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Ankur Shastri, Bhopal
เข้าร่วมเมื่อ 20 มี.ค. 2013
जिणवयणमोसहमिणं विसयसुहविरेयणं अमिदभूयं।
जरमरणवाहिहरणं खयकरणं सव्वदुक्खाण।।
=यह जिनवचन रूप औषधि इंद्रिय विषय से उत्पन्न कल्पनामात्र सुख को दूर करने वाला है, तथा जन्म-मरण रूप रोग को दूर करने के लिए अमृत सदृश है और सर्व दु:खों के क्षय का कारण है।
जिनदेशना की आराधना-प्रभावना का लघुतम प्रयास है ये यूट्यूब चैनल। आगम बल और आत्म बल ही जगत में श्रेयस्कर है। आगम विरुद्ध कथन का बहुत भय है, अतः किसी प्रतिपादन में कोई त्रुटि हो तो विज्ञजन अवगत करावें। तथा मेरी ये दृढ़ मान्यता है कि इस ऑनलाइन के युग में भी प्रत्यक्ष जिनवाणी की सन्निधि में एवं योग्य द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव के समागम में अर्जित आगमज्ञान ही तत्त्वविचार का हेतु बनता है, अतः ऑनलाइन स्वाध्याय को अपवाद मार्ग एवं धर्मायतनों में पहुंच सीधे जिनवाणी के वक्ता से सुनने और पढ़ने को ही स्वाध्याय का राजमार्ग जानकर अभ्यास करें।
जय जिनेन्द्र।
जरमरणवाहिहरणं खयकरणं सव्वदुक्खाण।।
=यह जिनवचन रूप औषधि इंद्रिय विषय से उत्पन्न कल्पनामात्र सुख को दूर करने वाला है, तथा जन्म-मरण रूप रोग को दूर करने के लिए अमृत सदृश है और सर्व दु:खों के क्षय का कारण है।
जिनदेशना की आराधना-प्रभावना का लघुतम प्रयास है ये यूट्यूब चैनल। आगम बल और आत्म बल ही जगत में श्रेयस्कर है। आगम विरुद्ध कथन का बहुत भय है, अतः किसी प्रतिपादन में कोई त्रुटि हो तो विज्ञजन अवगत करावें। तथा मेरी ये दृढ़ मान्यता है कि इस ऑनलाइन के युग में भी प्रत्यक्ष जिनवाणी की सन्निधि में एवं योग्य द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव के समागम में अर्जित आगमज्ञान ही तत्त्वविचार का हेतु बनता है, अतः ऑनलाइन स्वाध्याय को अपवाद मार्ग एवं धर्मायतनों में पहुंच सीधे जिनवाणी के वक्ता से सुनने और पढ़ने को ही स्वाध्याय का राजमार्ग जानकर अभ्यास करें।
जय जिनेन्द्र।
69. समाधितंत्र-श्लोक 42 | अज्ञानी का तप भी भोगों के लिए, ज्ञानी का तप भोग निवृत्ति के लिए |26.10.24|
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68. समाधितंत्र-श्लोक 41 व प्रवचनसार-116| अज्ञानी की क्रिया लोक में सफल,मोक्षमार्ग में विफल|25.10.24|
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67. समाधितंत्र | श्लोक 41, टीका/भावार्थ | आत्म भ्रांति सहित दुर्धर तप भी कार्यकारी नहीं | 24.10.24 |
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66. समाधितंत्र || श्लोक 41 || आत्म भ्रांति (Wrong Self Image) ही दुःख का कारण || 23.10.24 ||
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64. समाधितंत्र || श्लोक 40 || चेतन काय के प्रति प्रेम और जड़ काया से प्रेम का त्याग || 21.10.24 ||
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58. समाधितंत्र:आचार्य पूज्यपाद | श्लोक 37 | संस्कारों का महत्व| कैसे खत्म हो विक्षिप्तता?| 14.10.24|
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सम्यक्त्व सन्मुख जीव की आत्मा के लिए दीवानगी | तत्त्वनिर्णय की धुन | डॉ मनीष जी, मेरठ| सम्मेद शिखर|
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57. समाधितंत्र | श्लोक 37 | विक्षिप्त का कारण अविद्या के अभ्यास से उपजे संस्कार | 09.10.24 |
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56. समाधितंत्र | श्लोक 36 | विक्षिप्त मन तत्त्व से दूर है, अविक्षिप्त ही तत्वदर्शी है| 08.10.24 |
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55. समाधितंत्र | श्लोक 35 | राग-द्वेष की चंचलता में आत्म-अनुभव असंभव | 07.10.24 |
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54. समाधितंत्र | श्लोक 34/विशेषार्थ | भेदज्ञान के अभाव में आचरण ही भ्रष्टाचार | 06.10.24 |
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53. समाधितंत्र : आचार्य पूज्यपाद | श्लोक 34/टीका | भेदज्ञान होने पर तप दुष्कर नहीं | 05.10.24 |
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52. समाधितंत्र : आचार्य पूज्यपाद | श्लोक 34 | देह और आत्मा का अंतर जानने पे प्रगट आह्लाद| 04.10.24 |
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03. समयसार । कर्मोदय के बीच ज्ञानी की दृष्टि । श्री सिद्ध परमेष्ठी विधान, शिवपुरी। 30.09.24, रात्रि।
