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RamcharitManas-Kashi
Canada
เข้าร่วมเมื่อ 2 ส.ค. 2010
रामचरितमानस मूलपाठ: उत्तरकाण्ड(मङ्गलाचरण, दोहा:१-८)
रामचरितमानस मूलपाठ: उत्तरकाण्ड प्लेलिस्ट
th-cam.com/play/PLHk5JmPkB5Sfhm-dWTKUfZ0vCK7o8Dxla.html
मङ्गलाचरण
श्लोक
केकीकण्ठाभनीलं सुरवरविलसद्विप्रपादाब्जचिह्नं
शोभाढ्यं पीतवस्त्रं सरसिजनयनं सर्वदा सुप्रसन्नम्।
पाणौ नाराचचापं कपिनिकरयुतं बन्धुना सेव्यमानं
नौमीड्यं जानकीशं रघुवरमनिशं पुष्पकारूढरामम् ॥ १ ॥
कोसलेन्द्रपदकञ्जमञ्जुलौ कोमलावजमहेशवन्दितौ।
जानकीकरसरोजलालितौ चिन्तकस्य मनभृङ्गसड्गिनौ ॥ २ ॥
कुन्दइन्दुदरगौरसुन्दरं अम्बिकापतिमभीष्टसिद्धिदम्।
कारुणीककलकञ्जलोचनं नौमि शंकरमनंगमोचनम् ॥ ३ ॥
दो. रहा एक दिन अवधि कर अति आरत पुर लोग।
जहँ तहँ सोचहिं नारि नर कृस तन राम बियोग ॥
सगुन होहिं सुंदर सकल मन प्रसन्न सब केर।
प्रभु आगवन जनाव जनु नगर रम्य चहुँ फेर ॥
कौसल्यादि मातु सब मन अनंद अस होइ।
आयउ प्रभु श्री अनुज जुत कहन चहत अब कोइ ॥
भरत नयन भुज दच्छिन फरकत बारहिं बार।
जानि सगुन मन हरष अति लागे करन बिचार ॥
रहेउ एक दिन अवधि अधारा। समुझत मन दुख भयउ अपारा ॥
कारन कवन नाथ नहिं आयउ। जानि कुटिल किधौं मोहि बिसरायउ ॥
अहह धन्य लछिमन बड़भागी। राम पदारबिंदु अनुरागी ॥
कपटी कुटिल मोहि प्रभु चीन्हा। ताते नाथ संग नहिं लीन्हा ॥
जौं करनी समुझै प्रभु मोरी। नहिं निस्तार कलप सत कोरी ॥
जन अवगुन प्रभु मान न काऊ। दीन बंधु अति मृदुल सुभाऊ ॥
मोरि जियँ भरोस दृढ़ सोई। मिलिहहिं राम सगुन सुभ होई ॥
बीतें अवधि रहहि जौं प्राना। अधम कवन जग मोहि समाना ॥
दो. राम बिरह सागर महँ भरत मगन मन होत।
बिप्र रूप धरि पवन सुत आइ गयउ जनु पोत ॥ १(क) ॥
बैठि देखि कुसासन जटा मुकुट कृस गात।
राम राम रघुपति जपत स्त्रवत नयन जलजात ॥ १(ख) ॥
देखत हनूमान अति हरषेउ। पुलक गात लोचन जल बरषेउ ॥
मन महँ बहुत भाँति सुख मानी। बोलेउ श्रवन सुधा सम बानी ॥
जासु बिरहँ सोचहु दिन राती। रटहु निरंतर गुन गन पाँती ॥
रघुकुल तिलक सुजन सुखदाता। आयउ कुसल देव मुनि त्राता ॥
रिपु रन जीति सुजस सुर गावत। सीता सहित अनुज प्रभु आवत ॥
सुनत बचन बिसरे सब दूखा। तृषावंत जिमि पाइ पियूषा ॥
को तुम्ह तात कहाँ ते आए। मोहि परम प्रिय बचन सुनाए ॥
मारुत सुत मैं कपि हनुमाना। नामु मोर सुनु कृपानिधाना ॥
दीनबंधु रघुपति कर किंकर। सुनत भरत भेंटेउ उठि सादर ॥
मिलत प्रेम नहिं हृदयँ समाता। नयन स्त्रवत जल पुलकित गाता ॥
कपि तव दरस सकल दुख बीते। मिले आजु मोहि राम पिरीते ॥
बार बार बूझी कुसलाता। तो कहुँ देउँ काह सुनु भ्राता ॥
एहि संदेस सरिस जग माहीं। करि बिचार देखेउँ कछु नाहीं ॥
