीशरणानन्दजी महाराज जी का प्रवचन
भजन न.-1
मेरे स्वामी मेरे स्वामी कृपा करो हे अर्न्तयामी।
मेरे स्वामी मेरे स्वामी कृपा करो हे अर्न्तयामी।
आप अपनी सुधारुपिणी, सर्व समर्थ पतित पावनी।
हेतु रहित मंगल बरसाणी, कृपा करो हे अर्न्तयामी।
मेरे स्वामी मेरे स्वामी कृपा करो हे अर्न्तयामी।
त्याग रुप बल दो दुखियो को, सेवा का बल दो सुखियो को ।
जिससे सुख दु:ख के बंधन से होवे मुक्त जगत् के प्राणी ।
मेरे स्वामी मेरे स्वामी कृपा करो हे अर्न्तयामी।
आस्वादन कर प्रेमामृत का , हो कृत कृत्य तत्त्व जीवन का
लाभ उठाए मानवपन का, सेवा त्याग प्रेम पहिचानी
मेरे स्वामी मेरे स्वामी कृपा करो हे अर्न्तयामी।
आप अपनी सुधारुपिणी, सर्व समर्थ पतित पावनी।
हेतु रहित मंगल बरसाणी, कृपा करो हे अर्न्तयामी।
मेरे स्वामी मेरे स्वामी कृपा करो हे अर्न्तयामी।
भजन नं.-2
साधनरत हो साधक भैया, साधनरत हो साधक भैया,
परमेश्वर पार करै नैया, साधनरत हो साधक भैया।
आस्था अचल हिमाचल सी हो, धृति स्थिति निति अविचल हो।
मति निर्मल सुरसरिता सी हो, उर विच नटवर नागरिया
साधनरत हो साधक भैया,
परमेश्वर पार करै नैया, साधनरत हो साधक भैया।
रन्ति देव सा करुण ह्रदय हो,सुख दुख में निर्द्वन्दु अभय हो ।
सत्साधक की सदा विजय हो, सुन माधव की वाँसुरिया।
साधनरत हो साधक भैया,
परमेश्वर पार करै नैया, साधनरत हो साधक भैया।
जीवन में सब विधि संयम हो, जगहित रत तन मन धन त्रय हो ।
सम दम उद्यम शरण्य हो पकड़ कन्हैया प्रभु पैया
साधनरत हो साधक भैया,
परमेश्वर पार करै नैया, साधनरत हो साधक भैया।
साधनरत हो साधक भैया॥
भजन नं.-3
हरि के नाते से सब नाते, इससे सभी सुहाते ।
किससे बैर करु मेरे प्यारे, विविध रुप धर आते ॥
हरि के नाते से सब नाते,
स्वार्थ बिना जो सबकी सेवा, करते नहीं अघाते ।
पर दुख दुखी सुखी पर सुख लख, प्रभु को वो जन भाते॥
हरि के नाते से सब नाते, इससे सभी सुहाते ।
हरि के नाते से सब नाते, इससे सभी सुहाते ।
सौपां जो दायित्व हमे हम, क्यों न उसे कर पाते
चूंकि प्राप्त का हम अविवेकी, दुरुपयोग कर जाते॥
हरि के नाते से सब नाते, इससे सभी सुहाते ।
हरि के नाते से सब नाते,
असली मांग जगे से पहले, सिद्धि स्वांग धर लाते॥
हरि के नाते से सब नाते, इससे सभी सुहाते ।
हरि के नाते से सब नाते,
अपना खोट ओट में रखकर, पर का खोट बताते।
तरे कभी न त्रिकाल माहि वे, चाहे चतुर कहाते॥
हरि के नाते से सब नाते, इससे सभी सुहाते ।
हरि के नाते से सब नाते,
जीवन के सर्वस्व प्राणपति,को जो आन मिलाते।
“लाल कन्हैया” के वे सद्गुरु, शरणानन्द कहाते॥
हरि के नाते से सब नाते, इससे सभी सुहाते ।
हरि के नाते से सब नाते,
भजन नं.-4
खेलो खेलो होली रे, कृष्ण वांसुरी बोली रे,
खेलो खेलो होली रे॥
(1) गुरु बचनामृत री गुलाल हवै, सतप्रचार री चहुं उछाल हवै ।
मनव सेवा संघ थाल हवै साधक टोली रे
साधक टोली रे
खेलो खेलो होली रे, कृष्ण वांसुरी बोली रे,
खेलो खेलो होली रे
(2) योग बोध का रंग अमोलो प्रेमानंद नीर में घोलो ।
भर भर श्रद्धा पात्र उड़ेलो, भई रंग रोली रे,
भई रंग रोली रे
खेलो खेलो होली रे, कृष्ण वांसुरी बोली रे,
खेलो खेलो होली रे
(3) ममता चीर कामना कुरतो, खा पिचकारी दूर उछ्लतो।
अंदर बाहर मैल उतरतो, भई मति धोली रे॥
भई मति धोली रे॥
खेलो खेलो होली रे, कृष्ण वांसुरी बोली रे,
खेलो खेलो होली रे॥
(4) अवीर हरि स्यूं अपणेपण री, चम चम चमकै विरह मिलण री।
भगता री टोली रसिकन री, लठ्टा टोली रे॥
अहो भाई लठ्टा टोली रे॥
खेलो खेलो होली रे, कृष्ण वांसुरी बोली रे,
खेलो खेलो होली रे॥
(5) सेवा त्याग प्रेम री लाठी, दोन्यू हाथाँ पकडी काठी |
मार अहम की होज्या माटी, लट्ठम होली रे ॥
लट्ठम होली रे
खेलो खेलो होली रे, कृष्ण वांसुरी बोली रे,
खेलो खेलो होली रे,
(6) यदि बृज कुंज गलयाँ नहीं चीन्ही,
प्रियतम प्रिया प्रेम रस भीनी।
सद्गुण शरणानन्द रुपिणी,
चढज्या डोली रे॥ अहो भई चढज्या डोली रे॥
खेलो खेलो होली रे, कृष्ण वांसुरी बोली रे,
खेलो खेलो होली रे, खेलो खेलो होली रे ।
भजन नं.-5
श्री राम जय राम जय जय राम, श्री राम जय राम जय जय राम,
जय राम लखन सीता हनुमान, जय राम लखन सीता हनुमान,
श्री राम जय राम जय जय राम, श्री राम जय राम जय जय राम,
मेरे रोम रोम में रम जाओ राम मेरे कण कण में बस जाओ राम
श्री राम जय राम जय जय राम,
जय राम लखन सीता हनुमान, जय राम लखन सीता हनुमान,
श्री राम जय राम जय जय राम, श्री राम जय राम जय जय राम,
घट घट वासी राजा राम राज सन्यासी राजा राम ॥
अज अविनासी राजा राम स्वयं प्रकाशी राजा राम,
श्री राम जय राम जय जय राम, श्री राम जय राम जय जय राम,