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Chinmaya Mission South Africa
South Africa
เข้าร่วมเมื่อ 24 มิ.ย. 2015
Chinmaya Mission of South Africa; A Centre for Learning, Serving and Loving!
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🌼 Can Naam Japa change my fate? 📿| Swami Abhedananda
What is Naam Japa? Is it powerful ? How many malas should one do? Can it change my bad fate? Get answers to these intriguing questions in this short video excerpt of Swami Abhedanandaji!
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วีดีโอ
🫐 शबरी की अद्भुत भक्ति 🌼| स्वामी अभेदानन्द
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🏹अयोध्या की महिमा | स्वामी अभेदानन्द🌸
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रामचरितमानस इतनी प्रसिद्ध क्यों है? | स्वामी अभेदानन्द | #ayodhya | #ramayana
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🪔 Are you in tune with your Inner God? 🪈| Swami Abhedananda
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Faith Under Siege: The Conversion Trap & Why YOU are Vulnerable! | Swami Abhedananda #sanatandharma
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भगवान #RAM का स्वभाव, स्वरूप, प्रभाव | सत्र 1 | स्वामी अभेदानन्द | वाल्मीकि #Ramayan | #JaiShriRam
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क्या आप देवी माँ के विभिन्न रूपों को जानते हैं? | स्वामी अभेदानन्द | #navratri
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‼️ Watch how #NourishtoFlourish has brought smiles of hope and tears of joy in South Africa! 🇿🇦
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Session 4 | Brihadaranyaka #Upanishad Chapter 2 | Swami Abhedananda | #Vedanta
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#AnswersThatEnlighten | Aug 2024 | DAY 5 | LIVE Q&A on ZOOM with Swami Abhedananda
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#AnswersThatEnlighten | Aug 2024 | DAY 4 | LIVE Q&A on ZOOM with Swami Abhedananda
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Highlights from QnA session Day 4 | #AnswersThatEnlighten | Aug 2024 | Swami Abhedananda
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Janmashtami Special Zoom Call | Talk by Swami Abhedananda | #janmashtami |
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#AnswersThatEnlighten | Aug 2024 | DAY 3 | LIVE Q&A on ZOOM with Swami Abhedananda
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🦚Are you prepared to invite Shri Krishna? | Swami Abhedananda | #janmashtami | #chinmayamission
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#AnswersThatEnlighten | Aug 2024 | DAY 2 | LIVE Q&A on ZOOM with Swami Abhedananda
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#AnswersThatEnlighten | Aug 2024 | DAY 1 | LIVE Q&A on ZOOM with Swami Abhedananda
