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JeeTu BhaTreja
India
เข้าร่วมเมื่อ 15 มิ.ย. 2014
Satguru Swami Teoonram Chalisa - Satnam Sakhi
Satnam Sakhi. Satguru Swami Teoonram Chalisa Full Audio
*सतगुरु स्वामी टेऊँराम चालीसा*
प्रथमे हरीहर ब्रह्न कॊ, बार बार प्रणाम
नर तन धर त्रिदेव जो , होया टेॐराम
तप्त धरा मरूदेश मे , मेघ देत सन्देश
त्यों जग के कल्याण हित , हरि धारें नर भेष
सिंध देश की महिमा भारी, बार बार ऋग्वेद ऊँचारी
सिंधु तीर पावन प्रसँगा, बहती जहाँ ज्ञान की गँगा
ऋषि मु्नी और ज्ञानी ध्यानी , पढ़ते जहाँ ब्रह्म की बानी
धन्य सिंध की धरती सारी , धन्य सिंध के नर और नारी
समय बड़ा प्रबल परबिना, वेद पुरारण वर्णन कीन्हा
काल चक्र दुश्तर अतिभारा ,आ अधर्म ने पाँव पसारा
धर्म कर्म भुले नर नारी, पाप कर्म मे वृती धारी
गीता मे श्री कृष्ण सुनाया, जब जब भार भूमि पर आया
तब तब ही अवतार धरु मैं , सत्य धर्म की विजय करूँ मैं
प्रण पालन हित ले अवतारा , आये खन्डु नगर मँझारा
चेला राम के आँगन माही, खुशी भयी सबके मन माही
कृष्णा माँ कॊ दरस दिखाया , चतुरभुजि निज रूप पसाया
शुक्ला तिथि षष्टम आषाढे, प्रकट भये सब काज सवारें
शनिवार का दिवस सुहाना ,शशि सम चमकत रूप जहाँना
लोली दे दे मात लुडावे , गद गद गीत कंठ सॆ गावै
बालक वय सॆ हरी गुण लागी, प्रीत लगी प्रभु सुमरन माही
विद्या हेतु जब उन्हे पढ़ाया, सतगुरू आसूराम तह पाया
गुरू बोले हो स्वयम सिद्ध तुम, परी पूरण ब्रह् शुध्द तुम
बैठ एकांत मे ध्यान लगाया, सहज समाधि के सुख कॊ पाया
खान पान जग विषयों माही , रँचक मन कह लागत नाहि
लग्न लगी गुरू शब्द मँझारि , टूटी मोह कोह की जारी
बालक गण कॊ साथ बिठाये , राम नाम की धूनी लगाये
इक दिन सिंधु नदी किनारे , बालक गये नहाने सारे
वस्त्र उतार तट पर रख दीन्हा, टेॐराम के सुपुर्द कीन्हा
बालक जल मे खेलन लागे , खिल्लू था ऊन सब मे आगे
खेलत खेलत खिल्लू डूबा, सब ने देखा बड़ा अजूबा
वस्त्र सहित गुरू जल के माही, कूदे लुप्त भये फ़िर ताहिं
बालक भय सॆ रोवन लागे, समाचार देवन कूछ भागे
शोकाकुल आये नर नारी, चमत्कार देखा ईक भारी
खिल्लु अपनी गोद उठाये , सतगुरू जी तब बाहर आये
अदभुत ऐसा देख नजारा , विस्मित भया नगर तब सारा
खिल्लु कहा सुनो हे भाई , डूब गया जब मैं जल माही
सुन्दर देव वहाँ दो आये , पकड़ा मुझे वरुण डींग लाये
इतने मे टेउराम जी पधारे, ताकॊ देख प्रसन्न भये सारे
अभीवादन वरुण तब कीन्हाँ, निज सम्मुख ही आसन दीन्हा
कहन लगे कूछ सेव बताये , बोले खिल्लु लेन हम आये
प्रसन्न हो तब दीन विदाई , सतगुरू ने मम जान बचायी
धन्य धन्य गुरू टेॐरामा , परम पवित्र तुम्हारा नामा
जय हो हे गुरूदेव तुम्हारी , सुख सागर तुम अति हितकारी
स्वर्ण आग संग मल जौ त्यागी , लेवत पाप त्यों भगहि
तप्त बुझावत है चंद ज्यों, शीतल हिरदय करत नाम त्यों
इच्छित वस्तु कल्पतरु देवे , नाम सूमरते सब फल सेवे
अब तो सत्संग की धूनी लागि , मन की माया ममता त्यागी
डंडा झाँझ लिया यकतारा , बाजा तबला साज पियारा
गली गली मे धूम मचाई , कृष्ण जैसी रास सचाई
प्रेम बढ़ा जब खन्डु माही , गुरू सोचा यहाँ रहना नाहि
नाम क्रिती जय जयकारा , ईन बातो सॆ संत न्यारा
यह विचार कर बिना बताये, जंगल मे कूछ दिवस बिताये
आसन वहाँ जमाया स्थिर , हिंसक जन्तु का था ना डर
