हर धर्म में पाप करने के लिए क्षमा का विधान बना दिया। ईश्वर कभी भी माफ /क्षमा नही करता है ।दंड सिर्फ दंडाधिकारी दे सकते हैं। किंतु कुछ पंथो में दंड देने के लिए कोई व्यवस्था नही होती है वहां कोई भी व्यक्ति दंडाधिकारी बन जाता है। भीड़ भी कानून को अपने हाथ में लेती है। इससे अराजकता आती है। मनुस्मृति में राजा मंत्री पुरोहित नगर की व्यवस्था अपने हाथो में रखते थे जिसके कारण अन्याय नही हो पाता था। यह वैश्विक वैदिक धर्म है।
अतिसुंदर...🙏 प्रश्नोत्तर के रुप मे बहुत अच्छा निरुपण/ विश्लेषण किया है! अहिंसा और सत्य- अष्टांग योग का पहला योगअंग-यम के पहले दो उपअंग "अहिंसा और सत्य" इनका वास्तविक, सरलतम और मनोभावक दर्शन हो गया! कोटी कोटी धन्यवाद...! इसी तरहसे अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह और नियम, आसन, प्राणायाम -प्रत्याहार- धारणा, ध्यान, समाधी इन बाकी योगअंगोंका भी सविस्तर विश्लेषण/दर्शन मिल गया तो बहुत कृपा होगी. 🙏
[यम-नियमों का सब सेवन करें] यमान् सेवेत सततं न नियमान् केवलान् बुधः। यमान्पतत्यकुर्वाणो नियमान् केवलान् भजन्॥ यह मनुस्मृति का श्लोक है [४। २०४] ॥ यम पाँच प्रकार के होते हैं- अहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिग्रहा यमाः॥ यह योगदर्शन का वचन है [२।३०] । अर्थात (अहिंसा) वैरत्याग, (सत्य) सत्य ही मानना, सत्य ही बोलना और सत्य ही करना, (अस्तेय) अर्थात् मन-वचन-कर्म से चोरी-त्याग, (ब्रह्मचर्य) अर्थात् उपस्थेन्द्रिय का संयम, (अपरिग्रहः) अत्यन्त लोलुपता-स्वत्वाभिमान-रहित होना; [यमाः] इन पाँच यमों का सेवन सदा करें। नियम- शौचसन्तोषतपःस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमाः॥ यह योगशास्त्र का वचन है [२।३२] । (शौच) अर्थात् स्नानादि से पवित्रता, (सन्तोष) सम्यक् प्रसन्न होकर निरुद्यम रहना सन्तोष नहीं, किन्तु पुरुषार्थ जितना हो सके उतना करना; हानि-लाभ में हर्ष वा शोक न करना, (तपः) अर्थात् कष्टसेवन से भी धर्मयुक्त कर्मों का अनुष्ठान [करना], (स्वाध्याय) पढ़ना-पढ़ाना, (ईश्वरप्रणिधानानि) ईश्वर की भक्तिविशेष से आत्मा को [उसके] अर्पित रखना; [नियमाः] ये पाँच नियम कहाते हैं। यमों के विना, केवल इन नियमों का सेवन न करे, किन्तु इन दोनों का ही सेवन किया करे। जो यमों का सेवन छोड़के, केवल नियमों का सेवन करता है, वह उन्नति को प्राप्त नहीं होता, किन्तु अधोगति अर्थात् संसार में गिरा रहता है। शेष.…...निशुल्क सत्यार्थप्रकाश तृतीय समुल्लास व्हाट्सएप 94 130 20 130
हर धर्म में पाप करने के लिए क्षमा का विधान बना दिया। ईश्वर कभी भी माफ /क्षमा नही करता है ।दंड सिर्फ दंडाधिकारी दे सकते हैं। किंतु कुछ पंथो में दंड देने के लिए कोई व्यवस्था नही होती है वहां कोई भी व्यक्ति दंडाधिकारी बन जाता है। भीड़ भी कानून को अपने हाथ में लेती है। इससे अराजकता आती है। मनुस्मृति में राजा मंत्री पुरोहित नगर की व्यवस्था अपने हाथो में रखते थे जिसके कारण अन्याय नही हो पाता था। यह वैश्विक वैदिक धर्म है।