नाहिन तात उरिन मैं तोही। अब प्रभु चरित सुनावहु मोही ॥
तब हनुमंत नाइ पद माथा। कहे सकल रघुपति गुन गाथा ॥
कहु कपि कबहुँ कृपाल गोसाईं। सुमिरहिं मोहि दास की नाईं ॥
छं. निज दास ज्यों रघुबंसभूषन कबहुँ मम सुमिरन कर् यो।
सुनि भरत बचन बिनीत अति कपि पुलकित तन चरनन्हि पर् यो ॥
रघुबीर निज मुख जासु गुन गन कहत अग जग नाथ जो।
काहे न होइ बिनीत परम पुनीत सदगुन सिंधु सो ॥
दो. राम प्रान प्रिय नाथ तुम्ह सत्य बचन मम तात।
पुनि पुनि मिलत भरत सुनि हरष न हृदयँ समात ॥ २(क) ॥
सो. भरत चरन सिरु नाइ तुरित गयउ कपि राम पहिं।
कही कुसल सब जाइ हरषि चलेउ प्रभु जान चढ़ि ॥ २(ख) ॥
हरषि भरत कोसलपुर आए। समाचार सब गुरहि सुनाए ॥
पुनि मंदिर महँ बात जनाई। आवत नगर कुसल रघुराई ॥
सुनत सकल जननीं उठि धाईं। कहि प्रभु कुसल भरत समुझाई ॥
समाचार पुरबासिंह पाए। नर अरु नारि हरषि सब धाए ॥
दधि दुर्बा रोचन फल फूला। नव तुलसी दल मंगल मूला ॥
भरि भरि हेम थार भामिनी। गावत चलिं सिंधु सिंधुरगामिनी ॥
जे जैसेहिं तैसेहिं उटि धावहिं। बाल बृद्ध कहँ संग न लावहिं ॥
एक एकन्ह कहँ बूझहिं भाई। तुम्ह देखे दयाल रघुराई ॥
अवधपुरी प्रभु आवत जानी। भई सकल सोभा कै खानी ॥
बहइ सुहावन त्रिबिध समीरा। भइ सरजू अति निर्मल नीरा ॥
दो. हरषित गुर परिजन अनुज भूसुर बृंद समेत।
चले भरत मन प्रेम अति सन्मुख कृपानिकेत ॥ ३(क) ॥
बहुतक चढ़ी अटारिन्ह निरखहिं गगन बिमान।
देखि मधुर सुर हरषित करहिं सुमंगल गान ॥ ३(ख) ॥
राका ससि रघुपति पुर सिंधु देखि हरषान।
बढ़यो कोलाहल करत जनु नारि तरंग समान ॥ ३(ग) ॥
इहाँ भानुकुल कमल दिवाकर। कपिन्ह देखावत नगर मनोहर ॥
सुनु कपीस अंगद लंकेसा। पावन पुरी रुचिर यह देसा ॥
जद्यपि सब बैकुंठ बखाना। बेद पुरान बिदित जगु जाना ॥
अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ। यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ ॥
जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि। उत्तर दिसि बह सरजू पावनि ॥
जा मज्जन ते बिनहिं प्रयासा। मम समीप नर पावहिं बासा ॥
अति प्रिय मोहि इहाँ के बासी। मम धामदा पुरी सुख रासी ॥
हरषे सब कपि सुनि प्रभु बानी। धन्य अवध जो राम बखानी ॥
दो. आवत देखि लोग सब कृपासिंधु भगवान।
नगर निकट प्रभु प्रेरेउ उतरेउ भूमि बिमान ॥ ४(क) ॥
उतरि कहेउ प्रभु पुष्पकहि तुम्ह कुबेर पहिं जाहु।
प्रेरित राम चलेउ सो हरषु बिरहु अति ताहु ॥ ४(ख) ॥
आए भरत संग सब लोगा। कृस तन श्रीरघुबीर बियोगा ॥
बामदेव बसिष्ठ मुनिनायक। देखे प्रभु महि धरि धनु सायक ॥
धाइ धरे गुर चरन सरोरुह। अनुज सहित अति पुलक तनोरुह ॥
भेंटि कुसल बूझी मुनिराया। हमरें कुसल तुम्हारिहिं दाया ॥
सकल द्विजन्ह मिलि नायउ माथा। धर्म धुरंधर रघुकुलनाथा ॥
