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Arun Kumar
India
เข้าร่วมเมื่อ 31 ก.ค. 2020
bhairavnath temple vaishno devi || Vaishno devi yatra Part 2 || भैरो घाटी का इतिहास || yatra Day 2
bhairavnath temple vaishno devi || Vaishno devi yatra Part 2 || भैरो घाटी का इतिहास || yatra Day 2
माता वैष्णो देवी को लेकर कई कथाएँ प्रचलित हैं ऐसी ही एक प्रसिद्ध प्राचीन कहानी है माता वैष्णो के परम भक्त श्रीधर की वे वर्तमान कटरा कस्बे से 2 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित हंसली गांव में रहता थे एक बार उन्होंने अपने घर पर कन्या भोज का आयोजन किया। भोजन के बाद सारी कन्याएं अपने घर चली गई। एक कन्या नहीं गई। वह कन्या जिसका स्वरूप दिव्य था। मान्यता है की श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर माता वैष्णो ने कन्या रूप में उनको दर्शन दिए. उस कन्या ने पंडित से माता का भंडारा आयोजित करने के लिए कहा उन्होंने कहा में गरीब इतने लोगो का भोजन कहा से लाऊंगा कन्या ने कहा माता सब पूर्ण करेगी चिंता मत करो कहकर विलुप्त हो गई।
श्रीधर ने अपने गाँव में माता का भण्डारा रखा और श्रीधर ने आस पास के सभी गांव वालो व साधु-संतों को भंडारे में पधारने का निमंत्रण दिया। पहली बार तो गाँववालों को विश्वास ही नहीं हुआ कि निर्धन श्रीधर भण्डारा कर रहा है। श्रीधर ने एक स्वार्थी राक्षस भैरवनाथ को भी उसके शिष्यों के साथ आमंत्रित किया था। भंडारे के एक दिन पहले, पंडित श्रीधर सो नहीं पा रहे थे यह सोचकर की वह मेहमानों को भोजन कैसे करा सकेंगे भंडारे वाले दिन पुनः श्रीधर अनुरोध करते हुए सभी के घर बारी-बारी गए ताकि उन्हें खाना बनाने की सामग्री मिले और वह खाना बना कर मेहमानों को भंडारे वाले दिन खिला सके। जितने लोगों ने उनकी मदद की वह काफी नहीं थी क्योंकि मेहमान बहुत ज्यादा थे इतनी कम सामग्री और इतनी कम जगह दोनों ही समस्या थी।
वह सुबह तक समस्याओं से घिरे हुए थे और बस उसे अब देवी मां से ही आस थी। वह अपनी झोपड़ी के बाहर पूजा के लिए बैठ गए,दोपहर तक साधू संत मेहमान आना शुरू हो गए थे श्रीधर को पूजा करते देख वे जहां जगह दिखी वहां बैठ गए। सभी लोग श्रीधर की छोटी से कुटिया में 360 से अधिक श्रद्धालुओं आसानी से बैठ गए और अभी भी काफी जगह बाकी थी।श्रीधर ने अपनी आंखें खोली और सोचा की इन सभी को भोजन कैसे कराएंगे, तब उसने एक छोटी लड़की को झोपडी से बाहर आते हुए देखा जो सबको अपना नाम वैष्णवी बता रही थी वह सभी को स्वादिष्ट भोजन परोस रही थी, भक्त श्रीधर माता के पैरो मे गिर गए भण्डारा सम्पन्न होने को था कि लेकिन पूर्ण व्यवस्था देखकर भैरव नाथ ने जान लिया कि बालिका में जरूर अलौकिक शक्तियां है और आगे और परीक्षा लेने का निर्णय लिया। भंडारे में भैरवनाथ ने खीर-पूड़ी की जगह मांस-मदिरा का सेवन करने की बात की तब श्रीधर ने इस पर असहमति जताई।