नमस्ते जी, जीवत्मा को सीमित कहते ही धार अर्थात आरम्भ अतिंम एड्ज आजायेगा । जीवत्मा एक स्थान में रहने वाली, दर्शन भाषा में अल्प परिमाण वाली कहते है । जैसे एक बेलून में हवा है अब उस हवा के बोध करते रहना है बेलून को हटा कर । अर्थात जो बेलून के जो हवा था वह अभी भी है एक सीमित स्थान में है परंतु उस के कोई आकर नहीं है । वैसे ही जीव अल्प परिमाण वाली ईश्वर बृहत परिमाण वाली दोनो निराकार चेतन है। अधिक जानकारी के लिए 7027026175 में सम्पर्क कर सकते है ।~ आ प्रियेश
Agar issor maf nahi karega to maf karega kon agar ya nahi hota To proyascheeta name ka koi cheez nahi rahta Balmiki dhyan ka duara , parsuram Sam or dam ka duara apne pap ko maf karbvayatha Issorka saranma jao to bramha srap or bramha hattyaka pap vee maf hojata ha Issor he maf karnevala ha agar vo na hota to dusra chance nam ka koy cheez nahi hota
हर धर्म में पाप करने के लिए क्षमा का विधान बना दिया। ईश्वर कभी भी माफ /क्षमा नही करता है ।दंड सिर्फ दंडाधिकारी दे सकते हैं। किंतु कुछ पंथो में दंड देने के लिए कोई व्यवस्था नही होती है वहां कोई भी व्यक्ति दंडाधिकारी बन जाता है। भीड़ भी कानून को अपने हाथ में लेती है। इससे अराजकता आती है। मनुस्मृति में राजा मंत्री पुरोहित नगर की व्यवस्था अपने हाथो में रखते थे जिसके कारण अन्याय नही हो पाता था। यह वैश्विक वैदिक धर्म है।
हर धर्म में पाप करने के लिए क्षमा का विधान बना दिया। ईश्वर कभी भी माफ /क्षमा नही करता है ।दंड सिर्फ दंडाधिकारी दे सकते हैं। किंतु कुछ पंथो में दंड देने के लिए कोई व्यवस्था नही होती है वहां कोई भी व्यक्ति दंडाधिकारी बन जाता है। भीड़ भी कानून को अपने हाथ में लेती है। इससे अराजकता आती है। मनुस्मृति में राजा मंत्री पुरोहित नगर की व्यवस्था अपने हाथो में रखते थे जिसके कारण अन्याय नही हो पाता था। यह वैश्विक वैदिक धर्म है।
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Jay shree gurudev koti koti pranam
Namasteji swamiji dhanyabad om
Dhanyawaad Swami jee
Baijayanti sadare namastey Swamiji
अति सुन्दर!साधुवाद।
Koti koti Dhanyawaad
Dhanyavad svamiji 🙏
Parnaam Acharya ji. Marag darshan ke liye Aseem aabhaar
ओ३म् सादर नमस्ते स्वामी जी।🙏
स्वामी जी नमस्ते, आपको शत शत प्रणाम और बहुत बहुत धन्यवाद lबहुत अच्छी तरह सरल करके समझाया गया l
स्वामी जी सादर नमस्ते!
Namaste swamiji... very beautiful message
प्रणाम
Namaste 🙏
सादर प्रणाम आचार्य जी
🙏 अति उत्तम 🙏 जन जन तक पहुंचाने योग्य।
आचार्यश्री नमस्त्ते जी,यम नियम _ बहुत ही सुन्दर व्याख्या ,धन्यवाद जी
आदरणीय स्वामी जी सादर नमस्ते आपका सरल कर के समझाने का ढंग अति उत्तम है धन्यवाद।
Very nice
आदरणीय सादर नमस्ते स्वामी जी।🙏
सादर नमस्ते स्वामी जी, बहुत सुन्दर व्याख्या ,बहुत अच्छा लगता है। बर्णन बहुत सरल,व्याख्या में कोई शंकाए नहीं।
बहुत अच्छा उदाहरण के साथ समजाया गया है
ॐ
Namasteji swamiji dhanyabad
Bahut acha vishleshan
2:49
6:39
ओम नमस्ते स्वामी जी
Namaste swamijee.