गहे भरत पुनि प्रभु पद पंकज। नमत जिन्हहि सुर मुनि संकर अज ॥
परे भूमि नहिं उठत उठाए। बर करि कृपासिंधु उर लाए ॥
स्यामल गात रोम भए ठाढ़े। नव राजीव नयन जल बाढ़े ॥
शेष यहाँ:
sanskritdocuments.org/doc_z_otherlang_hindi/manas7_i.html
th-cam.com/play/PLHk5JmPkB5Sfhm-dWTKUfZ0vCK7o8Dxla.html
मङ्गलाचरण
श्लोक
केकीकण्ठाभनीलं सुरवरविलसद्विप्रपादाब्जचिह्नं
शोभाढ्यं पीतवस्त्रं सरसिजनयनं सर्वदा सुप्रसन्नम्।
पाणौ नाराचचापं कपिनिकरयुतं बन्धुना सेव्यमानं
नौमीड्यं जानकीशं रघुवरमनिशं पुष्पकारूढरामम् ॥ १ ॥
कोसलेन्द्रपदकञ्जमञ्जुलौ कोमलावजमहेशवन्दितौ।
जानकीकरसरोजलालितौ चिन्तकस्य मनभृङ्गसड्गिनौ ॥ २ ॥
कुन्दइन्दुदरगौरसुन्दरं अम्बिकापतिमभीष्टसिद्धिदम्।
कारुणीककलकञ्जलोचनं नौमि शंकरमनंगमोचनम् ॥ ३ ॥
दो. रहा एक दिन अवधि कर अति आरत पुर लोग।
जहँ तहँ सोचहिं नारि नर कृस तन राम बियोग ॥
सगुन होहिं सुंदर सकल मन प्रसन्न सब केर।
प्रभु आगवन जनाव जनु नगर रम्य चहुँ फेर ॥
कौसल्यादि मातु सब मन अनंद अस होइ।
आयउ प्रभु श्री अनुज जुत कहन चहत अब कोइ ॥
भरत नयन भुज दच्छिन फरकत बारहिं बार।
जानि सगुन मन हरष अति लागे करन बिचार ॥
रहेउ एक दिन अवधि अधारा। समुझत मन दुख भयउ अपारा ॥
कारन कवन नाथ नहिं आयउ। जानि कुटिल किधौं मोहि बिसरायउ ॥
अहह धन्य लछिमन बड़भागी। राम पदारबिंदु अनुरागी ॥
कपटी कुटिल मोहि प्रभु चीन्हा। ताते नाथ संग नहिं लीन्हा ॥
जौं करनी समुझै प्रभु मोरी। नहिं निस्तार कलप सत कोरी ॥
जन अवगुन प्रभु मान न काऊ। दीन बंधु अति मृदुल सुभाऊ ॥
मोरि जियँ भरोस दृढ़ सोई। मिलिहहिं राम सगुन सुभ होई ॥
बीतें अवधि रहहि जौं प्राना। अधम कवन जग मोहि समाना ॥
दो. राम बिरह सागर महँ भरत मगन मन होत।
बिप्र रूप धरि पवन सुत आइ गयउ जनु पोत ॥ १(क) ॥
बैठि देखि कुसासन जटा मुकुट कृस गात।
राम राम रघुपति जपत स्त्रवत नयन जलजात ॥ १(ख) ॥
देखत हनूमान अति हरषेउ। पुलक गात लोचन जल बरषेउ ॥
मन महँ बहुत भाँति सुख मानी। बोलेउ श्रवन सुधा सम बानी ॥
जासु बिरहँ सोचहु दिन राती। रटहु निरंतर गुन गन पाँती ॥
रघुकुल तिलक सुजन सुखदाता। आयउ कुसल देव मुनि त्राता ॥
रिपु रन जीति सुजस सुर गावत। सीता सहित अनुज प्रभु आवत ॥
सुनत बचन बिसरे सब दूखा। तृषावंत जिमि पाइ पियूषा ॥
को तुम्ह तात कहाँ ते आए। मोहि परम प्रिय बचन सुनाए ॥
मारुत सुत मैं कपि हनुमाना। नामु मोर सुनु कृपानिधाना ॥
दीनबंधु रघुपति कर किंकर। सुनत भरत भेंटेउ उठि सादर ॥
मिलत प्रेम नहिं हृदयँ समाता। नयन स्त्रवत जल पुलकित गाता ॥
कपि तव दरस सकल दुख बीते। मिले आजु मोहि राम पिरीते ॥
बार बार बूझी कुसलाता। तो कहुँ देउँ काह सुनु भ्राता ॥
एहि संदेस सरिस जग माहीं। करि बिचार देखेउँ कछु नाहीं ॥