भैरवनाथ को क्रोध आ गया कन्यारूपी माता वैष्णो देवी ने भैरवनाथ को समझाने की कोशिश की किंतु भैरवनाथ ने उसकी एक ना मानी। ओर युद्ध शुरू हो गया किंतु जब भैरवनाथ ने उस कन्या को पकड़ना चाहा, कन्या वहाँ से त्रिकूट पर्वत की ओर भागी और उस कन्यारूपी वैष्णो देवी ने हनुमान को बुलाकर कहा कि मैं इस गुफा में नौ माह तक तपस्या करूंगी। तब तक तुम भैरवनाथ को उलझा के रखो गुफा के बाहर माता की रक्षा के लिए हनुमानजी ने भैरवनाथ के साथ नौ माह खेल खेला। 9 महीनों तक ध्यानमग्न रहकर उनको अशंख शक्तिया प्राप्त हुई. भैरव द्वारा उन्हें ढूंढ़ लेने पर उनकी साधना भंग हुई. जब भैरव ने उन्हें मारने की कोशिश की, तो विवश होकर वैष्णो देवी ने महा काली का रूप लिया। दरबार में पवित्र गुफ़ा के द्वार पर देवी मां प्रकट हुईं. देवी ने इतनी शक्ति के साथ भैरव का सिर धड़ से अलग किया कि उसकी खोपड़ी पवित्र गुफ़ा से 3 कि॰मी॰ की दूरी पर भैरव घाटी नामक स्थान पर जा गिरी. माना जाता है कि इस प्राचीन गुफा के अंदर आज भी भैरव का शरीर मौजूद है त्रिकुट पर वैष्णो मां ने भैरवनाथ का संहार किया तथा भैरव ने मरते समय क्षमा याचना की देवी जानती थीं कि उन पर हमला करने के पीछे भैरव की प्रमुख मंशा मोक्ष प्राप्त करने की थी।
उन्होंने न केवल भैरव को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की, बल्कि भैरवनाथ को वरदान भी दिया ओर अपने से उंचा स्थान दिया कहा कि जो मनुष्य मेरे दर्शन के पशचात् तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा उसकी यात्रा पूरी नहीं होगी इसके बाद माता वैष्णो देवी ने अर्धक्वाँरी के पास गर्भ जून में एक चट्टान का आकार ग्रहण किया और सदा के लिए ध्यानमग्न हो गईं.श्रद्धालुओं का मानना है कि जिस तरह से शिशु नौ मास तक गर्भ में रहता है, उसी प्रकार वैष्णो देवी ने यहां नौ मास तक कठिन तपस्या करी थी। इसी लिये इसका नाम गर्भजून पड़ा गुफा को लेकर मान्यता है कि जो भी मनुष्य इस गुफा में जाता है उसे फिर गर्भ में नहीं जाना पड़ता है। अगर मनुष्य गर्भ में आता भी है तो गर्भ में उसे कष्ट नहीं उठाना पड़ता है और उसका जन्म सुख एवं वैभव से भरा होता है अर्धक्वाँरी के पास ही नदी के किनारे माता की चरण पादुका देवी मां के पैरों के निशान हैं, जो आज तक उसी तरह विद्यमान हैं यह वह स्थान है, जहाँ माता ने भागते-भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा था। कहते हैं उस वक्त हनुमानजी माँ की रक्षा के लिए माँ वैष्णो देवी के साथ ही थे।
बाणगंगा का रहस्य:
हनुमान जी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर एक बाण चलाकर जलधारा को निकाला और उस जल में अपने केश धोए। आज यह पवित्र जलधारा ‘बाणगंगा’ के नाम से जानी जाती है, जिसके पवित्र जल का पान करने या इससे स्नान करने से भक्तों की सारी व्याधियाँ दूर हो जाती हैं। #vaishnodevi #vaishnodeviyatra #blessings #trending #viralvideo
माता वैष्णो देवी को लेकर कई कथाएँ प्रचलित हैं ऐसी ही एक प्रसिद्ध प्राचीन कहानी है माता वैष्णो के परम भक्त श्रीधर की वे वर्तमान कटरा कस्बे से 2 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित हंसली गांव में रहता थे एक बार उन्होंने अपने घर पर कन्या भोज का आयोजन किया। भोजन के बाद सारी कन्याएं अपने घर चली गई। एक कन्या नहीं गई। वह कन्या जिसका स्वरूप दिव्य था। मान्यता है की श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर माता वैष्णो ने कन्या रूप में उनको दर्शन दिए. उस कन्या ने पंडित से माता का भंडारा आयोजित करने के लिए कहा उन्होंने कहा में गरीब इतने लोगो का भोजन कहा से लाऊंगा कन्या ने कहा माता सब पूर्ण करेगी चिंता मत करो कहकर विलुप्त हो गई।