अतिसुंदर...🙏 प्रश्नोत्तर के रुप मे बहुत अच्छा निरुपण/ विश्लेषण किया है!
अहिंसा और सत्य- अष्टांग योग का पहला योगअंग-यम के पहले दो उपअंग "अहिंसा और सत्य" इनका वास्तविक, सरलतम और मनोभावक दर्शन हो गया! कोटी कोटी धन्यवाद...!
इसी तरहसे अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह और नियम, आसन, प्राणायाम -प्रत्याहार- धारणा, ध्यान, समाधी इन बाकी योगअंगोंका भी सविस्तर विश्लेषण/दर्शन मिल गया तो बहुत कृपा होगी. 🙏
🙏
SWAMIJEE NAMASTEA.VERY NICE AND CLEAR EXPLANATION ON YAMA AND NIYAM.
om nameste ji
SWAMI JI PRANAM SHANKA SAMADHAN SE BOHAT BOHAT JANKARI MILI HYE DHANYAWAD NAMASKAR JI
Om Namaste Swamiji
नमस्ते स्वामी जी 👏👏👏👏👏🌺🌺🌺🌺🌺
Thanks for excellent explanation by maharajji
So nice of you
बहुत खूब ,
ओ३म् नमस्ते
सादर नमस्ते जी
[यम-नियमों का सब सेवन करें]
यमान् सेवेत सततं न नियमान् केवलान् बुधः।
यमान्पतत्यकुर्वाणो नियमान् केवलान् भजन्॥
यह मनुस्मृति का श्लोक है [४। २०४] ॥
यम पाँच प्रकार के होते हैं-
अहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिग्रहा यमाः॥
यह योगदर्शन का वचन है [२।३०] ।
अर्थात (अहिंसा) वैरत्याग, (सत्य) सत्य ही मानना, सत्य ही बोलना और सत्य ही करना, (अस्तेय) अर्थात् मन-वचन-कर्म से चोरी-त्याग, (ब्रह्मचर्य) अर्थात् उपस्थेन्द्रिय का संयम, (अपरिग्रहः) अत्यन्त लोलुपता-स्वत्वाभिमान-रहित होना; [यमाः] इन पाँच यमों का सेवन सदा करें।
नियम-
शौचसन्तोषतपःस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमाः॥
यह योगशास्त्र का वचन है [२।३२] ।
(शौच) अर्थात् स्नानादि से पवित्रता, (सन्तोष) सम्यक् प्रसन्न होकर निरुद्यम रहना सन्तोष नहीं, किन्तु पुरुषार्थ जितना हो सके उतना करना; हानि-लाभ में हर्ष वा शोक न करना, (तपः) अर्थात् कष्टसेवन से भी धर्मयुक्त कर्मों का अनुष्ठान [करना], (स्वाध्याय) पढ़ना-पढ़ाना, (ईश्वरप्रणिधानानि) ईश्वर की भक्तिविशेष से आत्मा को [उसके] अर्पित रखना; [नियमाः] ये पाँच नियम कहाते हैं।
यमों के विना, केवल इन नियमों का सेवन न करे, किन्तु इन दोनों का ही सेवन किया करे। जो यमों का सेवन छोड़के, केवल नियमों का सेवन करता है, वह उन्नति को प्राप्त नहीं होता, किन्तु अधोगति अर्थात् संसार में गिरा रहता है।
शेष.…...निशुल्क
सत्यार्थप्रकाश तृतीय समुल्लास
व्हाट्सएप 94 130 20 130
🙏
Om ji
Sader namaste Swami ji
O3m. Namaste swamiji
नमस्ते स्वामी जी कृपया अष्टांगयोग के सभी अंगों का पूरा विश्लेषण कर ज्ञानामृत का प्रसाद सभी को बांटने की कोशिश करें। धन्यवाद
🙏🙏❤
🙏👏👏
🕉🙏
🙏🧘♂️🇮🇳
Namaste swami ji. 🙏🕉🙏
Aum Namaste Swami ji 🙏
Om Namesta ji
O...m
Om guruji namaste Titilagarh aur ek aiye
Namsty ji
Om namastey 🙏