नाहिन तात उरिन मैं तोही। अब प्रभु चरित सुनावहु मोही ॥
तब हनुमंत नाइ पद माथा। कहे सकल रघुपति गुन गाथा ॥
कहु कपि कबहुँ कृपाल गोसाईं। सुमिरहिं मोहि दास की नाईं ॥
छं. निज दास ज्यों रघुबंसभूषन कबहुँ मम सुमिरन कर् यो।
सुनि भरत बचन बिनीत अति कपि पुलकित तन चरनन्हि पर् यो ॥
रघुबीर निज मुख जासु गुन गन कहत अग जग नाथ जो।
काहे न होइ बिनीत परम पुनीत सदगुन सिंधु सो ॥
दो. राम प्रान प्रिय नाथ तुम्ह सत्य बचन मम तात।
पुनि पुनि मिलत भरत सुनि हरष न हृदयँ समात ॥ २(क) ॥
सो. भरत चरन सिरु नाइ तुरित गयउ कपि राम पहिं।
कही कुसल सब जाइ हरषि चलेउ प्रभु जान चढ़ि ॥ २(ख) ॥
हरषि भरत कोसलपुर आए। समाचार सब गुरहि सुनाए ॥
पुनि मंदिर महँ बात जनाई। आवत नगर कुसल रघुराई ॥
सुनत सकल जननीं उठि धाईं। कहि प्रभु कुसल भरत समुझाई ॥
समाचार पुरबासिंह पाए। नर अरु नारि हरषि सब धाए ॥
दधि दुर्बा रोचन फल फूला। नव तुलसी दल मंगल मूला ॥
भरि भरि हेम थार भामिनी। गावत चलिं सिंधु सिंधुरगामिनी ॥
जे जैसेहिं तैसेहिं उटि धावहिं। बाल बृद्ध कहँ संग न लावहिं ॥
एक एकन्ह कहँ बूझहिं भाई। तुम्ह देखे दयाल रघुराई ॥
अवधपुरी प्रभु आवत जानी। भई सकल सोभा कै खानी ॥
बहइ सुहावन त्रिबिध समीरा। भइ सरजू अति निर्मल नीरा ॥
दो. हरषित गुर परिजन अनुज भूसुर बृंद समेत।
चले भरत मन प्रेम अति सन्मुख कृपानिकेत ॥ ३(क) ॥
बहुतक चढ़ी अटारिन्ह निरखहिं गगन बिमान।
देखि मधुर सुर हरषित करहिं सुमंगल गान ॥ ३(ख) ॥
राका ससि रघुपति पुर सिंधु देखि हरषान।
बढ़यो कोलाहल करत जनु नारि तरंग समान ॥ ३(ग) ॥
इहाँ भानुकुल कमल दिवाकर। कपिन्ह देखावत नगर मनोहर ॥
सुनु कपीस अंगद लंकेसा। पावन पुरी रुचिर यह देसा ॥
जद्यपि सब बैकुंठ बखाना। बेद पुरान बिदित जगु जाना ॥
अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ। यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ ॥
जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि। उत्तर दिसि बह सरजू पावनि ॥
जा मज्जन ते बिनहिं प्रयासा। मम समीप नर पावहिं बासा ॥
अति प्रिय मोहि इहाँ के बासी। मम धामदा पुरी सुख रासी ॥
हरषे सब कपि सुनि प्रभु बानी। धन्य अवध जो राम बखानी ॥
दो. आवत देखि लोग सब कृपासिंधु भगवान।
नगर निकट प्रभु प्रेरेउ उतरेउ भूमि बिमान ॥ ४(क) ॥
उतरि कहेउ प्रभु पुष्पकहि तुम्ह कुबेर पहिं जाहु।
प्रेरित राम चलेउ सो हरषु बिरहु अति ताहु ॥ ४(ख) ॥
आए भरत संग सब लोगा। कृस तन श्रीरघुबीर बियोगा ॥
बामदेव बसिष्ठ मुनिनायक। देखे प्रभु महि धरि धनु सायक ॥
धाइ धरे गुर चरन सरोरुह। अनुज सहित अति पुलक तनोरुह ॥
भेंटि कुसल बूझी मुनिराया। हमरें कुसल तुम्हारिहिं दाया ॥