श्रीधर ने अपने गाँव में माता का भण्डारा रखा और श्रीधर ने आस पास के सभी गांव वालो व साधु-संतों को भंडारे में पधारने का निमंत्रण दिया। पहली बार तो गाँववालों को विश्वास ही नहीं हुआ कि निर्धन श्रीधर भण्डारा कर रहा है। श्रीधर ने एक स्वार्थी राक्षस भैरवनाथ को भी उसके शिष्यों के साथ आमंत्रित किया था। भंडारे के एक दिन पहले, पंडित श्रीधर सो नहीं पा रहे थे यह सोचकर की वह मेहमानों को भोजन कैसे करा सकेंगे भंडारे वाले दिन पुनः श्रीधर अनुरोध करते हुए सभी के घर बारी-बारी गए ताकि उन्हें खाना बनाने की सामग्री मिले और वह खाना बना कर मेहमानों को भंडारे वाले दिन खिला सके। जितने लोगों ने उनकी मदद की वह काफी नहीं थी क्योंकि मेहमान बहुत ज्यादा थे इतनी कम सामग्री और इतनी कम जगह दोनों ही समस्या थी।
वह सुबह तक समस्याओं से घिरे हुए थे और बस उसे अब देवी मां से ही आस थी। वह अपनी झोपड़ी के बाहर पूजा के लिए बैठ गए,दोपहर तक साधू संत मेहमान आना शुरू हो गए थे श्रीधर को पूजा करते देख वे जहां जगह दिखी वहां बैठ गए। सभी लोग श्रीधर की छोटी से कुटिया में 360 से अधिक श्रद्धालुओं आसानी से बैठ गए और अभी भी काफी जगह बाकी थी।श्रीधर ने अपनी आंखें खोली और सोचा की इन सभी को भोजन कैसे कराएंगे, तब उसने एक छोटी लड़की को झोपडी से बाहर आते हुए देखा जो सबको अपना नाम वैष्णवी बता रही थी वह सभी को स्वादिष्ट भोजन परोस रही थी, भक्त श्रीधर माता के पैरो मे गिर गए भण्डारा सम्पन्न होने को था कि लेकिन पूर्ण व्यवस्था देखकर भैरव नाथ ने जान लिया कि बालिका में जरूर अलौकिक शक्तियां है और आगे और परीक्षा लेने का निर्णय लिया। भंडारे में भैरवनाथ ने खीर-पूड़ी की जगह मांस-मदिरा का सेवन करने की बात की तब श्रीधर ने इस पर असहमति जताई।
भैरवनाथ को क्रोध आ गया कन्यारूपी माता वैष्णो देवी ने भैरवनाथ को समझाने की कोशिश की किंतु भैरवनाथ ने उसकी एक ना मानी। ओर युद्ध शुरू हो गया किंतु जब भैरवनाथ ने उस कन्या को पकड़ना चाहा, कन्या वहाँ से त्रिकूट पर्वत की ओर भागी और उस कन्यारूपी वैष्णो देवी ने हनुमान को बुलाकर कहा कि मैं इस गुफा में नौ माह तक तपस्या करूंगी। तब तक तुम भैरवनाथ को उलझा के रखो गुफा के बाहर माता की रक्षा के लिए हनुमानजी ने भैरवनाथ के साथ नौ माह खेल खेला। 9 महीनों तक ध्यानमग्न रहकर उनको अशंख शक्तिया प्राप्त हुई. भैरव द्वारा उन्हें ढूंढ़ लेने पर उनकी साधना भंग हुई. जब भैरव ने उन्हें मारने की कोशिश की, तो विवश होकर वैष्णो देवी ने महा काली का रूप लिया। दरबार में पवित्र गुफ़ा के द्वार पर देवी मां प्रकट हुईं. देवी ने इतनी शक्ति के साथ भैरव का सिर धड़ से अलग किया कि उसकी खोपड़ी पवित्र गुफ़ा से 3 कि॰मी॰ की दूरी पर भैरव घाटी नामक स्थान पर जा गिरी. माना जाता है कि इस प्राचीन गुफा के अंदर आज भी भैरव का शरीर मौजूद है त्रिकुट पर वैष्णो मां ने भैरवनाथ का संहार किया तथा भैरव ने मरते समय क्षमा याचना की देवी जानती थीं कि उन पर हमला करने के पीछे भैरव की प्रमुख मंशा मोक्ष प्राप्त करने की थी।