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31st Mahasamadhi Day of #SwamiChinmayananda | #Gurudev #ChinmayaMission #SwamiAbhedananda
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What is the meaning of the word 'Upanishad'? | #vedanta with Swami Abhedananda | CMSA
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🪷 Has Lord Shiva consumed the poison of your life ? | Swami Abhedananda #shravan
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18 दिनों में सम्पूर्ण वाल्मीकि #Ramayan | सत्र 69 | स्वामी अभेदानन्द | #Chinmaya Vibhooti में शिविर
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Pranam swamiji thank you hariom
Koti koti pranams and dhanyawad Swamiji 🙏🏽🙏🏽🙏🏽🙏🏽🙇🏻♀️🙇🏻♀️🙇🏻♀️🙇🏻♀️
This clarifies so many of my questions about Japa...thank you Pujya Swamiji 🙏🥰
🌸🙏🙏🙏पुज्य स्वामीजी को सादर प्रणाम 🙏🙏🙏🌸
Hari Om Swamiji 🙏 Apke pavan charano main shat shat naman 🙏 Koti koti aabhar 🙏
Hari om Pujya Swamiji Charan Sparsha
Swamiji ..Blessings Blessings
Countless Pranams to you, Swamiji. His words are a beacon of light for us. Thank you 🙏
Pranam guruji
प्रणाम आचार्य जी।जय श्री राम 💐💐🙏
Hari om Swamiji sadar Charan sparsh
🌹जब तक व्यष्टि समष्टि से जुड़ी है, तब तक व्यष्टि पुष्ट और सशक्त रहती है। 🌹जब तक हमारा संकल्प ईश्वर के समष्टि संकल्प से जुड़ा है, तब तक हम शुद्ध हैं, हम पुष्ट रहेंगे, और उनका बल हमारे साथ रहेगा। 🌹किंतु जब हमारा क्रोध, काम, हमारी ममता और अहमता इत्यादि आ जाएं, हमारा कर्म ईश्वर के विरुद्ध हो जाए, तब हम उनके संकल्प से अलग हो जाते हैं। 🌹अल्पसाधन में भी यदि हममें कोई उच्च संकल्प आ जाता है, तब हमारे भीतर एक ऊर्जा और उत्साह आ जाता हैं जो ईश्वर के संकल्प से एक होने पर होता है। 🌹हमारी इच्छाशक्ति, क्रियाशक्ति और ज्ञानशक्ति ईश्वर के संकल्प से एक हो, यही भक्ति है। ऐसी भक्ति से ही हमारा कठिन प्रारब्ध भी सरल हो जाता है। हमारी इच्छा और ईश्वर के संकल्प के बीच दूरी को घटाना भक्ति है। 🌹अगर भक्ति नहीं होगी तो हर कर्म में बहुत संघर्ष रहेगा और आपको चिंता रहेगी की आगे क्या होगा | 🌹भारत के संत ही इस बात का प्रमाण हैं कि भगवान की इच्छा से एक होने पर व्यक्ति में अनंत सुख हो सकता है, जो सभी साधनों से परिपूर्ण साधारण व्यक्ति के पास भी नहीं है। 🌹जहाँ सुख की अनुभूति हो, जहाँ हमारी आवश्यकता को कोई पूर्ण करे, वहीं संबंध की अनुभूति होती है। हमारी अनेकों आवश्यकताएं हैं: भावनात्मक, आध्यात्मिक, बौद्धिक इत्यादि। जो उन आवश्यकताओं को पूर्ण करे उन्हीं से संबंध बनता है। यही गुरु और शिष्य का संबंध है। 🌹कुछ मिलने की अनुभूति हो, तभी हमारा विश्वास ईश्वर पर बनता है, यह निश्चय मन में बनता है कि हमारे लिए बड़े संयोग बनने वाला कोई है, हमारा रक्षण करने वाला कोई है। 🌹सबसे पहली भक्ति है उनके संग में रहना जो ईश्वर के बारे में बताते हैं, संत भक्ति करना। फिर दूसरी भक्ति है कथा में रमण करना और ईश्वर का मन में और स्पष्ट होना। 🌹उसके उपरांत एकाग्रता और अनन्यता बढ़ाने के लिए गुरुदेव की सेवा आवश्यक है, जिस गुरु निष्ठा से फिर इष्ट निष्ठा, फिर शास्त्र निष्ठा, और फिर आत्म निष्ठा बनती है। 