*स्तुति:* *विरञ्च्यादिदेवास्त्रयस्ते गुणांस्त्रीन् समाराध्य कालीं प्रधाना बभूवु:। अनादिं सुरादिं मखादिं भवादिं स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा: ।।4।।* अर्थ - ब्रह्मा आदि तीनों देवता आपके तीनों गुणों का आश्रय लेकर तथा आप भगवती काली की ही आराधना कर प्रधान हुए हैं। आपका स्वरूप आदि रहित है, देवताओं में अग्रगण्य है, प्रधान यज्ञस्वरुप है और विश्व का मूलभूत है; आपके इस स्वरुप को देवता भी नहीं जानते। *जगन्मोहनीयं तु वाग्वादिनीयं सुहृत्पोषिणीशत्रुसंहारणीयम्। वचस्तम्भनीयं किमुच्चाटनीयं स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा: ।।5।।* अर्थ - आपका यह स्वरुप सारे विश्व को मुग्ध करने वाला है, वाणी द्वारा स्तुति किये जाने योग्य है, यह सुहृदों का पालन करने वाला है, शत्रुओं का विनाशक है, वाणी का स्तम्भन करने वाला है और उच्चाटन करने वाला है; आपके इस स्वरुप को देवता भी नहीं जानते। *इयं स्वर्गदात्री पुन: कल्पवल्ली मनोजांस्तु कामान् यथार्थं प्रकुर्यात्। तथा ते कृतार्था भवन्तीति नित्यं स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा: ।।6।।* अर्थ - ये स्वर्ग को देने वाली हैं और कल्पता के समान हैं। ये भक्तों के मन में उत्पन्न होने वाली कामनाओं को यथार्थ रूप में पूर्ण करती हैं और वे सदा के लिए कृतार्थ हो जाते हैं; आपके इस स्वरुप को देवता भी नहीं जानते। *सुरापानमत्ता सुभक्तानुरक्ता लसत्पूतचित्ते सदाविर्भवत्ते। जपध्यानपूजासुधाधौतपंका स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा: ।।7।।* अर्थ - आप सुरापान से मत्त रहती हैं और अपने भक्तों पर सदा स्नेह रखती हैं। भक्तों के मनोहर तथा पवित्र हृदय में ही सदा आपका आविर्भाव होता है। जप, ध्यान तथा पूजारूपी अमृत से आप भक्तों के अज्ञानरूपी पंक(कीचड़) को धो डालने वाली हैं; आपके इस स्वरुप को देवता भी नहीं जानते। *चिदानन्दकन्दं हसन् मन्दमन्दं शरच्चन्द्रकोटिप्रभापुञ्जबिम्बम् । मुनीनां कवीनां हृदि द्योतयन्तं स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा: ।।8।।* अर्थ - आपका स्वरुप चिदानन्दघन, मन्द-मन्द मुस्कान से संपन्न, शरत्कालीन करोड़ों चन्द्रमा के प्रभास समूह के प्रतिबिम्ब सदृश और मुनियों तथा कवियों के हृदय को प्रकाशित करने वाला है; आपके इस स्वरुप को देवता भी नहीं जानते। *महामेघकाली सुरक्तापि शुभ्रा कदाचिद् विचित्राकृतिर्योगमाया। न बाला न वृद्धा न कामातुरापि स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा: ।।9।।* अर्थ - आप प्रलयकारी घटाओं के समान कृष्णवर्णा हैं, आप कभी रक्तवर्णवाली तथा कभी उज्जवल वर्ण वाली भी हैं। आप विचित्र आकृति वाली तथा योगमायास्वरुपिणी हैं। आप न बाला, न वृद्धा और ना कामातुरा युवती ही हैं; आपके इस स्वरुप को देवता भी नहीं जानते। *क्षमस्वापराधं महागुप्तभावं मया लोकमध्ये प्रकाशीकृतं यत् । तव ध्यानपूतेन चापल्यभावात् स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा: ।।10।।* अर्थ - आपके ध्यान से पवित्र होकर चंचलतावश इस अत्यन्त गुप्त भाव को जो मैंने संसार में प्रकट कर दिया है, मेरे इस अपराध को आप क्षमा करें; आपके इस स्वरुप को देवता भी नहीं जानते। 🌿🙏🌻 *फलश्रुति:* यदि ध्यानयुक्तं पठेद् यो मनुष्य- स्तदा सर्वलोके विशालो भवेच्च। गृहे चाष्टसिद्धिर्मृते चापि मुक्ति: स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा: ।।11।।* अर्थ - यदि कोई मनुष्य ध्यानयुक्त होकर इसका पाठ करता है, तो वह सारे लोकों में महान हो जाता है। उसे अपने घर में आठों सिद्धियाँ प्राप्त रहती हैं और मरने पर मुक्ति भी प्राप्त हो जाती है; आपके इस स्वरुप को देवता भी नहीं जानते। *।।इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितं श्रीकालिकाष्टकं सम्पूर्णम्।।* 🙏 🌺🌺🌺🌺🌺🌺