हर धर्म में पाप करने के लिए क्षमा का विधान बना दिया। ईश्वर कभी भी माफ /क्षमा नही करता है ।दंड सिर्फ दंडाधिकारी दे सकते हैं। किंतु कुछ पंथो में दंड देने के लिए कोई व्यवस्था नही होती है वहां कोई भी व्यक्ति दंडाधिकारी बन जाता है। भीड़ भी कानून को अपने हाथ में लेती है। इससे अराजकता आती है। मनुस्मृति में राजा मंत्री पुरोहित नगर की व्यवस्था अपने हाथो में रखते थे जिसके कारण अन्याय नही हो पाता था। यह वैश्विक वैदिक धर्म है।
शिव जी के बारे में कुछ बताइए
और ये बताये क्या ये सही है कि आत्मा ससीम निराकार और ईश्वर असीम निराकार।
ओ३म् नमस्ते
नमस्ते जी,
जीवत्मा को सीमित कहते ही धार अर्थात आरम्भ अतिंम एड्ज आजायेगा । जीवत्मा एक स्थान में रहने वाली, दर्शन भाषा में अल्प परिमाण वाली कहते है । जैसे एक बेलून में हवा है अब उस हवा के बोध करते रहना है बेलून को हटा कर । अर्थात जो बेलून के जो हवा था वह अभी भी है एक सीमित स्थान में है परंतु उस के कोई आकर नहीं है । वैसे ही जीव अल्प परिमाण वाली ईश्वर बृहत परिमाण वाली दोनो निराकार चेतन है।
अधिक जानकारी के लिए 7027026175 में सम्पर्क कर सकते है ।~ आ प्रियेश
@@darshanyog2 प्रियेश जी ,ये तो एड है आपका नं. दो या तीन न. है मेरे पास ,पर किस समय करू आपको फोन??
ओ३म् नमस्ते
भगवान जो बलवान हो बुद्धिमान हो धनवान हो भगवान उसके लिए भी कहा गया
🎉 8 मूर्तियों का वर्णन आता है पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश सूर्य चंद्रमा और यजमान
यजुर्वेद अध्या 8/13 में लिखा है
*सर्वस्व एनस्य अव्यवजन्म असी*
6 प्रकार से पाप कर्मों का नाश करता है।
यजुर्वेद अध्या 5/32 में भी विवरण है।
कानून तो सही है लेकिन वकील केस खत्म करना नही चाहते हैं इसलिए केस लम्बित रहते हैं
31:00
Agar issor maf nahi karega to maf karega kon agar ya nahi hota To proyascheeta name ka koi cheez nahi rahta
Balmiki dhyan ka duara , parsuram Sam or dam ka duara apne pap ko maf karbvayatha
Issorka saranma jao to bramha srap or bramha hattyaka pap vee maf hojata ha
Issor he maf karnevala ha agar vo na hota to dusra chance nam ka koy cheez nahi hota
Ram Ratan Lect GGHS Aherwan Palwal welcome to you
Or isko chor kar ( ka issor kathor duand da danavala ha) apne jo vee kaha vo akdam such ha akdam such ha vo akdom such ha
hello
नमस्ते जी
Swami ji namsta
अति सुन्दर, साधुवाद!
हर धर्म में पाप करने के लिए क्षमा का विधान बना दिया। ईश्वर कभी भी माफ /क्षमा नही करता है ।दंड सिर्फ दंडाधिकारी दे सकते हैं। किंतु कुछ पंथो में दंड देने के लिए कोई व्यवस्था नही होती है वहां कोई भी व्यक्ति दंडाधिकारी बन जाता है। भीड़ भी कानून को अपने हाथ में लेती है। इससे अराजकता आती है। मनुस्मृति में राजा मंत्री पुरोहित नगर की व्यवस्था अपने हाथो में रखते थे जिसके कारण अन्याय नही हो पाता था। यह वैश्विक वैदिक धर्म है।