🌹बिना गुरु निष्ठा के, इष्ट, मंत्र, शास्त्र, और स्वयं में निष्ठा, असम्भव है। 🌹गुरु का अनुग्रह हमारे पास आ जाए और हमारा दुःख की सूचना गुरु के पास जाती है, यही दो दिशाओं में चलने वाली सेवा की प्रक्रिया है।सेवा एक मार्ग बनाता है गुरु और शिष्य के हृदय के बीच | 🌹जब गुरु ने हमें ईश्वर की लीला सुनाई, तब उनकी प्राण प्रतिष्ठा हमारे मन में हुई। तब हम गुरु के पास साधना करने गए, और उन्होंने हमें मंत्रजप दिया। 🌹उस मंत्र या नाम का, दृढ़ विश्वास से जप करना, यही चौथी भक्ति है और छठी भक्ति है दम, शील, विरक्ति और धर्म का पालन करना। 🌹हमारे भीतर अनेकों वासनाएं हैं, प्रत्येक वासना का अपना विस्तार है, और वासना का असुरत्व यही है कि वह हमें चाबुक मार-मार कर हमसे कर्म करवाती है। 🌹जब तक हमारे मन में अनेक वासनाएं समान रूप से महत्वपूर्ण रहेंगी, तब तक हमारे मन में सदैव द्वंद्व बना रहेगा। 🌹परिवार की वासना, व्यवसाय की वासना, भोजन की वासना, पत्नी की वासना, बच्चे की वासना, मनोरंजन की वासना इत्यादि सभी हमेशा हमारे मन में चिल्लाती रहती हैं, और अपनी मांग पूर्ण करने की इच्छा करती रहती हैं। इस खींच तान में व्यक्ति का मन भीतर से चिर जाता है। 🌹हर वासना के साथ BAD के 3 दोष लगे हैं: बंधकत्व, अर्थात बंधन, अतृप्तिकरत्व, अर्थात किसी भी मात्रा में तृप्ति न मिलना, और दुःखमिश्रितत्व, अर्थात दुःख छिपा हुआ है। 🌹ईश्वर भक्ति की वासना एकमात्र है जो हमें शांति दे सकती है, और हो हमारे भीतर अन्य सभी दुर्वासनाओं को क्षीण कर देती है।
Praanams, swamiji thank you hariom
जगत मिथ्या का अर्थ स्पष्ट करने हेतु आपको कोटि कोटि नमन, स्वामी जी।
🌸🙏🙏🙏पुज्य स्वामीजी को सादर प्रणाम 🙏🙏🙏🌸
🙏
Pranam Swamiji sadar Charan sparsh
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
🙏
🌹जिसका मन अंदर से बहुत रस लेना शुरू कर चुका है उसे बहार बहुत कर्म में मत डालो | 🌹छठी भक्ति के 4 अंग हैं: दम, शील, विरक्ति, धर्म। यह चारों के द्वारा, साधक अपने मन को बचाकर रखता है, अपने भीतर के ईश्वर रस को बनाकर रखता है। 🌹दम का अर्थ है मन को बाहर भटकने न देना, और अनेक कर्मों में विरक्ति का अर्थ है बाहर के कर्मों को अंदर न आने देना। 🌹दम का अर्थ है अपनी इच्छा के ऊपर ईश्वर की इच्छा को रखना। जब धर्म पर विश्वास संवार हो, काम पर राम संवार हो, तब साधना में दम बना रहता है। 🌹भोग व्यक्ति को खाली कर देता है, और भोगी कभी प्रसन्न नहीं रह पाता, क्योंकि भोग के कारण व्यक्ति की शांति, उसका विश्वास, और उसका बल नष्ट हो जाता है।
हरिओम नमो नमः स्वामीजी
Hari om pujya swamiji.sadar pranam
Hari Om Param Pujya Swamiji🙏 Apke pavan charano main shat shat naman🙏 Koti koti aabhar 🙏
🌹🌺🙏 om 🌺 om 🌺 om 🙏🌺🌹
What is dharma?
Swamiji Hari Om
Hari om Swamiji sadar Charan sparsh