*या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥* 🙏🌿🌸🍏 भावार्थ : जो देवी सब प्राणियों में चेतना कहलाती हैं, उनको बारंबार नमस्कार है । *या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥* 🙏🌿🌸🍏 भावार्थ : जो देवी सब प्राणियों में बुद्धिरूप से स्थित हैं, उनको बारंबार नमस्कार है । *या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥* 🙏🌿🌸🍏 भावार्थ : जो देवी सब प्राणियों में शक्ति रूप से स्थित हैं, उनको बारंबार नमस्कार है । *या देवी सर्वभूतेषु लज्जारूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥* 🙏🌿🌸🍏 भावार्थ : जो देवी सब प्राणियों में लज्जा रूप से स्थित हैं, उनको बारंबार नमस्कार है । *या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥* 🙏🌿🌸🍏 भावार्थ : जो देवी सब प्राणियों में शान्ति रूप से स्थित हैं, उनको बारंबार नमस्कार है । *या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धारूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥* 🙏🌿🌸🍏 भावार्थ : जो देवी सब प्राणियों में श्रद्धा रूप से स्थित हैं, उनको बारंबार नमस्कार है । *या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥* 🙏🌿🌸🍏 भावार्थ : जो देवी सब प्राणियों में लक्ष्मी रूप से स्थित हैं, उनको बारंबार नमस्कार है । *या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥* 🙏🌿🌸🍏 भावार्थ : जो देवी सब प्राणियों में दया रूप से स्थित हैं, उनको बारंबार नमस्कार है । 🌺🌱🌺🌱🌺🌱🌺🌱🌺🌱🌺🌱🌺🌱🌺🌱🌺🌱
Shree Kalika Mata Ki Jai 🙏🌹🙏
No sound
💐🌹🙏
If you don't know about classical music don't play this type playback music in future send me your number
🙏🙏koti koti pranamagalu jai jai shree kali mata krapa karo maa jai jai🙏🙏🙏
🙏🌹🙏
Why no sound
🙏🌹🙏
🌹🌹🙏🙏
🌺🌸🙏🙏
Jai mataa ki
*स्तुति:* *विरञ्च्यादिदेवास्त्रयस्ते गुणांस्त्रीन् समाराध्य कालीं प्रधाना बभूवु:। अनादिं सुरादिं मखादिं भवादिं स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा: ।।4।।* अर्थ - ब्रह्मा आदि तीनों देवता आपके तीनों गुणों का आश्रय लेकर तथा आप भगवती काली की ही आराधना कर प्रधान हुए हैं। आपका स्वरूप आदि रहित है, देवताओं में अग्रगण्य है, प्रधान यज्ञस्वरुप है और विश्व का मूलभूत है; आपके इस स्वरुप को देवता भी नहीं जानते। *जगन्मोहनीयं तु वाग्वादिनीयं सुहृत्पोषिणीशत्रुसंहारणीयम्। वचस्तम्भनीयं किमुच्चाटनीयं स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा: ।।5।।* अर्थ - आपका यह स्वरुप सारे विश्व को मुग्ध करने वाला है, वाणी द्वारा स्तुति किये जाने योग्य है, यह सुहृदों का पालन करने वाला है, शत्रुओं का विनाशक है, वाणी का स्तम्भन करने वाला है और उच्चाटन करने वाला है; आपके इस स्वरुप को देवता भी नहीं जानते। *इयं स्वर्गदात्री पुन: कल्पवल्ली मनोजांस्तु कामान् यथार्थं प्रकुर्यात्। तथा ते कृतार्था भवन्तीति नित्यं स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा: ।।6।।* अर्थ - ये स्वर्ग को देने वाली हैं और कल्पता के समान हैं। ये भक्तों के मन में उत्पन्न होने वाली कामनाओं को यथार्थ रूप में पूर्ण करती हैं और वे सदा के लिए कृतार्थ हो जाते हैं; आपके इस स्वरुप को देवता भी नहीं जानते। *सुरापानमत्ता सुभक्तानुरक्ता लसत्पूतचित्ते सदाविर्भवत्ते। जपध्यानपूजासुधाधौतपंका स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा: ।।7।।