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02. समयसार कलश 137 । श्री सिद्धपरमेष्ठी विधान, शिवपुरी । 30.09.24 ।
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50. समाधितंत्र : आचार्य पूज्यपाद | श्लोक 31 एवं 32| जैसे परमात्मा हैं वैसा ही मैं हूं | 02.10.24 |
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49. समाधितंत्र : आचार्य पूज्यपाद | श्लोक 31 | जैसे परमात्मा हैं वैसा ही मैं हूं | 01.10.24 |
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48. समाधितंत्र : आचार्य पूज्यपाद | श्लोक 30 | आत्म भावना का उपाय | स्व में बस, पर से खास | 28.9.24 |
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47. समाधितंत्र | श्लोक 29| टीका एवं भावार्थ| जगत के पद भय के स्थान, आत्मा ही अभय का स्थान| 27.9.24 |
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46. समाधितंत्र | श्लोक 29 | आत्मभावना में कष्ट की परंपरा दिखती है तो प्रवृत्ति कैसे हो?| 26.9.24 |
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45. समाधितंत्र - आचार्य पुज्यपाद | श्लोक 28 | टीका एवं भावार्थ | परमात्म भावना का फल | 25.09.24 |
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10. धर्म के दशलक्षण | उत्तम ब्रह्मचर्य | शील-बाड़ नौ राख, ब्रह्म-भाव अंतर लखो | झवेरी बाजार, मुंबई|
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6. पद्मनंदी-पंचविंशति | अनित्य पञ्चाशत| श्लोक-20| धर्म प्राप्ति के अवसर उत्तरोत्तर दुर्लभ| 15.09.24|
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35. समाधितंत्र | श्लोक 23 टीका व भावार्थ | आत्मा में लिंग, वचन, संख्या के भेद नहीं | 31.08.24 ।
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06. सम्यक्त्व सन्मुख मिथ्यादृष्टि-मोक्षमार्ग प्रकाशक | गुरुवाणी मंथन शिविर, सोनगढ़|14.08.24, दोपहर |
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06. सम्यक्त्व सन्मु मिथ्यादृष्टि-मोक्षमार्ग प्रकाशक | गुरुवाणी मंथन शिविर, सोनगढ़|14.08.24, दोपहर |
05. सम्यक्त्व सन्मुख मिथ्यादृष्टि-मोक्षमार्ग प्रकाशक | गुरुवाणी मंथन शिविर, सोनगढ़|14.08.24, प्रातः|
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Osho ❤❤
Naman osho
💯
🙏👍जय जिनेन्द्र देव जी की 👍🙏agra
१समय तक कर्म पुद्गगलों का ग्रहण नहीं करता इसलिये अनाहारक होता है-
बहुत अच्छा विवेचन
Very nicely described
🙏🙏🙏💯☑️🚩🚩🚩🚩👏👏👏👏👏👏😇
जय जिनेंद्र देव की भिलाई छत्तीसगढ़
जय जिनैंद्र, बहुत मार्मिक प्रवचन 🙏🙏
बहुत ही मार्मिक वर्णन 👌🙏🙏🙏
समझ उर धर कहत गुरुवर, आत्म चिंतन की घङी है।
Jai jinendra ji.
🙏👍जय जिनेन्द्र देव जी की 👍🙏
अन्तरमुखता की ओर ले जाता प्रवचन
बहुत सुंदर 👌
ये व्याख्यान अधूरा ही रिकॉर्ड हुआ है। अगले व्याख्यान में इस श्लोक की विषय वस्तु का रिवीजन होगा।
भेदविज्ञानत:बद्धा बद्धा ये किल केचन- अस्याभावतो बद्धा बद्धा ये किल केचन,
अणुमात्र भी रागादि का सद्भाव हो इस आत्म मे- वो सर्व आगमधर भले हो जानता नहीं निज आत्म को!
Jai jinendra Bhopal 🙏🙏🙏
Shandar
👌
💯
🙏👍जय जिनेन्द्र देव जी की 👍🙏agra
🙏👍जय जिनेन्द्र देव जी की 👍🙏
Yah bhee agenda chlata h
Tum nhi smjhoge
🙏🙏🙏💯☑️🥰😇👏👏👏👏👏
रिकॉर्डिंग की प्रॉब्लम के कारण voice नहीं आ पाई। इस विषय की चर्चा 50 no के व्याख्यान में आई है
Osho was never really interested in Jainism or any other religions in particular. And Nudity is nothing to do with this
ऑडियो प्रॉब्लम के कारण अंतिम 10-12 मिनट में साउंड नहीं है। भावार्थ और टीका मूल ग्रंथ से देखना चाहिए।
🙏🙏🙏👏👏👏👏👏😇
🙏🙏
🙏👍जय जिनेन्द्र देव जी की 👍🙏agra
🙏👍जय जिनेन्द्र देव जी की 👍🙏
🙏👍जय जिनेन्द्र देव जी की 👍🙏agra
🙏👍जय जिनेन्द्र देव जी की 👍🙏agra
🙏🙏🙏💯☑️👏👏👏👏👏😇🥰🚩🚩🚩🚩
🙏👍जय जिनेन्द्र देव जी की 👍🙏agra
🙏🙏🙏
Jay jenadra
Bahut Sundar 💯☑️🙏 Uttam
🙏👍जय जिनेन्द्र देव जी की 👍🙏agra
Please make more shorts like this we need so many shorts like this. Keep going 🙏🙏🙏🙏
🙏🙏🙏
Best Ankur
बहुत बढ़िया
ये वक्तव्य 12 मिनट देरी से live हुआ था, पूरा व्याख्यान निम्न लिंक पे है👇 th-cam.com/users/livetSPg8Svhmi4?si=Nx6OTMpkJo6CgMod
महासत्ता-अवांतरसत्ता
सत्ता,अवांतरसत्ता
जयजिनेंद्र जी
नोट्स लेना चाहिये--लिखने से बहुत अच्छी तरह समझ मे आता है