Ekalavya Yogalaya
Ekalavya Yogalaya
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Shanti mantras for 4 vedas
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มุมมอง: 13

วีดีโอ

Self Learning Gita : Ch 12 Shlokas 9-10
มุมมอง 1015 ชั่วโมงที่ผ่านมา
अथ चित्तं समाधातुं न शक्नोषि मयि स्थिरम् । अभ्यासयोगेन ततो मामिच्छाप्तुं धनञ्जय ॥9॥ अर्ध: हे अर्जुन! यदि तुम दृढ़ता से मुझ पर अपना मन स्थिर करने में असमर्थ हो तो सांसारिक कार्यकलापों से मन को विरक्त कर भक्ति भाव से निरंतर मेरा स्मरण करने का अभ्यास करो। अभ्यासेऽप्यसमर्थोऽसि मत्कर्मपरमो भव ।। मदर्थमपि कर्माणि कुर्वन्सिद्धिमवाप्स्यसि ॥10॥ अर्ध: यदि तुम भक्ति मार्ग के पालन के साथ मेरा स्मरण करने का...
Self Learning Gita : Ch 12 Shlokas 7-8
มุมมอง 152 ชั่วโมงที่ผ่านมา
तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युसंसारसागरात्। भवामि नचिरात्पार्थ मय्यावेशितचेतसाम् ॥7॥ अर्ध: हे पार्थ! मैं उन्हें शीघ्र जन्म-मृत्यु के सागर से पार कर उनका उद्धार करता हूँ। मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय । निवसिष्यसि मय्येव अत ऊर्ध्वं न संशयः ॥8॥ अर्ध: अपने मन को केवल मुझ पर स्थिर करो और अपनी बुद्धि मुझे समर्पित कर दो। इस प्रकार से तुम सदैव मुझ में स्थित रहोगे। इसमें कोई संदेह नहीं हैं। తేషామహం స...
Important Bhagavad Gita Shloka from each chapter
มุมมอง 1802 ชั่วโมงที่ผ่านมา
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Self Learning Gita : Ch 12 Shlokas 5-6
มุมมอง 144 ชั่วโมงที่ผ่านมา
क्लेशोऽधिकतरस्तेषामव्यक्तासक्तचेतसाम् । अव्यक्ता हि गतिर्दुःखं देहवद्भिरवाप्यते ॥5॥ अर्ध: जिन लोगों का मन भगवान के अव्यक्त रूप पर आसक्त होता है उनके लिए भगवान की अनुभूति का मार्ग अतिदुष्कर और कष्टों से भरा होता है। अव्यक्त रूप की उपासना देहधारी जीवों के लिए अत्यंत दुष्कर होती है। ये तु सर्वाणि कर्माणि मयि संत्र्यस्य मत्परः। अनन्येनैव योगेन मां ध्यायन्त उपासते ॥6॥ अर्ध: लेकिन जो अपने सभी कर्मों ...
Self Learning Gita : Ch 12 Shlokas 3-4
มุมมอง 227 ชั่วโมงที่ผ่านมา
ये त्वक्षरमनिर्देश्यमव्यक्तं पर्युपासते । सर्वत्रगमचिन्त्यञ्च कूटस्थमचलन्ध्रुवम् ॥3॥ सन्नियम्येन्द्रियग्रामं सर्वत्र समबुद्धयः । ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः ॥4॥ अर्ध: लेकिन जो लोग अपनी इन्द्रियों को निग्रह करके सर्वत्र समभाव से मेरे परम सत्य, निराकार, अविनाशी, निर्वचनीय, अव्यक्त, सर्वव्यापक, अकल्पनीय, अपरिवर्तनीय, शाश्वत और अचल रूप की पूजा करते हैं, वे सभी जीवों के कल्याण में संलग्न...
Self Learning Gita : Ch 12 Shlokas 1-2
มุมมอง 1439 ชั่วโมงที่ผ่านมา
अर्जुन उवाच | एवं सततयुक्ता ये भक्तास्त्वां पर्युपासते | ये चाप्यक्षरमव्यक्तं तेषां के योगवित्तमा: || 1|| अर्ध: अर्जुन ने पूछा। आपके साकार रूप पर दृढ़तापूर्वक निरन्तर समर्पित होने वालों को या आपके अव्यक्त निराकार रूप की आराधना करने वालों में से आप किसे योग में पूर्ण मानते हैं? श्रीभगवानुवाच। मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते । श्रद्धया परयोपेतास्ते मे युक्ततमा मताः ॥2॥ अर्ध: आनंदमयी भगवा...
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 39-40
มุมมอง 29หลายเดือนก่อน
कथं न ज्ञेयमस्माभिः पापादस्मानिवर्ति तुम्। कु लक्षयकृ तं दोषं प्रपश्यद्भिर्जनार्दन ॥39॥ तथापि हे जनार्दन! जब हमें स्पष्टतः अपने बंधु बान्धवों का वध करने में अपराध दिखाई देता है तब हम ऐसे पापमय कर्म से क्यों न दूर रहें? कु लक्षये प्रणश्यन्ति कु लधर्माः सनातनाः। धर्मे नष्टे कु लं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत ॥40॥ अर्ध: जब कु ल का नाश हो जाता है तब इसकी कु ल परम्पराएं भी नष्ट हो जाती हैं और कु ल के शेष...