उन्होंने न केवल भैरव को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की, बल्कि भैरवनाथ को वरदान भी दिया ओर अपने से उंचा स्थान दिया कहा कि जो मनुष्य मेरे दर्शन के पशचात् तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा उसकी यात्रा पूरी नहीं होगी इसके बाद माता वैष्णो देवी ने अर्धक्वाँरी के पास गर्भ जून में एक चट्टान का आकार ग्रहण किया और सदा के लिए ध्यानमग्न हो गईं.श्रद्धालुओं का मानना है कि जिस तरह से शिशु नौ मास तक गर्भ में रहता है, उसी प्रकार वैष्णो देवी ने यहां नौ मास तक कठिन तपस्या करी थी। इसी लिये इसका नाम गर्भजून पड़ा गुफा को लेकर मान्यता है कि जो भी मनुष्य इस गुफा में जाता है उसे फिर गर्भ में नहीं जाना पड़ता है। अगर मनुष्य गर्भ में आता भी है तो गर्भ में उसे कष्ट नहीं उठाना पड़ता है और उसका जन्म सुख एवं वैभव से भरा होता है अर्धक्वाँरी के पास ही नदी के किनारे माता की चरण पादुका देवी मां के पैरों के निशान हैं, जो आज तक उसी तरह विद्यमान हैं यह वह स्थान है, जहाँ माता ने भागते-भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा था। कहते हैं उस वक्त हनुमानजी माँ की रक्षा के लिए माँ वैष्णो देवी के साथ ही थे।
बाणगंगा का रहस्य:
हनुमान जी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर एक बाण चलाकर जलधारा को निकाला और उस जल में अपने केश धोए। आज यह पवित्र जलधारा ‘बाणगंगा’ के नाम से जानी जाती है, जिसके पवित्र जल का पान करने या इससे स्नान करने से भक्तों की सारी व्याधियाँ दूर हो जाती हैं। #vaishnodevi #vaishnodeviyatra #blessings #trending #viralvideo
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भाई आपकी आवाज बहुत धीमी है साफ सुनाई नही देता
Jai mata di
Jay Mata Vaishno Devi Ji Mehar karo ji
Jai mata kangra bali ki jai ho❤
❤️ Har 🙏 Har ❤️ Mahadev ❤️🙏❤️
HAR HAR MAHADEV BABA
Har Har Mahadev❤❤🙏🙏
🙏🙏
,👌👌
Jay shree shitla Mata ji kuldevi namoh prashanam ❤❤❤❤ kripa Karo ❤❤❤❤
Rama
Jai Baba Mahakal ki jai
Jai Baba Mahakal ki jai
Jai Mata Di
❤❤❤
Jai Mahakal
❤❤❤❤
Har Har Mahadev ❤️
👌👌❤❤
🫶🤟
👌👌
👌👌👌
❤❤❤❤❤
Har har Mahadev 🙏🙏
har har mahadev ❤
👌👌
Jai shiv shambhu❤❤
Jore se explain caro bhayya
@@mvlnarayana8099 ok brother next time i will try
❤❤❤❤
😂😂
😅😅😅
😂😂😂😂
😂😂😂
Jay sheetla
JAI MAA CHAMUNDA DEVI
Joy Ma Joy Bhole Baba
Har Har Mahadev
Har har mahadev ❤️
Jai mata di bhai kia mandir naya ban gaya hai kia
@@MandeepSingh-oj8hn bhai bn rha hai abhi kaam chal rha hai main mandir mai
Jai shree mahakal ji ki Jai ho
Jai shree mahakal ji
Jai shree mahakal
Jai Maa Shtala Devi ji T to you ji see the Temple ji❤ 5:51
👌👌❤❤
Jai mahakal
Jai mahakal
🙏🏼