सकल द्विजन्ह मिलि नायउ माथा। धर्म धुरंधर रघुकुलनाथा ॥
गहे भरत पुनि प्रभु पद पंकज। नमत जिन्हहि सुर मुनि संकर अज ॥
परे भूमि नहिं उठत उठाए। बर करि कृपासिंधु उर लाए ॥
स्यामल गात रोम भए ठाढ़े। नव राजीव नयन जल बाढ़े ॥
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रामचरितमानस मूलपाठ: अरण्यकाण्ड(मङ्गलाचरण, दोहा:१-६)
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रामचरितमानस मूलपाठ: अरण्यकाण्ड(मङ्गलाचरण, दोहा:१-६)
रामचरितमानसरुपी आकाश में पुनर्वसु नक्षत्ररुपी भरद्वाज मुनि कृत श्रीराम-स्तुति
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रामचरितमानसरुपी आकाश में पुनर्वसु नक्षत्ररुपी भरद्वाज मुनि कृत श्रीराम-स्तुति
रामचरितमानसरुपी आकाश में आर्द्रा नक्षत्ररुपी जनकजी कृत श्रीराम-स्तुति
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रामचरितमानसरुपी आकाश में आर्द्रा नक्षत्ररुपी जनकजी कृत श्रीराम-स्तुति
रामचरितमानसरुपी आकाश में मृगशिरा नक्षत्ररुपी सुनयनाजी कृत श्रीराम-स्तुति
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रामचरितमानसरुपी आकाश में मृगशिरा नक्षत्ररुपी सुनयनाजी कृत श्रीराम-स्तुति
रामचरितमानसरुपी आकाश में रोहिणी नक्षत्ररुपी परशुरामजी कृत श्रीराम-स्तुति
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रामचरितमानसरुपी आकाश में रोहिणी नक्षत्ररुपी परशुरामजी कृत श्रीराम-स्तुति
रामचरितमानसरुपी आकाश में कृतिका नक्षत्ररुपी अहल्याकृत श्रीराम-स्तुति
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रामचरितमानसरुपी आकाश में कृतिका नक्षत्ररुपी अहल्याकृत श्रीराम-स्तुति
रामचरितमानसरुपी आकाश में भरणी नक्षत्ररुपी माता कौशल्याकृत श्रीराम-स्तुति
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रामचरितमानसरुपी आकाश में भरणी नक्षत्ररुपी माता कौशल्याकृत श्रीराम-स्तुति
रामचरितमानसरुपी आकाश में अश्विनी नक्षत्ररुपी पृथ्वी भारहरण हेतु ब्रह्माजीकृत श्रीराम-स्तुति
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रामचरितमानसरुपी आकाश में अश्विनी नक्षत्ररुपी पृथ्वी भारहरण हेतु ब्रह्माजीकृत श्रीराम-स्तुति
रामचरितमानस मूलपाठ: सुन्दरकाण्ड(दोहा:४९-६०)
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रामचरितमानस मूलपाठ: सुन्दरकाण्ड(दोहा:४९-६०)
"सीताराम सीताराम.......सीताराम" #नामकीर्तन
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"सीताराम सीताराम.......सीताराम" #नामकीर्तन
नाम कीर्तन: "सीताराम सीताराम.......सीताराम"
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नाम कीर्तन: "सीताराम सीताराम.......सीताराम"