खोज खोज प्रेमी वहाँ आये , लौट चले सबने समझाये
फ़िर आसन निश्छल मन ठाना, कहाअभी फ़िर लौट ना जाना
घास फूस तृण कुटी बनायी , कंद मूल खा जान सूखाई
गुरू मन्त्र का कर अभ्यासा, मेट देही जम की सब फासा
आत्म अंतर वृत्ति लागि , जगत वासना सकली भागी
पावन भूमि वह जग माही , हरीजन करत तपस्या जाही
इसभूमि की रजसिर लावत , गिरिजा कॊ कह शम्भू सुनावत
तीर्थ सम वह पूजन जोगी ,जहँ जहँ नाम जप्त हे जोगी
धन्य धन्य है सो अस्थाना , अमरापूर है उसका नामा
अमरा पूर स्थान अमर हे , दर्श करे फेर ना मर है
चारधाम सम पवित्र धामा, अमरापूर है उसका नामा
ताकी महिमा कही ना जाये, शेष शारदा पार ना पाये
बैठ जहाँ गुरू ज्ञान सुनाया , सतनाम साखी मन्त्र जपाया
प्रेम प्रकाशि पंथ बनाया , सोये जीवों कॊ था जगाया
जब तक गंग यमुन का पानी , तब तक अमर रहेगी कहानी
सूर्य चंद्र प्रकाश है ज्यों ल्यो, नाम प्रकट जग मे तब त्यों ल्यो
अमर देश सॆ आगमन , अमर देश प्रस्थान
अमरा पूर वाणी अमर , अमरा पूर स्थान
आप अमर चरित्र अमर , अमर आपका नाम
तव शरणागत भी अमर , धन गुरू टेउ राम
साधु संत सब पूज्य है , सबको है प्रणाम
श्वासों मे पर रम रहे ,मेरे सतगुरू टेॐराम
चालीसा गुरू देव की , पढ़े सुने जन जोय
श्रधा मन्न मे जो धरे , मुक्ति पाये सो.....2
*बोलो सतगुरु स्वामी टेऊँराम महाराज की जय*
*सतगुरु स्वामी टेऊँराम चालीसा*
प्रथमे हरीहर ब्रह्न कॊ, बार बार प्रणाम
नर तन धर त्रिदेव जो , होया टेॐराम
तप्त धरा मरूदेश मे , मेघ देत सन्देश
त्यों जग के कल्याण हित , हरि धारें नर भेष
सिंध देश की महिमा भारी, बार बार ऋग्वेद ऊँचारी
सिंधु तीर पावन प्रसँगा, बहती जहाँ ज्ञान की गँगा
ऋषि मु्नी और ज्ञानी ध्यानी , पढ़ते जहाँ ब्रह्म की बानी
धन्य सिंध की धरती सारी , धन्य सिंध के नर और नारी
समय बड़ा प्रबल परबिना, वेद पुरारण वर्णन कीन्हा
काल चक्र दुश्तर अतिभारा ,आ अधर्म ने पाँव पसारा
धर्म कर्म भुले नर नारी, पाप कर्म मे वृती धारी
गीता मे श्री कृष्ण सुनाया, जब जब भार भूमि पर आया
तब तब ही अवतार धरु मैं , सत्य धर्म की विजय करूँ मैं
प्रण पालन हित ले अवतारा , आये खन्डु नगर मँझारा
चेला राम के आँगन माही, खुशी भयी सबके मन माही
कृष्णा माँ कॊ दरस दिखाया , चतुरभुजि निज रूप पसाया
शुक्ला तिथि षष्टम आषाढे, प्रकट भये सब काज सवारें
शनिवार का दिवस सुहाना ,शशि सम चमकत रूप जहाँना
लोली दे दे मात लुडावे , गद गद गीत कंठ सॆ गावै
बालक वय सॆ हरी गुण लागी, प्रीत लगी प्रभु सुमरन माही
विद्या हेतु जब उन्हे पढ़ाया, सतगुरू आसूराम तह पाया
गुरू बोले हो स्वयम सिद्ध तुम, परी पूरण ब्रह् शुध्द तुम
बैठ एकांत मे ध्यान लगाया, सहज समाधि के सुख कॊ पाया
खान पान जग विषयों माही , रँचक मन कह लागत नाहि
लग्न लगी गुरू शब्द मँझारि , टूटी मोह कोह की जारी
बालक गण कॊ साथ बिठाये , राम नाम की धूनी लगाये
इक दिन सिंधु नदी किनारे , बालक गये नहाने सारे
वस्त्र उतार तट पर रख दीन्हा, टेॐराम के सुपुर्द कीन्हा
बालक जल मे खेलन लागे , खिल्लू था ऊन सब मे आगे
खेलत खेलत खिल्लू डूबा, सब ने देखा बड़ा अजूबा
वस्त्र सहित गुरू जल के माही, कूदे लुप्त भये फ़िर ताहिं
बालक भय सॆ रोवन लागे, समाचार देवन कूछ भागे
शोकाकुल आये नर नारी, चमत्कार देखा ईक भारी
खिल्लु अपनी गोद उठाये , सतगुरू जी तब बाहर आये
अदभुत ऐसा देख नजारा , विस्मित भया नगर तब सारा