🌹जीवन में कर्म करते हुए पहली अवस्था यह आती है, कि व्यक्ति को लगता है कि कुछ सीमा तक उसके कर्म से वह परिस्थिति को परिवर्तित कर सकता है। ऐसे कर्मवादी व्यक्ति में अहंकार की संभावना होती है, क्योंकि उसे यह लगता है कि वह सत्कर्मी है। उससे श्रेष्ठ है दूसरे स्तर का व्यक्ति जो ईश्वरवादी है, जिसे यह ज्ञात हो जाता है कि उसके कर्म से स्थिति नहीं बदल सकती, ईश्वर ही उसे सुधार सकता है। 🌹ऐसे व्यक्ति के सत्कर्म समर्पित हो जाते हैं, और वह उन्हें करते हुए ईश्वर बल को ही श्रेय देता है। ऐसा समर्पित कर्म ही व्यक्ति को लाभ देता है, किंतु असमर्पित कर्म व्यक्ति को दूसरों से दूर कर देता है। 🌹परिस्थितिवादी के विपरीत, ईश्वरवादी व्यक्ति संघर्ष नहीं करता, परिस्थिति से विरोध नहीं करता, उसके व्यक्तित्व में कठोरता नहीं होती। ईश्वर उपासना उसे कोमल बनाती है, और उसका व्यवहार अच्छा हो जाता है। 🌹साधारण व्यक्ति को परिस्थिति से दुःख होता है। उससे उन्नत व्यक्ति को मन से दुःख होता है, जो साधक होता है। पर उससे भी श्रेष्ठ व्यक्ति ऐसा होता है जिसे मन से दुःख नहीं होता। 🌹उपनिषद् के विद्यार्थि में कभी भी मन की समस्या नहीं दिखती है | 🌹इसलिए उपनिषदों का मुख्य विषय मन का नियंत्रण है ही नहीं, वह बस एक प्रासंगिक विषयांतर हो सकता है। आत्मवादी में यह दृढ़ निश्चय होता है कि उसके दुःख का वास्तविक कारण उसका अज्ञान ही है। 🌹वेदांत में कुठाराघात है और इसलिए वहाँ एक ही प्रश्न है कि आत्मा क्या है... बाकी कोई बात महत्वपूर्ण नहीं है | 🌹निर्वाण षट्कम और दशश्लोकी में अंतर यह है, की पहला ध्यानात्मक है, और दूसरा मननात्मक है। पहले में अनात्मा का निषेध है, और दूसरे में तत् और त्वं पद का शोधन है। 🌹सभी उपाधियों को बाधित करने पर जो अहम हमें सुषुप्ति में प्राप्त होता है, वही त्वं पद है। और ईश्वर को जगत के सृष्टा के रूप में जानते हुए उसके स्वरूप को समझना यही तत् पद शोधन है। 🌹वेदान्त का यही कहना है कि जीव और ईश्वर एक नहीं है, अपितु जीव का स्वरूप और ईश्वर का स्वरूप एक है। 🌹अद्वैत तत्त्व यही है कि आत्मवादी अपने आत्मस्वरुप को जान लेता है, और ऐसे ज्ञानी के सभी संचित कर्म भस्म हो जाते हैं। 🌹व्यक्ति की पहचान इसी से है कि उसे किस अवस्था में विश्राम मिलता है। जो ज्ञानी है, उसके लिए वेदान्त श्रवण एक आवश्यकता नहीं रह जाती, उसके लिए वह न विधित है न ही निषिद्ध है। 🌹वेदान्त केवल आत्मा के स्वरूप का प्रकाशक है, मन का शोधक नहीं है। बिना मन की शुद्धि के, समर्पित सत्कर्म के, वेदान्त मार्ग पर प्रगति नहीं हो सकती। 🌹जो परिस्थिति आपके सामने आ रही है, जो क्रोध और काम आ रहा है, यह सब अज्ञान का ही परिवार है | 🌹9 दर्शनों में कुछ विशेष बातें हैं: 1) 9 के से केवल 3 दर्शनों ने ही यह माना कि आत्मा चेतन है। 2) वेदान्त के अतिरिक्त अन्य किसी दर्शन ने नहीं जाना कि जगत मिथ्या है। 🌹पर इन 9 दर्शनों में प्रश्न शास्त्रीय का, या उनके विचारों का नहीं है। प्रश्न शास्त्र क्या कहता है, इसका है। 🌹विज्ञान यह मानता है कि जड़ से सृष्टि की उत्पत्ति होती है। यदि इसे सत्य मानें तो इसका अर्थ यह है कि जड़ से चेतन उत्पन्न हुआ है। अब साधारणतया, कारण का स्वभाव ही कार्य में आता है।
Beautiful! 🙏🙏🙏
प्रणाम स्वामी जी
Hari om ❤❤
Pranam Swamiji sadar Charan sparsh
❤❤
Pranam swamiji thank you hariom sound low
Pranam Swamiji sadar Charan sparsh
Hari om Swamiji sadar Charan sparsh
🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹❤️
Koti koti pranam swamiji thank you
Pranam swamiji thank you hariom
हरि ॐ
Very true Swamiji …Hari Om …🙏🙏
Pranam swamiji thank you hariom