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 21-22
มุมมอง 65หลายเดือนก่อน
अर्जुन उवाच | सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत ॥21॥ यावदेतानिरीक्षेऽहं योद्धकामानवस्थितान्। कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे ॥22॥ अर्ध: अर्जुन ने कहा! हे अच्युत! मेरा रथ दोनों सेनाओ ं के बीच खड़ा करने की कृ पा करें ताकि मैं यहाँ एकत्रित युद्ध करने की इच्छा रखने वाले योद्धाओ ं जिनके साथ मुझे इस महासंग्राम में युद्ध करना है, को दे सकूं । అర్జున ఉవాచ । సేనయోరుభయోర్మధ్యే రథం స్థా పయ మేఽచ్...
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 31-32
มุมมอง 12หลายเดือนก่อน
निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि के शव। न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे ॥31॥ अर्ध: युद्ध में अपने वंश के बंधु बान्धवों का वध करने में मुझे कोई अच्छाई नही दिखाई देती है और उन्हें मारकर मैं कै से सु पा सकता हूँ ? न काळे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च। किं नो राज्येन गोविन्द किं भोगैर्जीवितेनवा ॥32॥ अर्ध: हे कृष्ण! मुझे विजय, राज्य और इससे प्राप्त होने वाला सु नहीं चाहिए। నిమిత్తాని చ పశ్యామి...
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 15-16
มุมมอง 17หลายเดือนก่อน
पाञ्चजन्यं हृषीके शो देवदत्तं धनञ्जयः। पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ ् भीमकर्मा वृकोदरः॥15॥ अर्ध: ऋषीके श भगवान् कृष्ण ने अपना पाञ्जन्य शं बजाया, अर्जुन ने देवदत्त शं तथा अतिभोजी एवं अति दुष्कर कार्य करने वाले भीम ने पौण्डू नामक भीषण शं बजाया। अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः। नकु लः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ ॥16॥ अर्ध: हे पृथ्वीपति राजन्! राजा युधिष्ठिर ने अपना अनन्त विजय नाम का शं बजाया तथा नकु...
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 45-47
มุมมอง 54หลายเดือนก่อน
अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम्। यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः॥45॥ अर्ध: ओह! कितने आश्चर्य की बात है कि हम मानसिक रूप से इस महा पापजन्य कर्म करने के लिए उद्यत हैं। राजसु भोगने की इच्छा के प्रयोजन से हम अपने वंशजों का वध करना चाहते हैं। यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः। धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत् ॥46॥ अर्ध: ओह! कितने आश्चर्य की बात है कि हम मानसिक रूप से इस महा...
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 33-34
มุมมอง 9หลายเดือนก่อน
येषामर्थे काक्षितं नो राज्यं भोगाः सुखानि च त इमेऽवस्थिता युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च।॥33॥ ऐसा राज्य सु या अपने जीवन से क्या लाभ प्राप्त हो सकता है क्योंकि जिन लोगों के लिए हम यह सब चाहते हैं, वे सब इस युद्धभूमि में हमारे समक्ष खड़े हैं। आचार्याः पितरः पुत्रास्तथैव च पितामहाः। मातुलाः श्वशुराः पौत्राः श्यालाः सम्बन्धिनस्तथा ॥34। अर्ध: हे मधुसूदन! जब आचार्यगण, पितृगण, पुत्र, पितामह, मामा, ...
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 3-4
มุมมอง 25หลายเดือนก่อน
पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्। व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता ॥3॥ अर्ध: दुर्योधन ने कहाः पूज्य आचार्य! पाण्डु पुत्रों की विशाल सेना का अवलोकन करें, जिसे आपके द्वारा प्रशिक्षित बुद्धिमान शिष्य द्रुपद के पुत्र ने कु शलतापूर्वक युद्ध करने के लिए सुव्यवस्थित किया है। अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि । युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः॥4॥ अर्ध: यहाँ इस सेना में भीम और अर्ज...
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 35-36
มุมมอง 13หลายเดือนก่อน
एतान्न हन्तुमिच्छामि नतोऽपि मधुसूदन। अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतोः किं नु महीकृ ते ॥35॥ यद्यपि वे मुझपर आक्रमण भी करते हैं तथापि मैं इनका वध क्यों करूं ? यदि फिर भी हम धृतराष्ट्र के पुत्रों का वध करते हैं तब भले ही इससे हमें पृथ्वी के अलावा तीनों लोक भी प्राप्त क्यों न होते हों तब भी उन्हें मारने से हमें सु कै से प्राप्त होगा? निहत्य धार्तराष्ट्रान्नः का प्रीतिः स्याज्जनार्दन। पापमेवाश्रयेदस्मान्...
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 41-42
มุมมอง 2หลายเดือนก่อน
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 41-42
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 7-8
มุมมอง 29หลายเดือนก่อน
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 7-8
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 13-14
มุมมอง 15หลายเดือนก่อน
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 13-14
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 11-12
มุมมอง 39หลายเดือนก่อน
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 11-12
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 29-30
มุมมอง 11หลายเดือนก่อน
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 29-30
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 9-10
มุมมอง 24หลายเดือนก่อน
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 9-10
Yoga is about Wellness in and around You
มุมมอง 18หลายเดือนก่อน
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Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 27-28
มุมมอง 28หลายเดือนก่อน
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 27-28
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 5-6
มุมมอง 12หลายเดือนก่อน
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 5-6
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 25-26
มุมมอง 23หลายเดือนก่อน
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 25-26
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 19-20
มุมมอง 31หลายเดือนก่อน
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 19-20
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 1-2
มุมมอง 77หลายเดือนก่อน
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 1-2
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 17-18
มุมมอง 12หลายเดือนก่อน
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 17-18
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 43-44
มุมมอง 10หลายเดือนก่อน
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 43-44
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 37-38
มุมมอง 12หลายเดือนก่อน
Self Learning Gita : Ch 1 Shlokas 37-38