खिल्लु कहा सुनो हे भाई , डूब गया जब मैं जल माही
सुन्दर देव वहाँ दो आये , पकड़ा मुझे वरुण डींग लाये
इतने मे टेउराम जी पधारे, ताकॊ देख प्रसन्न भये सारे
अभीवादन वरुण तब कीन्हाँ, निज सम्मुख ही आसन दीन्हा
कहन लगे कूछ सेव बताये , बोले खिल्लु लेन हम आये
प्रसन्न हो तब दीन विदाई , सतगुरू ने मम जान बचायी
धन्य धन्य गुरू टेॐरामा , परम पवित्र तुम्हारा नामा
जय हो हे गुरूदेव तुम्हारी , सुख सागर तुम अति हितकारी
स्वर्ण आग संग मल जौ त्यागी , लेवत पाप त्यों भगहि
तप्त बुझावत है चंद ज्यों, शीतल हिरदय करत नाम त्यों
इच्छित वस्तु कल्पतरु देवे , नाम सूमरते सब फल सेवे
अब तो सत्संग की धूनी लागि , मन की माया ममता त्यागी
डंडा झाँझ लिया यकतारा , बाजा तबला साज पियारा
गली गली मे धूम मचाई , कृष्ण जैसी रास सचाई
प्रेम बढ़ा जब खन्डु माही , गुरू सोचा यहाँ रहना नाहि
नाम क्रिती जय जयकारा , ईन बातो सॆ संत न्यारा
यह विचार कर बिना बताये, जंगल मे कूछ दिवस बिताये
आसन वहाँ जमाया स्थिर , हिंसक जन्तु का था ना डर
खोज खोज प्रेमी वहाँ आये , लौट चले सबने समझाये
फ़िर आसन निश्छल मन ठाना, कहाअभी फ़िर लौट ना जाना
घास फूस तृण कुटी बनायी , कंद मूल खा जान सूखाई
गुरू मन्त्र का कर अभ्यासा, मेट देही जम की सब फासा
आत्म अंतर वृत्ति लागि , जगत वासना सकली भागी
पावन भूमि वह जग माही , हरीजन करत तपस्या जाही
इसभूमि की रजसिर लावत , गिरिजा कॊ कह शम्भू सुनावत
तीर्थ सम वह पूजन जोगी ,जहँ जहँ नाम जप्त हे जोगी
धन्य धन्य है सो अस्थाना , अमरापूर है उसका नामा
अमरा पूर स्थान अमर हे , दर्श करे फेर ना मर है
चारधाम सम पवित्र धामा, अमरापूर है उसका नामा
ताकी महिमा कही ना जाये, शेष शारदा पार ना पाये
बैठ जहाँ गुरू ज्ञान सुनाया , सतनाम साखी मन्त्र जपाया
प्रेम प्रकाशि पंथ बनाया , सोये जीवों कॊ था जगाया
जब तक गंग यमुन का पानी , तब तक अमर रहेगी कहानी
सूर्य चंद्र प्रकाश है ज्यों ल्यो, नाम प्रकट जग मे तब त्यों ल्यो
अमर देश सॆ आगमन , अमर देश प्रस्थान
अमरा पूर वाणी अमर , अमरा पूर स्थान
आप अमर चरित्र अमर , अमर आपका नाम
तव शरणागत भी अमर , धन गुरू टेउ राम
साधु संत सब पूज्य है , सबको है प्रणाम
श्वासों मे पर रम रहे ,मेरे सतगुरू टेॐराम
चालीसा गुरू देव की , पढ़े सुने जन जोय
श्रधा मन्न मे जो धरे , मुक्ति पाये सो.....2
*बोलो सतगुरु स्वामी टेऊँराम महाराज की जय*
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Satnam sakhi sai ji charn Vandana sai ji 🙏🏻🙏🏻🌹🌹💐💐
Satnam sakhi baba ji kripa kariye ❤❤
Satnamsakshi❤
Ramesh Kathpal ❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤
🕉 SATNAM SAKHI SAI JI WADHIU
Satnam sakhi
Satnam sakhi satguru Dev Bhagwan ki Jay
Satnam sakshi Saiji
Satnam sakhi 🙏
Satnam sakhi 🙏
Satnam sakhi
Satnam shaki ji 🙏🙏
Satnam sakhi
Satnam sakhi 🙏
Satnam sakhi satguru Dev Bhagwan ki Jay
Satnam sakhi 🙏
Dhan guru teu ram sharan mein ayae tere charno mein
Satan Sakhi🙏🙏
Satnam sakhi satguru Dev Bhagwan ki Jay
Satsakhi
Satnam sakhi 🙏
Satnam Sakhi 🙏🙏
Satnam sakhi
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Satnam sakshi mere sathuru teuram sai
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