* अर्थ - आप सुरापान से मत्त रहती हैं और अपने भक्तों पर सदा स्नेह रखती हैं। भक्तों के मनोहर तथा पवित्र हृदय में ही सदा आपका आविर्भाव होता है। जप, ध्यान तथा पूजारूपी अमृत से आप भक्तों के अज्ञानरूपी पंक(कीचड़) को धो डालने वाली हैं; आपके इस स्वरुप को देवता भी नहीं जानते। *चिदानन्दकन्दं हसन् मन्दमन्दं शरच्चन्द्रकोटिप्रभापुञ्जबिम्बम् । मुनीनां कवीनां हृदि द्योतयन्तं स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा: ।।8।।* अर्थ - आपका स्वरुप चिदानन्दघन, मन्द-मन्द मुस्कान से संपन्न, शरत्कालीन करोड़ों चन्द्रमा के प्रभास समूह के प्रतिबिम्ब सदृश और मुनियों तथा कवियों के हृदय को प्रकाशित करने वाला है; आपके इस स्वरुप को देवता भी नहीं जानते। *महामेघकाली सुरक्तापि शुभ्रा कदाचिद् विचित्राकृतिर्योगमाया। न बाला न वृद्धा न कामातुरापि स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा: ।।9।।* अर्थ - आप प्रलयकारी घटाओं के समान कृष्णवर्णा हैं, आप कभी रक्तवर्णवाली तथा कभी उज्जवल वर्ण वाली भी हैं। आप विचित्र आकृति वाली तथा योगमायास्वरुपिणी हैं। आप न बाला, न वृद्धा और ना कामातुरा युवती ही हैं; आपके इस स्वरुप को देवता भी नहीं जानते। *क्षमस्वापराधं महागुप्तभावं मया लोकमध्ये प्रकाशीकृतं यत् । तव ध्यानपूतेन चापल्यभावात् स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा: ।।10।।* अर्थ - आपके ध्यान से पवित्र होकर चंचलतावश इस अत्यन्त गुप्त भाव को जो मैंने संसार में प्रकट कर दिया है, मेरे इस अपराध को आप क्षमा करें; आपके इस स्वरुप को देवता भी नहीं जानते। 🌿🙏🌻 *फलश्रुति:* यदि ध्यानयुक्तं पठेद् यो मनुष्य- स्तदा सर्वलोके विशालो भवेच्च। गृहे चाष्टसिद्धिर्मृते चापि मुक्ति: स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवा: ।।11।।* अर्थ - यदि कोई मनुष्य ध्यानयुक्त होकर इसका पाठ करता है, तो वह सारे लोकों में महान हो जाता है। उसे अपने घर में आठों सिद्धियाँ प्राप्त रहती हैं और मरने पर मुक्ति भी प्राप्त हो जाती है; आपके इस स्वरुप को देवता भी नहीं जानते। *।।इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितं श्रीकालिकाष्टकं सम्पूर्णम्।।* 🙏 🌺🌺🌺🌺🌺🌺
*या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥* 🙏🌿🌸🍏 भावार्थ : जो देवी सब प्राणियों में चेतना कहलाती हैं, उनको बारंबार नमस्कार है । *या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥* 🙏🌿🌸🍏 भावार्थ : जो देवी सब प्राणियों में बुद्धिरूप से स्थित हैं, उनको बारंबार नमस्कार है । *या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥* 🙏🌿🌸🍏 भावार्थ : जो देवी सब प्राणियों में शक्ति रूप से स्थित हैं, उनको बारंबार नमस्कार है । *या देवी सर्वभूतेषु लज्जारूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥* 🙏🌿🌸🍏 भावार्थ : जो देवी सब प्राणियों में लज्जा रूप से स्थित हैं, उनको बारंबार नमस्कार है । *या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥* 🙏🌿🌸🍏 भावार्थ : जो देवी सब प्राणियों में शान्ति रूप से स्थित हैं, उनको बारंबार नमस्कार है । *या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धारूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥* 🙏🌿🌸🍏 भावार्थ : जो देवी सब प्राणियों में श्रद्धा रूप से स्थित हैं, उनको बारंबार नमस्कार है । *या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥* 🙏🌿🌸🍏 भावार्थ : जो देवी सब प्राणियों में लक्ष्मी रूप से स्थित हैं, उनको बारंबार नमस्कार है । *या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥* 🙏🌿🌸🍏 भावार्थ : जो देवी सब प्राणियों में दया रूप से स्थित हैं, उनको बारंबार नमस्कार है । 🌺🌱🌺🌱🌺🌱🌺🌱🌺🌱🌺🌱🌺🌱🌺🌱🌺🌱
Jai shri Kalika Devi Prasanna
🙏🙏🙏🙏🙏
Kalika Mataki jai